सम्पादकीय

भारत में असंगठित तौर पर कार्यरत श्रमिकों के लिए आर्थिक सामाजिक सुरक्षा की महत्ता

Rani Sahu
4 April 2022 3:04 PM GMT
भारत में असंगठित तौर पर कार्यरत श्रमिकों के लिए आर्थिक सामाजिक सुरक्षा की महत्ता
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वृद्धावस्था में सम्मानपूर्ण जीवन सुनिश्चित करने की दिशा में संसद का एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप सामने आया है

अभिजीत।

वृद्धावस्था में सम्मानपूर्ण जीवन सुनिश्चित करने की दिशा में संसद का एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप सामने आया है। हाल ही में एक स्थायी समिति ने अनुदान मांग 2022-23 पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए ईपीएफओ यानी कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की पेंशन योजना के तहत अंशधारकों को एक हजार रुपये की न्यूनतम मासिक पेंशन को कम मानते हुए इसे बढ़ाने के लिए कहा है। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब किसी समिति ने इस तरह की बात की हो, इससे पहले भी कई अन्य समितियों ने पेंशन को बढ़ाने की मांग की थी, लेकिन इस समिति ने कुछ ऐसे प्रयास भी किए हैं जिससे इस प्रस्ताव ने सर्वोच्च स्तर पर सामाजिक सुरक्षा और उसे सुनिश्चित करने में सरकार की भूमिका को एक नई दिशा दी है।

समिति की सिफारिशें क्यों और कितनी महत्वपूर्ण हैं, इसे समझने के लिए हमें तीन पहलुओं को देखना होगा। पहला, सामाजिक सुरक्षा की अवधारणा और उसकी जरूरत। दूसरा, सरकार की क्षमता और तीसरा भविष्य में भारत के जनसांख्यिक बदलाव। सामान्य शब्दों में समझें तो सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा वह प्रविधान है जो किसी व्यक्ति की बेरोजगारी, बीमारी, दुर्घटना, वृद्धावस्था या कोई ऐसा प्रसंग जिसमें उसके सामने कोई असाधारण खर्च आ जाए, उस दशा में आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है। भारत के लिए सामाजिक सुरक्षा और विशेष तौर पर वृद्धावस्था से जुड़ी पेंशन का प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि आने वाले दशकों में हमारी औसत आयु बढ़ेगी। इस कारण से पेंशन पर निर्भर आबादी और उसका बोझ दोनों बढ़ेंगे।
इस संबंध में उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 में ईपीएफओ की कर्मचारी पेंशन योजना-1995 के अंतर्गत न्यूनतम मासिक पेंशन को एक हजार रुपये किया गया था, जो न केवल अपर्याप्त प्रतीत हो रहा है, बल्कि रंगराजन समिति की शहरी गरीबी रेखा से नीचे भी है। यही कारण है कि कई श्रमिक संगठनों ने उस समय भी इसे बढ़ाने की मांग की थी। अब जब पिछले आठ वर्षों में महंगाई और बढ़ी है तो ऐसे में यह राशि और भी कम प्रतीत हो रही है।
पेंशन का प्रश्न ईपीएफओ तक ही सीमित नहीं है। भारत में करीब 80 प्रतिशत से ज्यादा श्रमिक असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं। यह वर्ग किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा योजना के लाभ से वंचित है। ऐसा नहीं है कि इस वर्ग के लिए योजनाएं नहीं बनाई गईं, परंतु भारत में ज्यादातर सामाजिक सुरक्षा कानून और योजनाएं असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों तक पहुंचने में विफल रहीं।
असंगठित क्षेत्र उद्यम के लिए राष्ट्रीय आयोग (एनसीईयूएस) की 2006 की रिपोर्ट, 'असंगठित श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षाÓ के बाद विभिन्न संगठनों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिक समूहों के द्वारा अभियान चलाने के बाद वर्ष 2008 में असंगठित क्षेत्र श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 देश में लागू हुआ। मगर इससे असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं से जोडऩे में कारगर सफलता नहीं मिल पाई। पूर्व के अनुभवों से सीख लेते हुए पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार ने देश में सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए हैं। वर्ष 2020 में लाया गया सामाजिक सुरक्षा संहिता असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में एक मत्वपूर्ण कदम है। भविष्य को ध्यान में रखकर बनाई गई इस संहिता में 'गिग इकोनमीÓ और इस तरह के विविध प्लेटफार्म से जुड़े श्रमिकों को भी लाभ मिल सके इसलिए उन्हें भी जोड़ा गया है। इस संहिता में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए या तो अंशदान के आधार पर या कुछ मामलों में पूरी तरह से सरकारी वित्त पोषित या कारपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के अनुसार पूरे कार्यबल की सामाजिक सुरक्षा को विस्तार देने का प्रविधान किया गया है।
कोविड महामारी के बाद पैदा परिस्थिति ने सामाजिक सुरक्षा के प्रति जागरूकता और बढ़ा दी है। असंगठित क्षेत्र में एक बड़ी चुनौती श्रमिकों का डाटाबेस नहीं होने से जुड़ी थी। अगस्त 2021 में सरकार ई-श्रम पोर्टल लेकर आई जिसके माध्यम से इस कमी को दूर करने का प्रयास शुरू हुआ। वर्तमान में करीब 26 करोड़ से ज्यादा असंगठित श्रमिकों को ई-श्रम कार्ड जारी किया जा चुका है। इसमें पंजीकृत श्रमिकों को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा लाभों के दायरे में लाने का प्रयास किया जा रहा है।
इसी दिशा में बढ़ते हुए हाल ही में श्रम एवं रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव ने प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना के अंतर्गत 'डोनेट ए पेंशनÓ नामक पहल की शुरुआत की। इस पहल में कोई भी नागरिक अपने कर्मचारी जैसे चालक, घरेलू सहयोगी इत्यादि के पेंशन के प्रीमियम योगदान को दान कर सकते हैं। प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना स्वैच्छिक और अंशदायी है जिसमें लाभार्थी 60 वर्ष की आयु तक एक निर्धारित योगदान करता है। केंद्र सरकार भी इसमें योगदान करती है तथा 60 वर्ष की आयु के बाद उसे तीन हजार रुपये की मासिक पेंशन मिलेगी।
वर्तमान में सामाजिक सुरक्षा को प्रत्येक श्रमिकों तक पहुंचाने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि सरकार की ऐसी सभी योजनाओं की जानकारी उन्हें मिले और इससे भविष्य या किसी दुर्घटना की स्थिति में उन्हें क्या लाभ मिलेगा, वह भी उन्हें समझाया जाए। साथ ही वर्तमान की योजनाओं का एक अध्ययन भी करने की जरूरत है जिससे पता लगाया जा सके कि कौन सी योजनाएं सबसे प्रभावी रही हैं, ताकि उनको और सुदृढ़ किया जा सके। वर्तमान में भारत में इस क्षेत्र से जुड़ी योजनाओं में समाज की भागीदारी उतनी नहीं है। हालांकि 'डोनेट ए पेंशनÓ ऐसी एक बेहतर पहल है, लेकिन इस दिशा में अभी व्यापक प्रयास करने की जरूरत है, ताकि समाज अपनी भागीदारी को इसमें बढ़ा सके।
Rani Sahu

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