सम्पादकीय

कठघरे में खड़ी टीकाकरण नीति: कोविड रोधी टीकों की खरीद में देरी से भी अधिक गहन चिंता का विषय है टीका लगाने की वर्तमान गति

Gulabi
2 Jun 2021 9:24 AM GMT
कठघरे में खड़ी टीकाकरण नीति: कोविड रोधी टीकों की खरीद में देरी से भी अधिक गहन चिंता का विषय है टीका लगाने की वर्तमान गति
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पूरी दुनिया में आज भारत को विश्व की फार्मेसी और विश्व की वैक्सीन राजधानी के रूप में जाना जाता है

रणदीप सिंह सुरजेवाला : पूरी दुनिया में आज भारत को विश्व की फार्मेसी और विश्व की वैक्सीन राजधानी के रूप में जाना जाता है। दशकों से भारत जहां दुनिया भर को तमाम बीमारियों से बचाव के लिए टीके मुहैया कराता आया है, वहीं दुर्भाग्य से आज हालत यह है कि हम एक देश से दूसरे देश तक टीकों की तलाश में दर-दर भटकने को मजबूर हैं। कारण साफ है, कोरोना की जानलेवा दूसरी लहर के बीच मोदी सरकार के कुप्रबंधन ने आम भारतीय के जीवन को खतरे में डाल दिया। पूरी दुनिया जानती है कि कोविड-19 महामारी से केवल एक बचाव है और वह है बड़े पैमाने पर टीके लगाना, लेकिन मोदी सरकार ने टीके लगाने की जिम्मेदारी से ही मुंह मोड़ लिया। लाखों देशवासियों के जान गंवाने के बाद भी केंद्र सरकार कोविड निरोधक टीकों की खरीद के प्रति बेखबर रही।

