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अगस्त 1, 2023 को फिच नाम की अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी ने संयुक्त राज्य अमरीका की दीर्घकालीन विदेशी मुद्रा जारीकर्ता डिफॉल्ट रेटिंग (आईडीआर) को एएए से घटाकर एए प्लस कर दिया है। गौरतलब है कि पिछले सालों में अमरीकी सरकार द्वारा बार-बार ऋण सीमा गतिरोध उत्पन्न होने पर अंतिम समय में अमरीकी संसद ने ऋण सीमा बढ़ाकर उसका समाधान दिया। पिछले सालों में ऐसे कई मौके आए जब अमरीकी प्रशासन इस कारण से ठप्प यानी ‘शटडाऊन’ हो गया, क्योंकि अमरीकी प्रशासन के पास अपने रोजमर्रा के खर्च करने के लिए राशि नहीं बची थी। ऐसे में अमरीकी राष्ट्रपति और अमरीकी संसद के बीच भी कई बार खींचतान का माहौल दिखाई दिया। यह इस बात का द्योतक है कि अमरीका की राजकोषीय स्थिति बहुत अच्छी नहीं है और सरकार को बार-बार अमरीकी संसद से गुहार लगानी पड़ती है ताकि उसके उधार की सीमा बढ़ाई जा सके। फिच द्वारा अमरीकी रेटिंग कम करने के कारणों में बताया गया है कि अगले तीन सालों में अमरीका की राजकोषीय स्थिति और अधिक बिगड़ेगी और सरकार पर कर्ज का बोझ और बढ़ेगा। फिच रेटिंग एजेंसी का कहना है कि राजकोष और कर्ज संबंधी मामलों में पिछले 20 सालों में अमरीकी सरकार के मानकों में निरंतर गिरावट आई है। चूंकि बार-बार ऋण सीमा को लेकर राजनीतिक गतिरोध देखने को मिला है, जिसके कारण राजकोषीय प्रबंधन में विश्वसनीयता कम हुई है।
अन्य अमरीका सरीखे देशों के मुकाबले सरकार के पास मध्यमकालीन राजकोषीय फ्रेमवर्क (कार्य योजना) की भी कमी है। फिच का यह भी कहना है कि अनेकानेक आर्थिक झटकों और कर कटौतियों और नए खर्चों की पहल के चलते अमरीकी सरकार पर कर्ज पिछले दशक में बहुत बढ़ गया है। अमरीका में बुजुर्गों की लगातार बढ़ती संख्या के चलते सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य (मेडिकेयर) पर खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है और उससे निपटने के लिए विशेष प्रयास दिखाई नहीं दे रहे हैं। वर्ष 2022 में सामान्य सरकार का घाटा जीडीपी के 3.7 प्रतिशत के बराबर था, जो 2023 में बढक़र 6.3 प्रतिशत तक पहुंचने की अपेक्षा है। राज्यों और स्थानीय सरकारों पर भी कर्ज बढ़ रहा है। राजकोषीय दायित्व कानून के कारण जो थोड़ा-बहुत सुधार हुआ है, वो भी अत्यंत अपर्याप्त है और वर्ष 2024 के चुनावों तक कोई विशेष राजकोषीय समेकन के प्रयास होने की भी बहुत कम संभावना है। गौरतलब है कि 12 साल पहले अगस्त 5, 2011 को स्टैण्डर्ड एंड पुअर्स नाम की रेटिंग एजेंसी ने अमरीका की रेटिंग को इसी प्रकार घटाया था। यह पहली बार हुआ था कि अमरीकी फेडरल सरकार को एएए से नीचे की रेटिंग दी गई थी। उस समय अमरीकी कांग्रेस द्वारा कर्ज की सीमा को बढ़ाने के चार दिन के बाद ही रेटिंग में यह गिरावट आई थी। हालांकि फिच एवं मुडीज नाम की रेटिंग एजेंसियों ने उस समय अपनी रेटिंग नहीं गिराई थी। 2011 के बाद अमरीकी सरकार की रेटिंग एएए बनी रही और इसके बाद फिच द्वारा पहली बार अमरीकी फेडरल सरकार की रेटिंग को घटाया गया है। इस बीच हम देख रहे हैं कि एक अन्य रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कई अमेरिकी बैंकों की रेटिंग घटा दी है। एजेंसी ने 10 छोटे और मध्यम आकार के बैंकों की क्रेडिट रेटिंग में कटौती की है और 6 बड़े ऋणदाताओं को भविष्य में रेटिंग में गिरावट के लिए नोटिस पर रखा गया है। इस कार्रवाई का कारण फंडिंग लागत में वृद्धि (जिसका अर्थ है कि ब्याज दरों में वृद्धि) और लाभप्रदता का दबाव है।
