सम्पादकीय

मैं रिटायर हो गया हूं

Gulabi
17 Sep 2021 5:31 AM GMT
मैं रिटायर हो गया हूं
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मैंने वीआरएस ले लिया और अब मैं सेवानिवृत्ति के सुख के लिए आतुर था।

जब मैं सरकारी सेवा में आया था, उस समय एक महापुरुष ने आकर कहा था- ''नौकरी न कीजिए- घास खोद खाइये,''लेकिन मुझे नौकरी की जरूरत थी-सो मैं नौकरी करने लगा। पता ही नहीं चला मैंने कब सेवा के 36 वर्ष पूरे कर लिए, तब एक दिन ''केवल्य'' प्राप्त हुआ कि मैं यह तनाव भरा जीवन क्यों जी रहा हूं। इस मध्य मैं शुगर, ब्लडप्रेशर व अन्य रोगों का तोहफा मुझे अलग मिल चुका था। डॉक्टरों के चक्कर और दवाओं से घनचक्कर बना मैं घर का रहा न घाट का। अभी भी सेवा के दो वर्ष शेष रह गए थे। मैंने अपनी पत्नी से एक दिन कहा- ''देखो, अब मैं नौकरी नहीं कर सकता। मेरा शरीर जवाब दे गया है। इसलिए मैं स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेना चाहता हूं।'' पत्नी ने मेरी क्षीण होती काया पर पहली बार गौर से दृष्टिपात किया और बोली- ''आप वीआरएस ले ही लें। आपने इस घर के लिए इतना किया है कि वह अविस्मरणीय है। हम भले एक टाइम दलिया खाकर टाइम पास कर लेंगे, लेकिन यातना-शिविर से तो आप बाहर निकल जाएंगे।'' पत्नी के आप्त वचन सुनकर मन गदगद हो गया। अंधे को क्या चाहिए, दो नैन-वे मुझे मिल गए थे। मोरल सपोर्ट बहुत बड़ी चीज है।

गबरू जवान बच्चे से पूछा तो वह हकला गया, बोला- ''क्यों पापा, अभी तो दो वर्ष हैं। घर में पड़े-पड़े बोर हो जाओगे। अभी ऑफिस के बहाने मन बहल जाता है।'' मैं बोला- ''तुम्हारा कहना ठीक है, लेकिन नौकरी सिरदर्द बन गई है। जिम्मेदारियों तले दबा हूं। वहां नक्कारखाना है, कोई सुनने वाला नहीं है। इसलिए बेटा मैं वीआरएस ले रहा हूं। तुम्हारी मम्मी ने भी अपनी स्वीकृति दे दी है। तुम्हारी औपचारिक स्वीकृति बाकी है।'' उसे अन्यथा लगा, वह बोला- ''फिर आपकी मर्जी। जैसा आपको अच्छा लगे, वह कर लें।'' मैंने कहा- ''बेटा दलिया खा लोगे?'' ''दलिया व्हाट नॉनसेंस?'' यह कहकर वह चला गया, मुझे पता था, यही होने वाला है।
मैंने वीआरएस ले लिया और अब मैं सेवानिवृत्ति के सुख के लिए आतुर था। सवाल वही आया कि अब दिनभर करें क्या? सक्रिय पथिक की यही बड़ी समस्या होती है। समझ में तो आ रहा था कि आलस्य को अपना लिया जाए तो दिन क्या, वर्षो तक की समस्या हल हो जाएगी। पड़े रहना ही समय पास करने का सबसे सरल और सीधा उपाय है। पत्नी ने कहा कि दोनों वक्त मंदिर चलेंगे। सुबह घूमना आपके लिए आवश्यक है ही। पेंशन के रूप में वेतन से चौथाई मिलने वाली आय से घर चलाना उतना ही मुश्किल था, जितना गठबंधन की सरकार। अचानक एक दिन एक अखबार से फोन आया ''सुना है आप रिटायर हो गए हैं?'' मैं बोला- ''आप सही कह रहे हैं और सही ही सुन रहे हैं। बताइए आपने कैसे याद किया?'' ''अरे भाई, हमारा अखबार देखो। घर में क्यों पड़े हो?'' मैंने पूछा- ''आप कौन?'' उधर से बोला- ''आपका अभिन्न लंगोटिया संपादक रामदुलारे लाल।'' ''बहुत खूब, कहो कैसे हो? यार मैंने वीआरएस ले लिया है। यह तो जानते ही हो कि मैं भी लेखक रहा हूं। कोई काम तो बताओ।'' ''काम तो बहुत है शर्मा, लेकिन पैसा नहीं है। टाइम पास करना हो तो इधर आ जाया करो। दिन निकल जाएगा।'' मैंने कहा- ''वह तो ठीक है। कुछ पैसा तो दिलाओ ताकि घर भी चलने लगे।'' ''भाई शर्मा, अखबार नया हैं। अभी तो मिलकर काम करना है। पोजीशन लेते ही पत्रं पुष्पम दे देंगे।'' रामदुलारे बोला। मैंने कहा- ''इससे बढि़या तो मैं पूरे दिन सोकर निकाल लूंगा, वह ज्यादा ठीक है।''
पूरन सरमा,
स्वतंत्र लेखक


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