सम्पादकीय

इशारों को अगर समझो

Triveni
9 July 2021 5:13 AM GMT
इशारों को अगर समझो
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बीते एक सप्ताह में भारत ने चीन को जो तीन बेहद कड़े संदेश दिए हैं, उनकी अहमियत कूटनीतिक जगत में छुपी नहीं रह सकती

बीते एक सप्ताह में भारत ने चीन को जो तीन बेहद कड़े संदेश दिए हैं, उनकी अहमियत कूटनीतिक जगत में छुपी नहीं रह सकती। इस महीने की एक तारीख को जब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपनी स्थापना के सौ साल पूरे करने के मौके को धूमधाम से सेलिब्रेट कर रही थी, पड़ोसी देश भारत ने उसे पूरी तरह अनदेखा कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो दूर किसी भी केंद्रीय मंत्री, बड़े नेता या प्रमुख राजनीतिक दल ने चीन को बधाई देने की जरूरत महसूस नहीं की। इस सांकेतिक चुप्पी को जो लोग संयोग मानकर चल रहे थे, उनके लिए दूसरा गहरा संदेश इसके तीन दिन बाद आया जब 4 जुलाई को अमेरिकी स्वाधीनता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति जो बाइडन को बाकायदा ट्वीट करते हुए बधाई दी। इसके भी तीन दिन बाद 7 जुलाई को तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के 86वें जन्मदिन के मौके पर न केवल प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें सार्वजनिक तौर पर बधाई दी, बल्कि अरुणाचल प्रदेश और सिक्कम जैसे चीनी सीमा से सटे राज्यों समेत सात राज्यों के मुख्यमंत्रियों और कई केंद्रीय मंत्रियों ने बधाई संदेशों के जरिए उनका अभिनंदन किया। यह पहला मौका है जब मोदी ने दलाई लामा को सार्वजनिक तौर पर जन्मदिन की बधाई दी है।

साल 2015 में दलाई लामा ने मोदी को जन्मदिन की बधाई दी थी, जिस पर उन्होंने उनके प्रति आभार जताया था। मगर इसके बाद चीन की इस मामले में अतिरिक्त संवेदनशीलता को देखते हुए सरकार ने थोड़ी सावधानी बरतना ठीक समझा। साल 2018 में दोनों पक्षों में यह सहमति भी बनी थी कि दोनों देश एक-दूसरे की संवेदनाओं, हितों और चिंताओं का सम्मान करेंगे और आपसी असहमतियां सार्वजनिक रूप से नहीं दर्शाएंगे। लेकिन चीन ने अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़े विवादों पर और चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर, जम्मू कश्मीर के स्टेटस आदि मसलों पर भारतीय संवेदनाओं, हितों और चिंताओं के प्रति जिस तरह का रवैया दिखाया, उसके बाद भारत का अपने रुख पर पुनर्विचार करना जरूरी हो गया था। ध्यान रहे कि भारत के इस बदले रुख की अहमियत इस बात में भी है कि यह ऐसे समय सामने आया है, जब दलाई लामा के उत्तराधिकारी की तलाश का मुद्दा गरमा रहा है।
चीन की पूरी कोशिश है कि नए दलाई लामा के चयन की प्रक्रिया पूरी तरह उसके नियंत्रण में रहे। दूसरी ओर अमेरिका ने साफ कर दिया है कि दलाई लामा का चयन तिब्बतियों का मामला है और यह काम पूरी तरह से उन्हीं पर छोड़ा जाना चाहिए। भारत ने अब तक इस मामले में अपना रुख साफ नहीं किया था। उसके ताजा संकेतों ने दुनिया भर में फैले तिब्बती समुदाय के बीच खुशी की लहर तो दौड़ाई ही है, यह भी साफ किया है कि सीमा पर दुश्मनीपूर्ण संबंध और आपसी विवादों पर अड़ियल रुख चीन के लिए भी कई स्तरों पर नुकसानदेह हो सकता है।


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