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- अनुभव जन्य ज्ञान की...
कौन कहता है कि परंपरा जनित ज्ञान अनुभव जन्य नहीं होता? क्या आज से दो-चार सौ साल से पहले भारत में लोग जीवित नहीं थे? तब क्या यहां के लोगों का ज्ञान शून्य था? आखिर जब तक पश्चिम से कोई ज्ञान न मिले, तब तक हम अपने को छोटा क्यों समझते हैं? बचपन में मां टायफाइड हो जाने पर सौंफ और पुदीने को पानी में उबालकर पीने को देती थी। बहुत से पश्चिमी देशों में भी सौंफ और जीरे का पानी सद्य प्रसूता को पीने के लिए कहा जाता है। हल्दी और अदरक की औषधियों का प्रयोग आज एलोपैथिक डॉक्टर्स भी करते हैं। अक्सर अमेरिका से ऐसी खबरें आती रहती हैं कि वहां उन चीजों का पेटेंट कराया जा रहा है, जिनका इस्तेमाल भारत में सदियों से होता चला आ रहा है। विज्ञान भी अनुभव की बात ही तो करता है। क्लीनिकल ट्रायल इसी को कहते हैं। हमारा अनुभव जन्य ज्ञान ही तो है कि कौन-सी चीज किस चीज के साथ खानी है और किसके साथ नहीं? जैसे कि खीरा खाली पेट नहीं खाना चाहिए। उसके ऊपर पानी नहीं पीना चाहिए। दूध के साथ भी खीरे, ककड़ी, तरबूज, खरबूज का प्रयोग वॢजत है। ऐसी तमाम बातों को परंपरा से लोग जानते आए हैं। नाड़ी देखकर रोग बताने वाले अपने ही यहां रहे हैं, लेकिन आज हमें बताया जा रहा है कि हम लोग घोर अवैज्ञानिक दृष्टि वाले हैं। हमारे यहां की औषधियां, पारंपरिक चिकित्सा प्रविधियां सब बुढिय़ा पुराण हैं, क्योंकि ये सब पश्चिम की वैज्ञानिक तुला पर खरी नहीं उतरी हैं। इस वैज्ञानिक सोच की लाठी में इतना दम है कि वह बिना किसी प्रमाण के अच्छी से अच्छी बात को खारिज कर देती है और कोई उफ भी नहीं करता। शायद इसीलिए गत दिवस मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि बहुत सी चीजें, जिन्हेंं आज खोजने का दावा किया जा रहा है, उनका हमारी संस्कृति में उल्लेख मिलता है।