सम्पादकीय

अगर हम आगे बढ़ना चाहते हैं तो हर चीज को बेहतर बनाना चाहिए, जिनमें चुनाव भी शामिल हैं

Gulabi Jagat
19 May 2022 8:42 AM GMT
अगर हम आगे बढ़ना चाहते हैं तो हर चीज को बेहतर बनाना चाहिए, जिनमें चुनाव भी शामिल हैं
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एक देश एक चुनाव का विचार अकसर जनमानस में उमड़ता-घुमड़ता है और फिर कहीं खो जाता है
चेतन भगत का कॉलम:
एक देश एक चुनाव का विचार अकसर जनमानस में उमड़ता-घुमड़ता है और फिर कहीं खो जाता है। लेकिन देश और नेताओं को निरंतर चुनावी मोड में नहीं रखने का खयाल अच्छा है। स्वयं प्रधानमंत्री ने अनेक बार इसका समर्थन किया है। चूंकि किसी न किसी राज्य में विधानसभा चुनाव हमेशा ही सिर पर रहते हैं, इसलिए नेताओं का फोकस चुनाव जीतने पर बना रहता है।
इससे दीर्घकालीन महत्व की नीतियां- जिनका कोई तात्कालिक लाभ नहीं है- प्राथमिकता के दायरे से बाहर रह जाती हैं। चुनाव करवाना खर्चीला काम है। उन्हें एक साथ करवाने से व्यय घटेगा। जाहिर है, कम चुनाव होने का मतलब है मतगणना के कम दिन और एक्सपर्ट पेनल (जिनमें इन पंक्तियों का लेखक भी शामिल है) को पहले से कम काम मिल पाना, लेकिन वो जरूरी नहीं है। हमारे जैसे बड़े देश के लिए नियमित चुनाव होने से ध्यान भटकता है, क्योंकि इस कारण नेताओं को एक के बाद दूसरी रैली में शामिल होने के लिए निरंतर यात्राएं करनी होती हैं।
इसके बावजूद यह हो नहीं पा रहा है। अनेक राजनीतिक दलों- विशेषकर क्षेत्रीय दलों- ने एक देश एक चुनाव की नीति का विरोध किया है। उन्हें लगता है कि राष्ट्रीय चुनाव के साथ राज्यों के चुनावों को मिला देने से अखिल भारतीय पार्टियों को लाभ मिलेगा। वे मेगा कैम्पेन चलाकर मीडिया कवरेज पर हावी हो जाएंगी।
कइयों को यह भी लगता है कि बहुत सारे चुनाव होने से राजनेता हमेशा चाक-चौबंद रहते हैं, जो कि उनके लिए जरूरी है। इसमें क्रियान्वयन की भी समस्याएं हैं। एक चुनाव होने से निर्वाचन आयोग पर काम का दबाव बहुत बढ़ जाएगा। इसके लिए बड़े संवैधानिक संशोधनों की भी आवश्यकता होगी, जिसके लिए दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत और आधे से ज्यादा राज्यों का समर्थन जरूरी है। यह आसान नहीं। फिर अविश्वास प्रस्ताव से मध्यावधि में सरकारें गिरने का भी प्रश्न है। उन राज्यों को फिर एक देश एक चुनाव के कैलेंडर में कैसे लाया जाएगा?
इन तमाम तर्कों में दम है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इसमें कुछ किया नहीं जा सकता। शायद बीच का कोई रास्ता निकाला जा सकता है, जैसे एक देश और दो चुनाव, या जरूरत पड़ने पर तीन चुनाव। इस बीच के रास्ते से भी हमें एक देश एक चुनाव के बहुत सारे लाभ मिल सकते हैं, जबकि इससे उसकी समस्याओं से बचा जा सकता है। यह ऐसे कारगर साबित हो सकता है।
सबसे पहले एक देश दो चुनाव की बात करते हैं। इसमें लोकसभा चुनाव अपने समय पर होंगे और उसके ढाई साल बाद सभी विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे। इसे मिड-टर्म-ऑल-स्टेट-इलेक्शंस कहा जा सकता है, क्योंकि ये लोकसभा चुनावों की अवधि के बीच में होंगे।
