सम्पादकीय

विदेश नीति में 'आइलैंड डिप्लोमेसी' का महत्व, जानिए क्या है भारतीय कूटनीति का स्तंभ

Gulabi
26 Dec 2020 2:39 PM GMT
विदेश नीति में आइलैंड डिप्लोमेसी का महत्व, जानिए क्या है भारतीय कूटनीति का स्तंभ
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हिंद महासागर के द्वीपीय देशों तक भारत की पहुंच के प्रयासों के पीछे कई सामरिक उद्देश्य काम कर रहे हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंद महासागर के द्वीपीय देशों तक भारत की पहुंच के प्रयासों के पीछे कई सामरिक उद्देश्य काम कर रहे हैं। भारतीय विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की हालिया श्रीलंका व सेशेल्स की यात्र इसी सोच का एक हिस्सा रही है और इस रूप में द्वीपीय कूटनीति (आइलैंड डिप्लोमेसी) को भारतीय विदेश नीति के स्तंभ के रूप में विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। सेशेल्स के एजम्पसन द्वीप में भारत अपने सैन्य अड्डे की स्थापना के अवसर खोज रहा है। साथ ही अन्य द्वीपीय देशों में अपनी आíथक कूटनीतिक संलग्नता को भी बढ़ा रहा है।


इसी क्रम में हाल ही में भारत के विदेश मंत्रलय द्वारा इंडो पैसिफिक डिवीजन के गठन के साथ ही द्वीपीय कूटनीति को औपचारिक रूप दे दिया गया है। पिछले वर्ष भी भारत सरकार ने एक नए इंडियन ओसियन रीजन डिवीजन के गठन के साथ ही आइलैंड डिप्लोमेसी की नींव रख दी थी जिसे इस वर्ष ठोस रूप देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है। इसके अंतर्गत श्रीलंका, मालदीव, मॉरिशस और सेशेल्स को एक साथ शामिल किया गया था और वर्ष 2019 में इस डिवीजन में विस्तार कर मेडागास्कर, कोमोरोस और रीयूनियन द्वीप को भी शामिल कर लिया था। रियूनियन द्वीप पर फ्रांस का स्वामित्व है और हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात की अध्यक्षता में आयोजित इंडियन ओसियन रिम एसोसिएशन के काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स की वर्चुअल बैठक में भारत के समर्थन के साथ फ्रांस को इस एसोसिएशन का 23वां सदस्य बनाया गया है। यह भारत के द्वीपीय सुरक्षा और सागर विजन को मजबूती देने वाला कदम माना गया है।


वर्ष 2015 में भारत के प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश मंत्री ने सेशेल्स की यात्र की थी और तीन दशकों में किसी भारतीय नेता द्वारा इस क्षेत्र में की गई यह पहली यात्र थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना था कि इस क्षेत्र से बेहतर संबंध भारत की सुरक्षा और प्रगति के लिहाज से अहम है। लघु द्वीपीय विकासशील देश हिंद महासागर में कई एशियाई और गैर एशियाई नौसेनाओं के लॉजिस्टिक्स संस्थापनों के रूप में विकसित होते देखे गए हैं। इन लघु द्वीपीय देशों में सेना व नौसेना के अड्डे समेत समुद्री अन्वेषण केंद्र खोलने की प्रवृत्ति देखी गई है। ऐसे द्वीपीय देशों में दक्षिण एशिया में श्रीलंका व मालदीव तथा हिंद महासागर के तटीय क्षेत्रों में मेडागास्कर, कोमोरोस, रियूनियन द्वीप, सेशेल्स, जिबूती आदि शामिल हैं।


फ्रांस ने रियूनियन द्वीप, अबू धाबी और जिबूती में अपने लॉजिस्टिक्स फैसिलिटी और अड्डे बना रखे हैं, जबकि चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर, बांग्लादेश के चटगांव, म्यांमार के कोको द्वीप, श्रीलंका के हंबनटोटा, अफ्रीका के जिबूती और सेशेल्स में अपने अड्डे बना रखे हैं। वहीं अमेरिका ने जिबूती में अपना नौ सैनिक अड्डा बना रखा है। अफ्रीका में अमेरिका का एक मात्र स्थायी अड्डा कैंप लेमोनियर जिबूती में ही स्थित है और यह जिबूती में चीन के अड्डे से कुछ ही दूरी पर है। जापान का भी जिबूती में नौ सैनिक अड्डा है। स्टिंग ऑफ पर्ल पॉलिसी के जरिये हिंद महासागर और दक्षिण एशिया में नौ सैनिक अड्डों को बनाने की चीनी होड़ ने भारत की तटीय सुरक्षा को संवेदनशील बनाया है। भारत ने चीन की इस पॉलिसी को प्रति संतुलित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, वियतनाम व खाड़ी सहयोग संगठन के देशों से द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देने की कोशिशें की हैं जिसे पूर्व विदेश सचिव ललित मानसिंह ने नेकलेस ऑफ डायमंड्स के रूप में निरूपित किया था।