कोविड महामारी का मुकाबला करने के चार तरीके
कोविड महामारी का मुकाबला करने के चार तरीके हैं-परीक्षण, ट्रैकिंग, ट्रीटमेंट और वैक्सीनेशन यानी टीकाकरण। हमारे 70-80 प्रतिशत लोगों को टीका लगा देना ही सबसे र्तािकक बात होती, लेकिन इस ओर सरकार कभी गंभीर ही नहीं हुई। मोदी सरकार ने अनुमान ही नहीं लगाया कि देश में कितने लोगों को टीके लगाने आवश्यकता होगी? टीके के लिए भारत की अपनी निर्माण क्षमता क्या है? कितने करोड़ टीकों का आयात करने की आवश्यकता होगी और किससे?
भारत की प्रति व्यक्ति टीका खरीद सबसे कम
दुनिया के अनेक देशों ने मई, 2020 में ही टीके की खरीद के ऑर्डर देने शुरू कर दिए थे, लेकिन मोदी सरकार ने पहली बार जनवरी, 2021 में जाकर लगभग दो करोड़ टीकों का पहला ऑर्डर दिया। उपलब्ध जानकारी के अनुसार मोदी सरकार और राज्य सरकारों ने 140 करोड़ की कुल आबादी के लिए केवल 39 करोड़ टीकों की खुराक खरीदने का ही ऑर्डर दिया है। दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले भारत की प्रति व्यक्ति टीका खरीद सबसे कम है। इसका पता इससे चलता है कि यूरोप के देशों ने पिछले साल अगस्त में टीकों की 290 करोड़ खुराक के लिए ऑर्डर दे दिए थे, जबकि इन देशों की आबादी 45 करोड़ ही है। इसी तरह अमेरिका ने अपनी 33 करोड़ आबादी के लिए मई, 2020 में टीकों की 120 करोड़ खुराक के लिए ऑर्डर दे दिए थे। ब्रिटेन ने भी मई, 2020 में अपनी सात करोड़ आबादी के लिए टीकों की 52 करोड़ खुराक के लिए ऑर्डर दे दिए थे। ब्राजील, कनाडा आदि
ने अगस्त, 20 में पर्याप्त संख्या में टीकों के ऑर्डर दे दिए थे।
टीकों की खरीद में देरी से भी गहन चिंता का विषय है टीका लगाने की वर्तमान गति। मौजूदा गति से तो मई 2024 तक ही टीकाकरण की प्रक्रिया पूरी हो पाएगी। भारत को 18 वर्ष से अधिक आयु के 94.50 करोड़ पात्र बालिगों के लिए 189 करोड़ टीके की खुराक की आवश्यकता है। इसके विपरीत 29 मई, 2021 तक हमने 20.80 करोड़ टीके ही लगाए हैं। पिछले 133 दिनों का औसत (16 जनवरी, 2021 को टीकाकरण शुरू हुआ) प्रतिदिन 15.46 लाख टीके हैं। क्या भारत की बालिग आबादी टीके लगाने के लिए तीन और साल इंतजार कर सकती है?
भारत में 3.2 फीसद को दोनों खुराक लगी, यूएस में 40 फीसद आबादी को दोनों खुराक लग चुकी
चिंता की बात यह भी है कि 29 मई, 2021 तक देश में केवल 4.41 करोड़ लोगों को टीके की दोनों खुराक लगी हैं, जो 140 करोड़ की कुल आबादी का बमुश्किल 3.2 फीसद है। यह अक्षम्य है। इसके विपरीत अमेरिका की 40 प्रतिशत आबादी को टीके की दोनों खुराक लग चुकी हैं। ब्रिटेन की 34.5 प्रतिशत आबादी, ब्राजील की नौ प्रतिशत आबादी को टीके की दोनों खुराक लग चुकी हैं। भारत में 45 वर्ष से कम 62 करोड़ लोग हैं, जिनमें से केवल 1.67 करोड़ लोगों को ही 29 मई तक टीके की एक खुराक लगी है। यह देश की वह युवा आबादी है, जो राष्ट्र निर्माण में सबसे बड़ा योगदान देती है।
देश में टीकाकरण की मौजूदा स्थिति के लिए टीका निर्यात का फैसला जिम्मेदार
ऐसे में क्या सरकार देश के विकास को खतरे में नहीं डाल रही? देश में टीकाकरण की मौजूदा स्थिति के लिए टीका निर्यात का फैसला भी जिम्मेदार है। मोदी सरकार ने 20 मई, 2021 तक 6.63 करोड़ टीकों का निर्यात किया। इनमें से केवल 16.13 प्रतिशत ही अनुदान रूप में था। सवाल यह है कि सरकार ने अपने देशवासियों की जान खतरे में डालकर ऐसा क्यों किया?
टीके की अलग-अलग कीमतें जनविरोधी
टीका लगाने के लिए कोविन एप पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर सरकार ने शहर और गांव तथा अमीर और गरीब के बीच डिजिटल डिवाइड पैदा कर दिया है। यह गरीबों और वंचितों के साथ भेदभावपूर्ण है, खासकर जिनके पास स्मार्टफोन और इंटरनेट की पहुंच न के बराबर है। हमें देश के गरीबों को टीके के सुरक्षा चक्र से अलग क्यों छोड़ देना चाहिए? क्या दूर गांव में रहने वाले लोग या देश के गरीब टीका लगवाने के अधिकारी नहीं? इसी तरह टीके की अलग-अलग कीमतें जनविरोधी हैं।
केंद्र सरकार एक ही टीके के लिए अलग-अलग कीमत निर्धारित करा रही
सभी प्रमुख देशों में वैक्सीन की खरीद का जिम्मा वहां की केंद्र सरकारों ने लिया। हम दुनिया में एकमात्र देश हैं, जहां खुद केंद्र सरकार एक ही टीके के लिए अलग-अलग कीमत निर्धारित करा रही है। सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड के एक खुराक की कीमत केंद्र सरकार के लिए 150 रुपये, राज्य सरकारों के लिए 300 रुपये और निजी अस्पतालों के लिए 600 रुपये है।
आत्मनिर्भर भारत महामारी के दौरान पूरी तरह भगवान भरोसे
भारत बायोटेक के कोवैक्सीन की एक खुराक की कीमत केंद्र सरकार के लिए 150 रुपये, राज्य सरकारों के लिए 400 रुपये और निजी अस्पतालों के लिए 1,200 रुपये है। उपरोक्त तथ्यों से एक बात शीशे की तरह साफ है कि मोदी सरकार की इच्छाशक्ति और दूरदृष्टि के अभाव में टीका उत्पादन में पहले से आत्मनिर्भर भारत महामारी के दौरान पूरी तरह भगवान भरोसे होकर रह गया।
( लेखक कांग्रेस पार्टी के महासचिव और उसके मीडिया विभाग के प्रमुख हैं )


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