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ओपिनियन न्यूज
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
'फिर तेरे किस्से, फिर तेरी कहानी याद आई।' यह बात हम अपनी उस जिंदगी के लिए कह सकते हैं जो कोरोना से पहले थी। तीसरी लहर के लगभग कमजोर पड़ते ही जिंदगी एक बार फिर दौड़ पड़ी है और लोग इतनी जल्दी में हैं कि अब छोटे-से मास्क का वजन उठाने का भी इरादा नहीं रखते। इस भागती हुई जिंदगी में हमारा बहुत कुछ बहा जा रहा है। चाहे सत्कर्म करो या बुरे कर्म, कुछ बातें बहाना ही पड़ती हैं।
जैसे- पैसा, आंसू, खून, पसीना, पानी। इन सबके बिना अब कुछ हासिल हो भी नहीं सकता। तो जब आप बहुत तेजी से ही दौड़ रहे हैं, बहुत कुछ बहा रहे हैं तो एक चीज और बहाइए- शरीर के भीतर अपनी ऊर्जा को नीचे से ऊपर। ऊर्जा यदि ऊपर उठ गई तो आप अचुनाव की स्थिति में आ जाएंगे और यही ऊर्जा यदि नीचे पड़ी रह गई तो अनिर्णय की स्थिति में रह जाएंगे।
यहां अचुनाव का मतलब है कर्म करेंगे, परंतु फल के प्रति आसक्ति नहीं होगी, परिणाम के प्रति आग्रह नहीं रहेगा। लेकिन, अनिर्णय की स्थिति हुई तो पहले तो आप कर्म ही नहीं करेंगे, और यदि करेंगे तो गलत या अनुचित करेंगे। इसलिए जब बहुत कुछ बह रहा है, तो क्यों न इस ऊर्जा को भी नीचे से ऊपर बहाया जाए। इसका एक और सुखद परिणाम यह होगा कि इस बहाव में महामारी की चौथी लहर का भय भी बह जाएगा।
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