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सम्पादकीय
बच्चों की याददाश्त बेहतर करने के साथ चाहते हैं तो कुछ ऐसा करें कि उनकी सभी इंद्रियां जाग जाएं
Gulabi Jagat
29 April 2022 8:48 AM GMT
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ओपिनियन
एन. रघुरामन का कॉलम:
मैंने बचपन में सबसे ज्यादा जिन खिलौनों को सहेजा, उनमें तीन खिलौनों की जगह सबसे खास थी और उन्हें मैंने किसी के साथ नहीं बांटा, उनमें एक खिलौना था एक डबल डेकर बस। मुझे मां का सुनाया वो किस्सा याद आता है कि कैसे मैं उस समय के बॉम्बे में विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन (अब मुंबई में शिवाजी टर्मिनस) वाली सड़क के बीच बैठ गया था और 25 पैसे में उस खिलौने को लेने की जिद की थी।
मां ने मुझ पर कभी हाथ नहीं उठाया था लेकिन उस दिन पहली बार पिटाई हुई, क्योंकि ट्राफिक संभाल रहे पुलिसकर्मी ने मां को ये कहकर उकसा दिया था कि 'ये कैसा बच्चा है आपका?' मेरी पिटाई से उन्हें बुरा लगा और उन्होंने नागपुर की ट्रेन पकड़ने से पहले वीटी स्टेशन से वह खिलौना खरीद लिया। ये अलग कहानी है कि वे तीनों खिलौने 1990 के बाद मेरी बेटी ने तोड़ दिए पर 1960 के उन तीनों खिलौनों की कहानी सदाबहार बनी रही।
इन दिनों आप स्टेशन पर बमुश्किल ही खिलौनों का ठेला देखेंगे, ज्यादातर खाने-पीने की चीजें होंगी। मुझे ये कहानी याद आई, जब मैंने पढ़ा कि दक्षिण-पश्चिम रेलवे ने स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए खिलौनों के विशेष स्टोर खोलने का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है। 'एक स्टेशन एक उत्पाद' योजना के तहत इस साल मार्च में बेंगलुरु के पास क्रांतिवीर संगोल्लि रायाण्ण (केएसआर) रेलवे स्टेशन पर चन्नापटना खिलौने व शिल्प के लिए एक स्टोर खोला है।
तबसे स्टोर से रोजाना 15 हजार रु. के खिलौने बिक रहे हैं और 10 अप्रैल को सबसे ज्यादा 1,78,430 रु. के खिलौने बिके। यहां मनोरंजक खिलौनों के बजाय शैक्षणिक व शो-पीस की अधिक मांग है। यह बताता है कि यात्रा में माता-पिता बच्चों को सिखाने वाले खिलौने ले रहे हैं और यह बच्चों की स्मृति में हमेशा रहने वाला है। वो इसलिए क्योंकि लॉन्ग टर्म मेमोरी दिमाग में रह जाती है क्योंकि उसका संबंध अटेंशन, भावनाएं व अनुभूति से होता है।
अगर कोई चीज 0.2 सेकंड के लिए भी ध्यान खींचे तो उसके याद रह जाने की संभावना अधिक होती है। क्योंकि जैसे ही हम ध्यान देते हैं, न्यूरोन्स गतिशील हो जाते हैं और स्मृति को शॉर्ट टर्म से लॉन्ग टर्म में ले जाते हैं। इसी तरह जब किसी घटना या किसी चीज से जुड़ी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं की बात हो तो उसके और ज्यादा याद रह जाने की संभावनाएं होती हैं क्योंकि यह एमिग्डाला में गतिविधियां बढ़ा देता है, ये दिमाग को वो हिस्सा है जहां कोई जानकारी प्रोसेस होती है।
उतनी ही जरूरी होती है संवेदी स्मृति, जो कि इंद्रियों जैसे देखने, सूंघने व छूकर महसूस करने से प्राप्त जानकारी पर आधारित होती है। किसी भी स्मृति को सहेजने की प्रक्रिया का ये शुरुआती बिंदु होता है, इसलिए अच्छी तरह याद हो जाता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि एक और तरह की मेमोरी है- फोटोग्राफिक मेमोरी, जिसमें छवियां वापस याद आती हैं, पर यह विशेषता बच्चों में देखी जाती है।
इसलिए परीक्षाओं के इस दौर में इस परिपाटी पर न चलें कि बच्चे पढ़ाई के लिए जितना ज्यादा समय व प्रयास करेंगे, उतना अच्छा प्रदर्शन करेंगेे। जब बात परीक्षा के लिए पढ़ाई की हो या इंटरव्यू या प्रजेंटेशन की, तो लालच आता है कि घंटों बैठकर तथ्य व चित्र पढ़ लें और उन्हें पागलों की तरह दिमाग में बैठा लें।
हालांकि चीजें दोहराने से मदद मिलती है, पर याद रखें कि बच्चों के दिमाग को भी बिना किसी व्यवधान के आराम चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चे, लगातार गहन अध्ययन की तुलना में आराम के बाद चीजें बेहतर रिकॉल कर पाते हैं।
फंडा यह है कि अगर आप बच्चों की याददाश्त बेहतर करने के साथ चाहते हैं कि वे अच्छे अंक पाएं तो कुछ ऐसा करें कि उनकी बाकी इंद्रियां भी जागें, जिससे उनकी मेमोरी का दरवाजा और खुल जाए।
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Gulabi Jagat
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