भारतीय आइलैंड डिप्लोमेसी का स्तंभ

भारत क्षेत्रीय संगठनों के जरिये क्षेत्रीय स्थिरता, एकीकरण व सामूहिक क्षेत्रीय विकास का लक्ष्य रखता है, परंतु कुछ क्षेत्रीय संगठनों से गठजोड़ कर भारत विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति करना चाहता है। फोरम फॉर इंडिया पैसिफिक आइलैंड्स कॉपरेशन (फिपिक) इसी प्रकार का संगठन है जिसका गठन विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया गया है। प्रशांत महासागर क्षेत्र में समुद्री व्यापारिक मार्गो की स्वतंत्रता, समुद्री डकैती से सुरक्षा, ग्लोबल वाìमग और जलवायु परिवर्तन से द्वीपों के अस्तित्व पर बढ़ता खतरा, मत्स्य और अन्य संसाधनों की होड़, प्लास्टिक प्रदूषण, तेल रिसाव से समुद्री जैवविविधता का क्षरण, प्रवाल भित्ति से बने द्वीपों पर बढ़ रहे खतरों से निपटने के दृष्टिकोण से फिपिक की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसका गठन भारत के नेतृत्व में प्रशांत महासागर के द्वीपीय देशों के साथ संबंधों को मजबूती देने के लिए 2014 में किया गया था। इसे भारत की आइलैंड डिप्लोमेसी के एक मजबूत उपकरण के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसमें 14 देश हैं जिसमें भारत को छोड़ सभी प्रशांत महासागर के द्वीपीय देश हैं। इस संगठन के देश यद्यपि सापेक्षिक रूप से छोटे भू क्षेत्र वाले देश हैं, लेकिन इनका आíथक क्षेत्र व्यापक है। इस कारण भारत इनके साथ मिलकर महासागरीय अर्थव्यवस्था या ब्लू इकोनामी के विकास के लिए कार्य कर सकता है। भारत की प्रशांत क्षेत्र में संलग्नता बढ़ाने के लिए इसे प्रधानमंत्री की महासागरीय कूटनीति के रूप में भी देखा गया है।


प्रशांत द्वीपीय देशों में कारोबार

वर्ष 2014-15 में प्रशांत द्वीपीय देशों और भारत के मध्य वार्षकि स्तर पर कुल व्यापार 30 करोड़ डॉलर का था जिसमें से भारत का इन देशों में निर्यात 20 करोड़ डॉलर और आयात 10 करोड़ डॉलर का था। वर्ष 2014 में इस संगठन के गठन के समय भारत ने इन देशों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन व स्वच्छ ऊर्जा संवर्धन हेतु 10 लाख डॉलर की राशि वाले विशेष कोष का गठन करने और भारत में इन देशों के लिए व्यापार कार्यालय खोलने पर बल दिया था।


शासनाध्यक्षों के स्तर पर दूसरे समिट में फिपिक सदस्य देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुधार और सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की उम्मीदवारी का मजबूत समर्थन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समिट में फिजी में एक मेडिकल सेंटर गठित करने, वहां एक फार्मास्युटिकल प्लांट का निर्माण करने और फिजी के पर्यटन क्षेत्र में भारतीय निवेश करने की अपेक्षा को पूरा करने पर बल दिया था। भारत ने समिट में पापुआ न्यू गिनी में अवसंरचात्मक क्षेत्र को विकसित करने, सड़कों, राजमार्गो, एयरपोर्ट्स आदि बनाने में सहयोग की बात की।


भारत की द्वीपीय नीति को गति

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र के आयोजन के दौरान 24 सितंबर, 2019 को इंडिया पैसिफिक आइलैंड्स लीडर्स मीटिंग का आयोजन न्यूयॉर्क में किया गया था। भारत के प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ संबंधों में एक्ट ईस्ट पॉलिसी के बाद मजबूती आई है। भारत ने पैसिफिक द्वीपों में अपने विकासात्मक एजेंडे को मजबूती दी है। इस बैठक में फिपिक देशों ने सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति, नवीकरणीय ऊर्जा के सहयोग को बढ़ावा देने, हाल ही में गठित ग्लोबल कोलिशन ऑन डिजास्टर रिजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर में शामिल होने और क्षमता निर्माण हेतु सहयोग करने पर चर्चा की।


