सम्पादकीय

अपनी धरती और पर्यावरण को बचाना है तो उसकी कमान औरतों को सौंप दीजिए

Rani Sahu
18 Nov 2021 8:11 AM GMT
अपनी धरती और पर्यावरण को बचाना है तो उसकी कमान औरतों को सौंप दीजिए
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1960 में डेनमार्क की इकोनॉमिस्‍ट ईस्‍टर बोसरप ने एक किताब लिखी थी

मनीषा पांडेय 1960 में डेनमार्क की इकोनॉमिस्‍ट ईस्‍टर बोसरप ने एक किताब लिखी थी – "विमेंस रोल इन इकोनॉमिक डेवलपमेंट." इस किताब में ईस्‍टर विस्‍तार से बताती हैं कि कैसे आर्थिक विकास प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण और विकास से सीधे जुड़ा हुआ है और इस काम में स्त्रियों की पुरुषों के मुकाबले सीधी हिस्‍सेदारी है. जितनी धरती, जंगल, जल, जमीन आज तक सुरक्षित हैं, उसे सहेजने में 80 फीसदी योगदान ऐतिहासिक रूप से स्त्रियों का है. ईस्‍टर अपने आर्थिक विश्‍लेषण में प्रकृति के संरक्षण के सवाल को अर्थव्‍यवस्‍थाओं और जीडीपी के विकास से जोड़कर देखती हैं और बताती हैं प्राकृति को जनरंदाज करके किया गया कोई भी विकास अंत में हमारी कब्रगाह ही बनेगा.

