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आइपीएल लीग नहीं होती तो भारत की तेज गेंदबाजी आक्रमण के सिरमौर जसप्रीत बुमराह की खोज कैसे हुई होती
ब्रजबिहारी।
आइपीएल लीग नहीं होती तो भारत की तेज गेंदबाजी आक्रमण के सिरमौर जसप्रीत बुमराह की खोज कैसे हुई होती। आइपीएल न होता तो लोगों के बाल काटने वाले सैलून चलाने वाले का बेटा राजस्थान रायल्स के तेज गेंदबाज कुलदीप सेन अपने खेल से परिवार की किस्मत कैसे बदल पाता।
डीन एल्गर ने केरी पैकर की याद दिला दी। दक्षिण अफ्रीका की टेस्ट टीम के कप्तान डीन एल्गर चोटी के तेज गेंदबाज कसिगो रबाडा जैसे अपने देश के कई खिलाड़ियों के बांग्लादेश के खिलाफ टेस्ट मैच के बजाय आइपीएल में खेलने से नाराज हैं और उन्होंने चेतावनी दी है कि भविष्य में उन्हें टीम में शामिल नहीं किया जाएगा। कुछ ऐसा ही वर्ष 1977 में हुआ था। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाले देशों के बोर्डो को ऐसी ही चेतावनी देनी पड़ी थी, क्योंकि आस्ट्रेलिया के केरी फ्रांसिस बुलमोर पैकर नाम के एक 'मीडिया मुगल' ने इंग्लैंड के कप्तान टोनी ग्रेग, आस्ट्रेलिया के कप्तान इयान चैपल, वेस्ट इंडीज के क्लाइव लायड और पाकिस्तान के इमरान खान सहित चोटी के खिलाड़ियों को मोटी रकम पर साइन किया था और वल्र्ड सीरीज क्रिकेट की घोषणा की थी।
यह सीरीज भले ही दो साल चली और 1979 में इसका अवसान हो गया, लेकिन इसने क्रिकेट को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया। पैकर अपने चैनल 'नाइन नेटवर्क' के लिए आस्ट्रेलिया क्रिकेट बोर्ड से प्रसारण अधिकार चाहते थे जो उन्हें नहीं मिला। इससे आहत पैकर ने वह कर दिखाया जो उससे पहले तक अकल्पनीय था। उस समय तक क्रिकेट को जीवन जीने के जरिया के रूप में नहीं देखा जाता था। इसका कोई बाजार भी नहीं था। खिलाड़ी मशहूर थे, लेकिन उनकी मार्केटिंग नहीं होती थी। पैकर ने यह सब बदल कर रख दिया। आज आप दुनिया भर में टी-20 क्रिकेट को लेकर जो जुनून देख रहे हैं, उसके बीज कैरी पैकर ने ही बोए थे। चाहे खेल के नियम बदलने की बात हो या फिर रंगीन ड्रेस और रंगीन किट और बनी बनाई पिच। आज खिलाड़ियों को चीते की फुर्ती से कैच लपकते या स्प्रिंटर यानी धावक की तरह बाउंड्री पर चार रन रोकते देखते हैं तो इसका श्रेय भी वल्र्ड सीरीज को ही है, क्योंकि तब खिलाड़ियों को कम समय में कई मैच खेलने होते थे, इसलिए फिटनेस बहुत जरूरी थी।
दक्षिण अफ्रीका की टेस्ट टीम के कप्तान डीन एल्गर
डीन एल्गर की व्यथा ने आज क्रिकेट की दुनिया में जिस चर्चा को जन्म दिया है, वैसा ही वर्ष 1977 में भी देखा गया था। खिलाड़ियों के राष्ट्रीय कर्तव्य के बजाय बाजार के इशारे पर किसी क्रिकेट लीग में खेलने को लेकर खूब बहस हुई। आज इंडियन प्रीमियर लीग के कारण कई खिलाड़ी राष्ट्रीय कर्तव्य को तिलांजलि देकर निजी हित और बाजार की ताकत के साथ चल रहे हैं तो एक बार फिर उसकी याद ताजा हो गई है। आज से लगभग 45 वर्ष पहले वल्र्ड सीरीज के समय क्रिकेट खिलाड़ियों को बहुत ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे। उन्हें विज्ञापन से भी कोई आमदनी नहीं होती थी। जबकि आज के खिलाड़ी यह भी नहीं कह सकते हैं कि उन्हें राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में खेलने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं मिलते हैं।
यदि भारतीय क्रिकेट की ही बात की जाए तो प्रति टेस्ट क्रिकेट मैच 15 लाख रुपये, प्रति एकदिवसीय मैच छह लाख रुपये और प्रति टी-20 मैच तीन लाख रुपये मिलते हैं। इसके बावजूद खिलाड़ी आइपीएल को इसलिए तरजीह दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें उससे भी ज्यादा चाहिए। हम चाहे कितनी बहस कर लें, दुनिया का भविष्य बदलने वाली ऐसी घटनाएं होती रहेंगी। बहाना भले ही पैकर और आस्ट्रेलिया क्रिकेट बोर्ड के बीच प्रसारण अधिकार विवाद था, लेकिन इसने क्रिकेट को दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेलों में शामिल करने की नींव डाली।
देखा जाए तो इंटरनेट का आविष्कार युद्ध लड़ने के हथियार के रूप में हुआ था। अमेरिका और रूस में शीत युद्ध खत्म होने के बाद इसे आम आदमी के लिए खोल दिया गया। परिणाम आज हम सब देख रहे हैं। इंटरनेट आज पूरी दुनिया में अरबों लोगों का जीवन बदलने का एक बड़ा माध्यम बन चुका है। साइबर हमले भी हो रहे हैं और इससे जुड़े और भी खतरे सामने आ रहे हैं। यह अभी भी युद्ध का हथियार बना हुआ है। फिर भी इसके फायदे इसके नुकसान से ज्यादा हैं और इंसान हमेशा ऐसी ही चीजों को वरीयता देता है।
पांच दिन के खेल को कुछ घंटे का शानदार तमाशा बनते हुए हम सब देख रहे हैं। इस पर आंसू बहाने वालों की भी कमी नहीं है, लेकिन आगे का रास्ता यही है। हम पीछे नहीं लौट सकते। अब आगे चलकर टी-10 लीग का जमाना आएगा। जम्मू कश्मीर का यह खिलाड़ी आइपीएल में तहलका मचा रहा है।

Rani Sahu
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