सम्पादकीय

अगर हम सभी अपने कपड़ों की धुलाई कुछ कम बार करें तो इससे पर्यावरण को प्रदूषण से थोड़ी राहत मिल सकती है

Gulabi
22 Sep 2021 3:40 PM GMT
अगर हम सभी अपने कपड़ों की धुलाई कुछ कम बार करें तो इससे पर्यावरण को प्रदूषण से थोड़ी राहत मिल सकती है
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पर्यावरण को प्रदूषण

एन. रघुरामन का कॉलम:

किसी हाई प्रोफाइल पार्टी में, कोई चिकनाई वाला खाना गलती से आपकी महंगी साड़ी पर गिर जाए तो आप क्या करेंगी? मैंने कुछ पेज थ्री पार्टियों में देखा है कि महिलाएं पर्स से एक स्पंज निकालती हैं और गीले दाग पर दबाती हैं, ताकि वह ज्यादातर नमी सोख ले और दाग फैले न।

वही महिलाएं फिर गर्म पानी मांगती हैं और उसमें एप्पल साइडर विनेगर डालकर, इसी स्पंज से दाग बिल्कुल साफ कर देती हैं। एक अन्य पार्टी मैं मेने देखा कि किसी के कपड़ों पर रेड वाइन गिर गई तो उसने तुरंत कपड़े के उस हिस्से पर नमक लगा दिया। उस दिन मैंने सीखा कि नमक अतिरिक्त तरल सोख लेता है, साथ ही दाग भी हटाता है और इसे महंगी ड्रेस पर लगे चाय के दाग मिटाने में भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
मैंने एक महिला से पूछा कि उन्हें स्पंज और विनेगर कहां से मिला? उन्होंने तुरंत जवाब दिया, 'यह पर्स की वैनिटी किट का हिस्सा है, जिसे हम डिनर पर साथ ले जाते हैं।' मैं स्तब्ध रह गया। वे घर जाकर सिर्फ दाग वाले हिस्से पर डिटर्जेंट लगाकर, उसे धोकर अपनी महंगी ड्रेस अगली बार पहनने के लिए तैयार कर लेती हैं। कीचड़ के दाग के लिए वे उसके सूखने का इंतजार करती हैं और उसपर थोड़ा-सा ब्रश मारकर साफ कर देती हैं।
हाल ही में एक पार्टी में मुझे पता चला कि अमीर और प्रसिद्ध लोगों में कपड़े धोने की गतिविधि न्यूनतम करने का ट्रेंड शुरू हुआ है। उनका सफाई का फलसफा है, 'अगर आपको कोई चीज साफ करने की जरूरत नहीं है, तो साफ न करें।' बहुत ज्यादा लॉन्ड्री से बड़ी मात्रा में सीओटू पैदा होती है और माइक्रोफाइबर बहकर समंदर में पहुंच जाते हैं। इसीलिए यूके की सोसायटी ऑफ केमिकल इंडस्ट्री ने लोगों से कम से कम कपड़े धोने का निवेदन किया है।
बड़ी सोसायटी कम धुलाई के तरीके तलाश रही हैं और दो धुलाई के बीच कपड़े लंबे चलें, इसलिए वे स्पॉट क्लीनिंग, स्पंज क्लीनिंग, ब्रशिंग, स्टीमिंग और यहां तक जींस फ्रीजर करने जैसी तकनीकें तक अपना रही हैं। जींंस को फ्रीजर में रखने से बदबू पैदा करने वाले ज्यादातर बैक्टीरिया मर जाते हैं और वह तरोताजा हो जाती हैं। इसी तरह वे कुछ कपड़ों को क्लब के स्टीम रूम ले जाते हैं और 30 मिनट की स्टीम से बदबू चली जाती है। याद रखें कि वॉशिंग मशीन की खोज से पहले कपड़े धोना मेहनत भरा और महिलाओं को थकाने वाला था। आज भी ग्रामीण महिलाएं इसमें संघर्ष करती हैं। वॉशिंग मशीनों ने यह काम तो आसान कर दिया लेकिन पर्यावरण प्रभावित होने लगा। एक टी-शर्ट का उदाहरण देखें, जिसे आमतौर पर 100 बार पहना जाता है और 50 बार धोया-सुखाया जाता है। यूके की प्रोफेसर जूलिया स्टीनबर्गर ने 2009 में शोध में पाया कि टीशर्ट धोने और सुखाने पर 70% कार्बन उत्सर्जन होता है, जबकि इसे बनाने में केवल 30% उत्सर्जन होता है।
धुलाई के समय से करीब तीन गुना ज्यादा सीओटू उत्सर्जन टंबल ड्रायर (कपड़े सुखाने की मशीन) से होता है। कोई भी बदबूदार कपड़ों को प्रोत्साहित नहीं करना चाहता। लेकिन खुद से यह तो पूछ ही सकते हैं कि क्या हमारे कुछ कपड़े सिर्फ इसलिए वॉशिंग मशीन में जा रहे हैं क्योंकि मशीन पूरी नहीं भरी।
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