स्‍त्री सृष्टि करती है और पुरुष विध्‍वंस. अगर ये बात सूक्‍त और नारों में कही जाए, किसी पुराने संस्‍कृत ग्रंथ को कोट किया जाए तो बड़े से बड़ा मर्दवादी भी सह‍मति में सिर हिलाएगा. कहेगा, सही बात है. स्‍त्री कोमत और दयालु है. वो बचाती है, सहेजती है, संजोती है, सृजन करती है. मर्द तो सिर्फ युद्ध करते और तलवार भांजते हैं. लेकिन वहीं इस वाक्‍य को थोड़ा रीफ्रेम करके यूं कहा जाए कि ऐसा है भाईसाहब, मर्दों ने प्रकृति और धरती का सत्‍यानाश कर डाला है. अगर इस सृष्टि को बचाना है तोउसकी कमान औरतों के हाथ में सौंप दीजिए तो कहेंगे, यह कहां का बेहूदा तर्क है. इस बात में क्‍या सच्‍चाई है. ये साइंटिफिक रिसर्च, रिपोर्ट सर्वे है?
जी सरकार, ये रिसर्च रिपोर्ट ही है, जो कह रही है कि प्रकृति और पर्यावरण के लिए औरतें मर्दों के मुकाबले ज्‍यादा अच्‍छी और मददगार हैं. स्त्रियों के हाथों में जीवन और पर्यावरण ज्‍यादा महफूज है.अगर धरती को बचाना है तो इसकी कमान औरतों के हाथों में सौंप देनी चाहिए, वरना मर्दों की विध्‍ंवसक प्रवृत्ति एक दिन हम सबको ले डूबेगी.
स्टिवटरजैंड स्थित BIS (बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट) में यह स्‍टडी छपी है, जिसमें दुनिया की 24 विकसित अर्थव्‍यवस्‍थाओं की 2000 से ज्‍यादा लिस्‍टेड कंपनियों का अध्‍ययन किया गया है. इस रिसर्च का पैरामीटर या मानक ये था कि इन कंपनियों में महत्‍वपूर्ण प्रबंधन के पदों पर जेंडर अनुपात कितना है और हर कंपनी का कार्बन इमिशिन यानि कार्बन उत्‍सर्जन कितना है. इस स्‍टडी के लिए दुनिया के विकसित मुल्‍कों की 2000 कंपनियों का चुना गया.
स्‍टडी में यह पाया गया कि जिन कंपनियों में मिडिल मैनजमेंट के पदों पर महिलाओं की संख्‍या ज्‍यादा है, उन कंपनियों का कार्बन उत्‍सर्जन कम है यानि वो कंपनियां कम ग्रीनहाउस गैस वातावरण में छोड़ रही हैं और पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचा रही हैं. इसके ठीक उलट जिन कंपनियों में इन जिम्‍मेदार पदों पर सिर्फ मर्द विराजमान हैं, वो कंपनियां पर्यावरण को अतिरिक्‍त कार्बन इमिशन से प्रदूषित करने में भी नंबर वन है. आंकड़ों में बात करें तो इस स्‍टडी में पाया कि महिला मैनेजरों की संख्‍या में एक फीसदी की बढ़ोतरी से कार्बन उत्‍सर्जन सीधे 0.5 फीसदी कम हो रहा था.
इस रिसर्च टीम में शामिल येनेर अल्‍तुनबास, लिआनार्डो गांबाकोर्ता, एलेसिओ रिगेझा और गुलिओ वेलिसिग कहते हैं कि ऐसे ही विषय पर पहले हुए कुछ अध्‍ययनों का नतीजा ये नहीं था, जो हमने अपनी रिसर्च में पाया और उसकी मुख्‍य वजह ये थी कि पिछले अध्‍ययनों में निचले स्‍तर पर काम कर रही महिला कर्मचारियों की संख्‍या का अनुपात देखा गया था. अगर निचले स्‍तर पर महिला कर्मचारियों का अनुपात बेहतर है तो भी यहां समझने वाली बात ये है कि वो महिलाएं फैसलाकुन पदों पर नहीं हैं. वो कंपनी की कार्यप्रणाली से जुड़े महत्‍वपूर्ण फैसले नहीं ले रही हैं. वो आधिकारिक पदों पर नहीं हैं. हमें यह देखने की जरूरत है कि जिस जेंडर अनुपात की बात हम कर रहे हैं, उसका आधिकारिक फैसलों में कितना योगदान है. इसलिए इस स्‍टडी में हमने उन्‍हें महिला कर्मियों को शामिल किया, जो आधिकारिक पर्दों पर थीं, बोर्ड मेंबर थीं और कंपनी से जुड़े निर्णायक फैसले कर रही थीं.
अगर किसी को इस रिसर्च में भी जेंडर बायस की संभावना लग रही हो तो उनकी जानकारी के लिए बता दें कि इस रिसर्च टीम को लीड करने वाले इन चार लोगों येनेर अल्‍तुनबास, लिआनार्डो गांबाकोर्ता, एलेसिओ रिगेझा और गुलिओ वेलिसिग में सिर्फ गुलिओ अकेली महिला हैं और बाकी के तीनों पुरुष हैं. यहां बात सिर्फ तथ्‍यों की हो रही है, न कि परवरिश और संस्‍कारों से मिले पूर्वाग्रहों की.
हालांकि एक छोेटे से लेख में प्रकृति और स्‍त्री के अंतर्संबंधों के हर पहलू की व्‍याख्‍या मुमकिन नहीं है, लेकिन मैं यहां सिर्फ कुछ सवालों के साथ आपको छोड़ देना चाहती हूं ताकि आप खुद उस पर ईमानदारी से विचार करें.
गूूगल पर जाइए और उन लोगों को खोजिए, जो पिछले 200 सालों से प्रकृति के संरक्षण और पर्यावरण के बचाव के लिए काम कर रहे हैं. उन लोगों की एक लिस्‍ट बनाइए और देखिए कि उसका जेंडर अनुपात क्‍या है. ए‍थनिक समुदायों से लेकर सभी नस्‍लों और सभ्‍यताओं में प्रकृति के लिए लड़ने और आवाज उठाने वाली 90 फीसदी महिलाएं हैं. धरती के संरक्षण की लड़ाई लड़ने वाले एन्‍वायरमेंट एक्टिविस्‍ट महिलाएं हैं. जिन विशालकाय कंपनियों की कमान मर्दों के हाथों में हैं, उन कंपनियों का मुनाफा भले ज्‍यादा हो, लेकिन पर्यावरण में कार्बन झोंकने में भी उनका योगदान ज्‍यादा है.
येनेर अल्‍तुनबास और लिआनार्डो गांबाकोर्ता कहते हैं कि महिलाएं प्रकृति को लेकर ज्‍यादा सजग और जिम्‍मेदार हैं. उनमें मुनाफे का वैसा अंधा लालच नहीं होता कि ज्‍यादा पैसे कमाने के लिए वो दूसरी जरूरी चीजों को अनदेखा कर दें.
इस समय दुनिया की सबसे बड़ी एन्‍वायरमेंट एक्टिविस्‍ट ग्रेटा थनबर्ग भी एक लड़की है. मर्दों ने बड़ा विकास किया है और दुनिया को विकास के रास्‍ते पर जाने कहां से कहां पहुंचा दिया है. लेकिन एक मिनट ठहरकर ये नहीं सोचा कि जब हम ही नहीं होंगे तो इस विकास का क्‍या फायदा होगा.
विकास और मुनाफा कितना भी जरूरी क्‍यों न हो, आखिरकार मुनाफा इंसानों के लिए ही है, न कि इंसान मुनाफे के लिए.


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