सम्पादकीय

इस कठिन दौर में परमशक्ति का साथ चाहें तो भक्ति बचाए रखिए

Gulabi Jagat
17 March 2022 8:14 AM GMT
इस कठिन दौर में परमशक्ति का साथ चाहें तो भक्ति बचाए रखिए
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जीवन के कुछ क्षेत्र युद्ध जैसे होते हैं
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
जीवन के कुछ क्षेत्र युद्ध जैसे होते हैं। यदि आप इन क्षेत्रों में उतरे हैं तो समझो युद्ध ही लड़ना है। युद्ध में आपका पक्ष सही हो या गलत, निर्मम होना ही पड़ता है। और, यदि आपके साथ सत्य हो, धर्म के लिए लड़ रहे हों तो निर्मम के साथ-साथ निर्दयी होकर आचरण भी बहुत कठोर रखना पड़ेगा। कृष्ण अपने जीवन में भीष्म, द्रोण, दुर्योधन, कर्ण और कंस, इन पांचों के प्रति अत्यधिक निर्दयी हो गए थे।
निर्मम तो राम भी थे रावण के प्रति, लेकिन फिर भी उन्होंने उसे कई अवसर दिए संभलने के। धर्म की रक्षा के विरुद्ध कृष्ण ने न कभी किसी से कोई समझौता किया, न उदारता बरती। पिछले दिनों हमारे यहां राजनेताओं ने एक युद्ध जीता है और उसमें दुहाई लोकतंत्र की दी गई। हालांकि आज की राजनीति में लोकतंत्र के आदर्शों का कितना मान किया जाता है, यह राजनेता ही समझ सकते हैं।
लोकतंत्र के संबंध, नौकरशाह, आम जनता सबसे होते हैं और सभी से मान की उम्मीद भी होती है। भक्ति भी कुछ ऐसा ही मामला है। भक्ति सबको स्वीकार करती है, सबका मान करती है, सबसे संबंध रखती है, फिर भी अपनी मर्यादा को कभी खंडित नहीं होने देती। राम और कृष्ण पक्षपाती नहीं थे। उन्होंने सिर्फ भक्तों का साथ दिया था। तो इस कठिन दौर में परमशक्ति का साथ चाहें तो भक्ति बचाए रखिए। बाकी काम ईश्वर अपने आप करता चला जाएगा।
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