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- वोटों के लिए राष्ट्रीय...
बंगाल विधानसभा चुनाव के संभावित नतीजों के पूर्वानुमान आने शुरू हो गए हैं। कुछ अनुमानों में भाजपा और तृणमूल कांग्र्रेस के बीच लगभग बराबरी का मुकाबला बताया जा रहा है। कुछ दिनों में स्थिति और भी साफ हो जाएगी। पिछले कुछ महीनों में जितने बड़े पैमाने पर सांसदों, विधायकों और नेताओं ने तृणमूल कांग्रेस को छोड़ा, वह एक रिकॉर्ड है। यह गौर करने लायक है कि जो भी नेता तृणमूल कांग्रेस छोड़ रहा है, वह मुख्यत: भाजपा में शामिल हो रहा है। आम तौर पर ऐसा तब होता है, जब दल छोड़ने वाले नेताओं को उनके मतदाताओं से यह संकेत मिलता है कि किसी खास दल से चुनाव लड़ोगे, तभी उन्हें उनके वोट मिलेंगे। आखिर इतनी बड़ी संख्या में सांसद-विधायक ममता का साथ क्यों छोड़ रहे हैं? जिस दल के जीतने की पक्की उम्मीद रहती है, उसे शायद ही कोई छोड़ता हो। स्पष्ट है कि अभी जो चुनावी लड़ाई बराबरी की दिख रही है, उसका स्वरूप आने वाले दिनों में बदल भी सकता है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की रणनीतियों से यह लगता है कि वह विरोधियों के प्रति तीखे तेवर अपनाने में पीछे नहीं रहने वालीं। 2016 में ममता बनर्जी ने मोदी और शाह को सार्वजनिक रूप से पंडा और गुंडा कहा था। वह यह शब्दावली अब भी दोहरा रही हैं। ममता बनर्जी के एजेंडे में न सिर्फ तुष्टीकरण और भतीजे को राजनीति में आगे बढ़ाने के काम शामिल है, बल्कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की तरफदारी करना भी है।