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By: divyahimachal
प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव एक ‘राजनीतिक पैंतरा’ साबित हो सकता है। विपक्ष जानता है और उसे लगातार एहसास रहा है कि लोकसभा में भाजपा-एनडीए को करीब 335 सांसदों का प्रचंड बहुमत हासिल है, जबकि सामान्य बहुमत के लिए 272 सांसदों का समर्थन ही पर्याप्त है। अविश्वास प्रस्ताव के बावजूद न तो मोदी सरकार का पतन होगा और न ही मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य बदलेगा। अलबत्ता अविश्वास प्रस्ताव के कारण प्रधानमंत्री को कमोबेश लोकसभा में अपना वक्तव्य देने को बाध्य जरूर होना पड़ेगा। जाहिर है कि वह मणिपुर पर जरूर बोलेंगे, लेकिन राजस्थान, बंगाल, बिहार और छत्तीसगढ़ में भी महिलाओं के अलावा नौजवानों को निर्वस्त्र होने को विवश किया गया, दूसरे यौन अपराध भी किए गए, प्रधानमंत्री उन पहलुओं को भी जरूर सदन में रखेंगे। विपक्ष की कुल राजनीति यह है कि प्रधानमंत्री मणिपुर समेत पूर्वोत्तर राज्यों के हालात पर अपनी सरकार का पक्ष रखें, ताकि उसके पलटजवाब में विपक्ष अपनी दलीलें और अपने तथ्य पेश कर प्रधानमंत्री की घेराबंदी कर सके और 2024 की राजनीति को जिंदा रखा जा सके। विपक्ष का मणिपुर के प्रति अचानक आकर्षण बढ़ा है, जबकि इतिहास गवाह है कि उग्रवाद के ‘चरम दौर’ में हालात इतने विस्फोटक और हिंसक थे कि भारत की वायुसेना को हस्तक्षेप करना पड़ा था।
तब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। मणिपुर में म्यांमार, थाईलैंड आदि देशों के ड्रग सिंडिकेट और अवैध हथियारों के सौदेबाज सक्रिय रहे हैं। अभी तीन दिन पहले म्यांमार से 718 घुसपैठियों ने मणिपुर में अवैध प्रवेश किया है। विपक्ष ने यह मुद्दा कभी, क्यों नहीं उठाया। शायद अविश्वास की बहस के दौरान विपक्ष को याद आ जाए कि ‘इंडिया’ के एक हिस्से की स्थितियों का सच यह भी है। दरअसल मणिपुर के जरिए विपक्ष सियासी बिसात बिछा कर प्रधानमंत्री मोदी और उनकी भाजपा को शिकस्त देना चाहता है, जो फिलहाल संभव नहीं लगता। कांग्रेस नेतृत्व के ही विपक्ष ने 20 जुलाई, 2018 को भी मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन सत्ता-पक्ष को 325 और विपक्ष को 126 वोट मिले थे। अविश्वास का निष्कर्ष सामने था। यदि विपक्ष इस बार भी अविश्वास प्रस्ताव लाता है, तो पहला विशेषाधिकार स्पीकर का है कि वह प्रस्ताव को स्वीकृति दें अथवा नहीं। यह किसी संवैधानिक, तकनीकी आधार पर ही अस्वीकृत किया जा सकेगा। विपक्ष की रणनीति यह है कि नवगठित ‘इंडिया’ गठबंधन को लेकर प्रधानमंत्री ने जो तुलनाएं की हैं, उसके मद्देनजर भी प्रचार किया जाए कि प्रधानमंत्री ने परोक्ष रूप से भारत देश की निंदा की है। अपमान किया है। हालांकि गठबंधन का संक्षिप्त नामकरण ‘इंडिया’ या ‘भारत’ का पर्यायवाची नहीं है, लेकिन विपक्ष इस ‘मास्टर स्ट्रोक’ नामकरण के जरिए भी भावुक राजनीति करना चाहता है।
इसका कोई व्यापक राष्ट्रवादी प्रभाव पड़ेगा, हमें ऐसा नहीं लगता। हालांकि इस शब्द और मुद्दे पर विपक्ष को सत्ता-पक्ष और खासकर प्रधानमंत्री की ओर से तार्किक प्रहार झेलने पड़ सकते हैं। बहरहाल विपक्ष के विभिन्न 50 लोकसभा सांसद अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस देंगे अथवा दे दिए होंगे! कांग्रेस ने तीन लाइन का ‘व्हिप’ भी जारी कर दिया है। पूर्व यूपीए-कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का बुधवार को संसदीय दल की बैठक को संबोधित करना भी तय किया गया है। अविश्वास की राजनीति को शिद्दत से खेलने की पूरी तैयारी है। अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में ही प्रभावी होता है, क्योंकि सभी सांसद प्रत्यक्ष तौर पर जनता के वोट से निर्वाचित होकर सदन में आते हैं। राज्यसभा देश के विभिन्न राज्यों का सदन है। अक्सर केंद्र सरकारों का राज्यसभा में बहुमत नहीं होता। भाजपा-एनडीए का भी नहीं है, लेकिन उनके सांसदों की संख्या सर्वाधिक है। उच्च सदन में किसी भी प्रस्ताव पर बहुमत या अल्पमत से सरकार का निर्धारण नहीं होता, लिहाजा अब भी पूरी ताकत लोकसभा में झोंकी हुई है। अविश्वास महज एक राजनीतिक कोशिश है।
Rani Sahu
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