इससे राज्यों के चुनाव केंद्र के चुनाव से अलग हो जाएंगे और उससे टकराएंगे नहीं। इससे अकाउंटेबिलिटी भी निर्मित होगी, क्योंकि यह केंद्र सरकार के कार्यकाल के बीच में आएंगे। बहुत सारे चुनावों को दो में बांट लेने से हम काफी सारा खर्चा बचा सकेंगे।
वैसे में अविश्वास प्रस्ताव और सरकार भंग होने की स्थिति में क्या होगा? इसका एक रास्ता है। अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में फिर से चुनाव होते हैं। लेकिन अगर मौजूदा सरकार अपने कार्यकाल के ढाई साल से पहले गिर जाती है- मान लीजिए कि वह दो साल का कार्यकाल पूरा करके गिर जाती है- तो वैसे में नई सरकार शेष बचे कार्यकाल यानी तीन साल के लिए चुनी जाएगी। और उस राज्य के चुनाव अपने निर्धारित समय यानी मिड-टर्म-ऑल-स्टेट-इलेक्शंस के दौरान होंगे। लेकिन अगर सरकार ढाई साल के बाद गिरती है- मान लीजिए कि वह तीन साल का कार्यकाल पूरा करके गिरती है- तो नए चुनाव शेष बचे कार्यकाल यानी दो वर्ष और नए कार्यकाल यानी पांच वर्ष मिलाकर सात वर्षों के कार्यकाल के लिए होंगे।
इससे फिर इसके बाद होने वाले चुनाव अपने मिड-टर्म-ऑल-स्टेट-इलेक्शंस कैलेंडर के अनुरूप हो जाएंगे। इससे यह होगा कि भले बीच में कुछ सरकारें गिरती रहें, लेकिन कैलेंडर डिस्टर्ब नहीं होगा और वह अपने कालचक्र को निरंतर बनाए रखेगा।
अगर सभी राज्यों के लिए एक मध्यावधि चुनाव बहुत कठोर लग रहा है तो हम दो मध्यावधि विधानसभा चुनाव भी करा सकते हैं। लोकसभा का कार्यकाल 60 महीनों का होता है। तो हम हर 20 महीने पर एक राज्यों की विधानसभा के लिए मध्यावधि चुनाव करा सकते हैं और वे हर बार आधे राज्यों के लिए होंगे। इससे भी हमें एक देश एक चुनाव फॉर्मेट के बहुत सारे फायदे मिल जाएंगे और हम खर्चे बचा सकेंगे।
हम राजनेताओं को भी हमेशा चुनावी मोड में रहने से बचा सकेंगे। इस फॉर्मेट में भी अगर कोई राज्य सरकार गिरती है तो हम नए चुनाव केवल शेष बचे कार्यकाल के लिए करवा सकते हैं, बशर्ते 40 महीने से ज्यादा शेष हों। या अगर 20 महीने से कम शेष हों तो हम इस शेष कार्यकाल के साथ अगले पूरे कार्यकाल के लिए चुनाव करा सकते हैं।
यह एक बड़े सुधार कार्यक्रम का केवल एक सरलीकृत प्रस्तुतीकरण है, जिसके लिए बहुत सारी सर्वसम्मति और संसदीय प्रयासों की जरूरत होगी। इसके ब्योरों पर और काम किया जा सकता है, लेकिन मौजूदा ढांचे में बदलाव जरूरी हैं। इससे राष्ट्रीय संसाधनों का नुकसान हो रहा है और नेताओं की ऊर्जा भी जाया हो रही है। एक देश और दो या तीन चुनावों वाले फॉर्मेट के साथ हम इन समस्याओं से बच सकते हैं। बदलाव भले मुश्किल हो, या यह थोड़ा डराने वाला भी हो सकता है। लेकिन इसी से हम आगे बढ़ सकते हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
मौजूदा चुनावी फॉर्मेट चल नहीं सकता
चुनावों के मौजूदा ढांचे में बदलाव जरूरी हो गए हैं। अलग-अलग चुनाव होने से राष्ट्रीय संसाधनों का नुकसान हो रहा है और नेताओं की ऊर्जा भी निरंतर रैलियां करने से जाया हो रही है। एक देश और दो या तीन चुनावों वाले फॉर्मेट के साथ हम इन समस्याओं से बच सकते हैं। बदलाव भले मुश्किल हो, या यह थोड़ा डराने वाला भी हो सकता है। लेकिन इसी से हम आगे बढ़ सकेंगे।
Gulabi Jagat

Gulabi Jagat

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