सम्पादकीय

बीमारी और बदहाली

Neha Dani
8 Sep 2021 1:49 AM GMT
बीमारी और बदहाली
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बीमारियों पर काबू पाने के लिए पूरी व्यवस्था को बदलने की जरूरत है।

पिछले कुछ समय से जिस तरह देश के विभिन्न हिस्सों में बीमारियां फैल रही हैं और समय पर इलाज न मिल पाने से लोगों की जान चली जा रही है, उससे एक बार फिर देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुलने लगी है। कोरोना विषाणु से पार पाने में हमारी सरकारों को नाकों चने चबाने पड़े और अब भी उसकी चुनौती खत्म नहीं हुई है, पर लगता है उससे कोई सबक नहीं लिया गया। अभी केरल और महाराष्ट्र इसके चंगुल से बाहर नहीं निकल पाए हैं। देश के आधे से अधिक आंकड़े केरल से आ रहे हैं। महाराष्ट्र में भी बीते एक हफ्ते में तेजी से मामले बढ़े हैं। इस बीमारी से छुटकारा पाना तो चुनौती बना ही हुआ है, इस बीच उत्तर प्रदेश में डेंगू और केरल में निपाह विषाणु की दस्तक ने एक नई चिंता पैदा कर दी है। निपाह भी संक्रामक विषाणु है और यह पशुओं तथा मनुष्य दोनों में समान रूप से फैलता है। केरल में करीब तीन साल बाद फिर से इसने दस्तक दी है।

निपाह विषाणु के संक्रमण से बचने के लिए अभी तक कोई टीका नहीं खोजा जा सका है। इसका कोई पक्का इलाज भी नहीं है, इसलिए यह अधिक खतरनाक विषाणु माना जाता है। निपाह विषाणु की दस्तक ने केरल में एक नई मुसीबत खड़ी कर दी है। उत्तर प्रदेश में जिसे डेंगू बताया जा रहा है, उसके बारे में अब भी कई चिकित्सा विज्ञानी दावे के साथ नहीं कह पा रहे कि वह वास्तव में डेंगू ही है। इसे रहस्यमय बीमारी मान रहे हैं, बेशक इसके लक्षण डेंगू के हैं। यह बीमारी जिस तरह वहां के विभिन्न जिलों में तेजी से फैल रही है, लोगों को समुचित उपचार नहीं मिल पा रहा, अस्पतालों में जगह की कमी देखी जा रही है, उससे भरोसा नहीं बन पा रहा कि सरकार इस बीमारी पर जल्दी काबू पा सकेगी। कोरोना की दूसरी लहर में जब वहां मौतों का सिलसिला बढ़ गया था और लाशें गंगा की रेती में दफ्न की जाने लगी थीं, तब प्रदेश सरकार ने आंकड़ों पर परदा डालना शुरू कर दिया था। फिर श्रेय लेती फिरी कि उसने कोरोना पर काबू पाने में तत्परता दिखाई। अब नई रहस्यमय बीमारी ने उसकी तत्परता और चिकित्सा सुविधाओं पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं।
हालांकि बरसों से विभिन्न अध्ययनों के जरिए खुलासा होता रहा है कि भारत में स्वास्थ्य सेवाएं खस्ताहाल हैं, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर बजटीय आबंटन जरूरत से काफी कम है। मगर सरकारों ने इस तरफ कभी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। उसी का नतीजा है कि यह महकमा दिन पर दिन और खस्ताहाल होता गया। जब भी बड़े पैमाने पर कोई बीमारी फैलती है, उस पर काबू पाना सरकारी अस्पतालों के वश की बात नहीं रह जाती। न उनके पास जांच के उचित उपकरण होते हैं और न जरूरी दवाइयां, न ऐसे चिकित्सक जो नई बीमारियों की समय पर पहचान कर उनका निदान कर सकें। विडंबना है कि हमारे देश के गरीब लोग इन्हीं अस्पतालों के भरोसे हैं और समय पर इलाज न मिल पाने की वजह से वही सबसे अधिक दम तोड़ते देखे जाते हैं। स्वास्थ्य बीमा योजना भी कारगर साबित नहीं होती। जब व्यवस्था की खामियों पर अंगुलियां उठने लगती हैं तो सरकारें आंकड़ों पर परदा डालना शुरू कर देती हैं। कोरोना पर काबू पाने में विफल रहने की वजह से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को बदल दिया गया। मगर केवल मंत्री बदलने से कुछ नहीं होगा, बीमारियों पर काबू पाने के लिए पूरी व्यवस्था को बदलने की जरूरत है।


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