इसके अलावा, यह भी महत्वपूर्ण है कि इस संगठन के कई देशों ने इंटरनेशनल सोलर अलायंस की सदस्यता ले रखी है। आपदा प्रबंधन, ग्लोबल वाìमग और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत और इन देशों में आपसी सहयोग अत्यंत जरूरी है। इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने प्रशांत द्वीपीय देशों में हाई इंपैक्ट डेवलपमेंट परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु प्रत्येक प्रशांत द्वीपीय देश को दस लाख डॉलर का अनुदान देने की घोषणा की है। स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रधानमंत्री मोदी ने यहां इंडिया फॉर ह्यूमैनिटी प्रोग्राम के तहत पैसिफिक क्षेत्रीय हब में जयपुर फुट आर्टििफशियल लिंब फिटमेंट कैंप को आयोजित करने का प्रस्ताव किया। प्रशांत द्वीपीय देशों और भारत के मध्य जनता से जनता का संपर्क बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस बैठक में डि¨स्टग्विश्ड विजिटर्स प्रोग्राम की घोषणा की गई जिसके तहत इन देशों के ख्यातिलब्ध व्यक्ति भारत की यात्र कर सकेंगे। यह भी स्पष्ट किया गया कि प्रशांत द्वीपीय देशों से संसदीय प्रतिनिधिमंडल के भारत भ्रमण का स्वागत किया जाएगा। इसे संसदीय कूटनीति के उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है।

एशिया प्रशांत क्षेत्र की महाशक्तियों के आर्थिक हित

हिंद प्रशांत और एशिया प्रशांत क्षेत्र महाशक्तियों के सामरिक आर्थिक हितों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण व संवेदनशील क्षेत्र के रूप में सामने आए हैं। सैन्य और नौसैन्य अड्डों, ऊर्जा आवश्यकताओं तथा खाद्य सुरक्षा हेतु मत्स्य संसाधन पर बढ़ती निर्भरता जैसे कई अन्य कारणों से ये क्षेत्र भू सामरिक, भू राजनीतिक और भू आर्थिक महत्व के हो गए हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर भारत सरकार के विदेश मंत्रलय ने हाल ही में हिंद प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान देने के लिए एक अलग ही प्रभाग का गठन किया है। इसे ओशेनिया डिवीजन नाम दिया गया है। यह अतिरिक्त सचिव की अध्यक्षता में कार्य करेगा और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों, प्रशांत द्वीपीय देशों- कुक आइलैंड्स, तुवालू, पापुआ न्यू गिनी, नौरू, मार्शल द्वीप, सोलोमन द्वीप और टोंगा व वृहद हिंद प्रशांत क्षेत्र के मुद्दों और भारत के उससे जुड़े हितों पर ध्यान केंद्रित करेगा। इसके साथ ही भारत द्वारा इंडो पैसिफिक व आसियान नीति को एक एकल यूनिट के अंतर्गत लाया गया है। इसे चीन से निपटने का भी कारगर उपाय माना जा रहा है।

बीते दिनों चीन को हिंद महासागरीय क्षेत्र, एशिया प्रशांत क्षेत्र और हिंद प्रशांत क्षेत्र के देशों को अपने प्रभाव में लेने के लिए सक्रिय होते पाया गया है। ऐसे में भारत का ओशेनिया डिवीजन इन सभी क्षेत्रों को एकीकृत रूप से देखते हुए भारत के हितों के लिए नीतिगत निर्णय ले सकेगा। इस निर्णय के जरिये भारत प्रशांत द्वीपीय देशों से लेकर अंडमान सागर और चीन द्वारा सामरिक रूप से महत्वपूर्ण समङो जाने वाले क्षेत्रों को समान महत्व वाले स्थलों के रूप में देखेगा। इस नए डिवीजन में ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड के साथ संबंधों पर विशेष बल दिए जाने का निर्णय लिया गया है। क्वाड में ऑस्ट्रेलिया की भूमिका और प्रभाव को देखते हुए ऐसा किया जाना स्वाभाविक भी था। क्वाड सुरक्षा समूह के सदस्य देशों- अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों की बैठक इंडो पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर हो चुकी है। इस प्लेटफार्म को भी भारत अपने आइलैंड डिप्लोमेसी का हिस्सा मानता है। ओशेनिया डिवीजन को इंडो पैसिफिक क्षेत्र के संबंध में एक नई नीतिगत प्राथमिकता के आधार पर सृजित किया गया है।


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