सम्पादकीय

पर्यावरण नहीं बचाएंगे तो बीमारियां बढ़ती जाएंगी, 'वन हेल्थ' यानी लोगों, जानवरों व पर्यावरण का स्वास्थ्य एक-दूसरे पर निर्भर है

Gulabi
21 Oct 2021 6:21 AM GMT
पर्यावरण नहीं बचाएंगे तो बीमारियां बढ़ती जाएंगी, वन हेल्थ यानी लोगों, जानवरों व पर्यावरण का स्वास्थ्य एक-दूसरे पर निर्भर है
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पर्यावरण नहीं बचाएंगे तो बीमारियां बढ़ती जाएंगी

डॉ चन्द्रकांत लहारिया का कॉलम:

मानव स्वास्थ्य का पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से गहरा ताल्लुक है। पिछले कुछ दशकों में कई नई बीमारियां फैली हैं और पुरानी बीमारियां फिर से सिर उठाने लगीं हैं तो इसके लिए मानव की पर्यावरण से छेड़छाड़ एक बहुत बड़ा कारण है। जब जंगलों की कटाई और अतिक्रमण होता है तो बीमारी के कारक ऐसे सूक्ष्मजीवों का मनुष्यों से सामना होता है, जो तब तक लोगों से दूर, जंगलों तक सीमित थे।

पेड़ों को काटने और प्रकृति से छेड़छाड़ से होने वाले जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि का नतीजा है कि कई देशों में परिस्थितियां बीमारी फैलाने वाले सक्ष्मजीवों के अनुकूल बनती जा रही हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाएं, जैसे कि लू, शीतलहर, तूफान, चक्रवात और बाढ़ों की दर और गंभीरता भी बढ़ती जा रही हैं।

इन सबके अप्रत्यक्ष स्वास्थ्य प्रभावों में पानी और मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों का बढ़ना, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं और अस्पतालों तथा स्वास्थ्य केंद्रों को ढांचागत क्षति के रूप में देखने मिलता है। उत्तराखंड, ओडिशा और केरल समेत भारत के कई राज्यों में इसके प्रत्यक्ष उदाहरण नियमित रूप से देखने को मिलते रहते हैं।

जलवायु परिवर्तन को पिछले कुछ दशकों से एक बड़ी चुनौती के रूप में पहचाना गया है। इसी दिशा में वर्ष 1995 से हर वर्ष सयुंक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मलेन होता आ रहा है। सबसे पहला सम्मेलन बर्लिन में हुआ। फिर 2002 में आठवां सम्मेलन नई दिल्ली में हुआ था।

कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज या कॉप (सीओपी), इस सम्मेलन का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है, जिसमें दुनिया के सभी देशों के प्रतिनिधि भाग लेते हैं। जाहिर है कि कॉप में होने वाली चर्चा और इसके निर्णयों पर सारी दुनिया की नज़र और ध्यान होता है। यही वजह है कि इस वार्षिक सम्मलेन की पहचान कॉप के नाम से अधिक है। वर्ष 2015 में कॉप-21 में महत्वपूर्ण 'पेरिस समझौते' पर पर्यावरण के बचाव के लिए खास क़दमों के लिए कई देशों ने सहमति जाहिर की थी।

इस साल, 26वां सम्मेलन (कॉप-26) ग्लासगो, स्कॉटलैंड में 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक होने जा रहा है। इस सम्मेलन को वैसे तो 2020 में होना था, लेकिन महामारी की वजह से इसे स्थगित कर दिया गया था। कोविड-19 महामारी के शुरू होने के बाद कॉप की यह पहली मीटिंग होगी। कोविड-19 ने हमें एक बार फिर चेताया है कि मानव, जानवर और पर्यावरण का भविष्य एक-दूसरे से आंतरिक रूप से जुड़ा हुआ है। जो परिस्थितियां पर्यावरण और जलवायु को नुकसान पहुंचा रही हैं, वे सभी मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरा हैं।

कुछ दिनों पहले, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 'जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य' के बारे में एक विशेष रिपोर्ट जारी की थी। यह रिपोर्ट कहती है कि जीवाश्म ईंधन (जैसे कोयला) का इस्तेमाल न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि कई लोगों की मृत्यु का कारण भी बन रहा है। वायु प्रदूषण, जिसके लिए अधिकतर जीवाश्म ईंधन जिम्मेदार हैं, की वजह से दुनियाभर में हर मिनट अनुमानतः 13 मृत्यु होती हैं।

अगर हवा की गुणवत्ता को विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर ला दिया जाए, तो इनमें से 80 प्रतिशत तक मृत्यु रोकी जा सकती हैं। फिर, जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक कुप्रभाव सबसे गरीब और कमज़ोर तबके पर पड़ता है और सामाजिक असमानताएं बढ़ती हैं। रिपोर्ट में वैश्विक समुदाय से अंतरराष्ट्रीय जलवायु संबंधी चर्चाओं में स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता और अवसरों के बारे में दस सुझाव दिए गए हैं।

रिपोर्ट उन जलवायु संबंधी कदमों को प्राथमिकता देने की बात करती है, जिनसे अधिकतम स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक लाभ हैं। शहरी वातावरण और परिवहन तथा लोगों के लिए पैदल चलने, साइकिल चलाने, घूमने और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाने की बात भी रिपोर्ट में की गई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के जारी होने के समय ही करीब 4.5 करोड़ डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों का प्रतिनिधित्व करने वाली दुनिया की 300 से ज्यादा संस्थाओं ने दुनिया के नेताओं और कॉप-26 के प्रतिनिधियों के नाम एक खुला खत लिखा। इस पत्र में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य नुकसान हम पहले से ही भुगत रहे हैं और आने वाली किसी भी स्वास्थ्य आपदा और त्रासदी को रोकने के लिए वैश्विक समुदाय को अविलंब कदम उठाने चाहिए। इस बात पर जोर दिया है कि हमें दुनियाभर में सुदृढ़ और ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली तैयार करनी होगी जो प्राकृतिक आपदाओं को सहन कर सके और साथ ही कार्बन उत्सर्जन कम से कम हो।

विश्व अभी भी कोविड-19 महामारी के मध्य में है। दुनियाभर के विषेशज्ञों में 'वन हेल्थ' अर्थात 'एक स्वास्थ्य' विचारधारा, जो लोगों, जानवरों और पर्यावरण के स्वास्थ्य के बीच अंतरसंबंध को पहचानती है, के बारे में सहमति है। आने वाली महामारियों से बचने और एक स्वस्थ भविष्य के लिए, हमें मिलकर पर्यावरण को बचाना होगा और जलवायु परिवर्तन को रोकना होगा। दुनिया के हर देश को जरूरी कदम उठाने होंगे। सवाल यह है कि अगर विश्व समुदाय अभी भी मिलकर कदम नहीं उठाएगा, तो फिर कब उठाएगा?

(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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