रेटिंग में गिरावट : अमरीका आर्थिक दृष्टि से दुनिया का सबसे समृद्ध देश तो है ही, उसकी अर्थव्यवस्था का व्याप भी अत्यंत विस्तृत एवं विविधता से भरा हुआ है। वहां का व्यावसायिक परिवेश भी अत्यंत गतिशील है। ऐसी संरचनात्मक शक्ति रखने वाले अमरीका की करैंसी डॉलर दुनिया की सबसे अधिक लोकप्रिय रिजर्व करैंसी है। दुनिया के देश अपने विदेशी मुद्रा भंडारों को अभी भी डॉलरों में ही रखना चाहते हैं। इन सब खूबियों के साथ रेटिंग के घटने के बावजूद ऐसी स्थिति नहीं लगती कि अमरीका अपने उधारों को चुकाने में किसी कोताही का शिकार बनेगा। अभी भी दुनिया का विश्वास अमरीका में बदस्तूर जारी है, लेकिन फिर भी यह समझने की जरूरत है कि अमरीका की रेटिंग के घटने का अमरीकी अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। किसी भी देश की रेटिंग घटने का सबसे पहला असर ब्याज दरों पर पड़ता है। डाउनग्रेड से घरेलू स्तर पर ब्याज दरों में वृद्धि होने की संभावना है, क्योंकि निवेशक अमेरिकी ऋण के लिए उच्च जोखिम प्रीमियम की मांग करेंगे। इससे सरकार के लिए पैसा उधार लेना अधिक महंगा हो जाएगा, जिससे खर्च में कटौती या कर में वृद्धि हो सकती है। अमेरिकी सरकार को अब उधार लेने के लिए पहले की तुलना में अधिक ब्याज दर का भुगतान करना होगा। दूसरे, यह महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी सरकार द्वारा जारी ऋणों पर ब्याज दरें एक वैश्विक बेंचमार्क प्रदान करती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि अमेरिकी सरकार द्वारा जारी ऋण को दुनिया में सबसे सुरक्षित ऋणों में से एक माना जाता है। ऐसे में अगर सबसे सुरक्षित लोन पर भी अब ब्याज दरें ऊंची होंगी तो फिच की इस डाउनग्रेडिंग के बाद वैश्विक स्तर पर ब्याज दरों में बढ़ोतरी देखी जा सकती है, या किसी अन्य देश द्वारा उधार लेने पर ब्याज दरें अब बेंचमार्क बन जाएंगी। लेकिन इसकी संभावना बहुत कम है, क्योंकि अमेरिका दुनिया में सबसे बड़ा एकल कर्जदार है। तीसरा, इससे डॉलर के मूल्य में भी गिरावट आ सकती है जिससे आयात अधिक महंगा हो जाएगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रेटिंग में गिरावट निवेश के लिए सुरक्षित आश्रय के रूप में अमेरिका की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाएगी।
इससे पूंजी का बहिप्र्रवाह हो सकता है क्योंकि निवेशक उच्च क्रेडिट रेटिंग वाले देशों में अपना पैसा लगाना चाहते हैं। इससे अमेरिका के लिए विदेशी सरकारों और संस्थानों से पैसा उधार लेना और भी मुश्किल हो सकता है। चौथा, डाउनग्रेड का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इससे उपभोक्ता विश्वास में गिरावट आ सकती है, जिससे खर्च कम हो जाएगा। इससे व्यावसायिक निवेश में भी गिरावट आ सकती है, क्योंकि व्यवसाय भविष्य के बारे में अधिक अनिश्चित हो जाते हैं। इससे मंदी आ सकती है। पांचवें, आम आदमी को अपनी ईएमआई का भुगतान करना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि घर के मालिकों या वाहन मालिकों के लिए बंधक (लीजिंग) समायोज्य ब्याज दर के साथ उनकी ब्याज दरें बढ़ सकती हैं, जिससे उनके मासिक भुगतान को वहन करना अधिक कठिन हो सकता है। छठा, जैसा कि हम देखते हैं कि एक अन्य रेटिंग एजेंसी मूडीज अतीत में ब्याज दरों में वृद्धि के कारण बैंकों और अन्य ऋण देने वाली संस्थाओं को डाउनग्रेड कर रही है, और फिच द्वारा इस अमरीका के क्रेडिट डाउनग्रेड के फलस्वरूप, ब्याज दरों में वृद्धि इन ऋण देने वाले संस्थानों के लिए स्थिति और भी खराब कर सकती है। यह स्पष्ट नहीं है कि अमेरिकी प्रशासन इस डाउनग्रेड के प्रभाव से कैसे निपट पाएगा। लेकिन, यह स्पष्ट है कि यह गिरावट अमेरिका के आर्थिक जीवन के लिए कोई अच्छा संकेत नहीं है।
डा. अश्वनी महाजन
कालेज प्रोफेसर
By: divyahimachal
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