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पिछले कई वर्षों में तालाबों और पोखरों का शहर बेंगलुरु कंट्रीट के जंगल में बदल गया
न. रघुरामन। पिछले कई वर्षों में तालाबों और पोखरों का शहर बेंगलुरु कंट्रीट के जंगल में बदल गया, जिससे जल संकट पैदा हो गया। ऐसा तब है, जब यहां हर साल 1300 से 1400 मिलीमीटर बारिश होती है, जो अंतत: नाली में बह जाती है। स्थानीय नगरीय निकाय ने शायद ही कभी बारिश का पानी इकट्ठा कर दोबारा इस्तेमाल करने और रेनवाटर हार्वेस्टिंग की योजना बनाई हो। मौजूदा तालाबों और पोखरों के जीर्णोद्धार के प्रयास भी नहीं हुए।
वर्षों लाखों लोग पानी के लिए प्राइवेट टैंकर पर निर्भर रहे। पानी की जरूरत पूरी करने के लिए अनाधिकृत कुएं खोदना यहां आम है। नीति आयोग की 2017 की रिपोर्ट में बेंगलुरु दुनिया के उन 11 शहरों में शामिल था, जहां 2020 तक भूजल खत्म हो जाएगा। लेकिन जल नायकों और संरक्षणकर्ताओं के लगातार प्रयासों की बदौलत यहां स्थिति सुधरी और अब बेहतर हो रही है।
अगर कोई तालाब खोदना या उसका जीर्णोद्धार करना चाहता है तो पहले ऐसा तालाब पहचानना होगा जिसे तुरंत जीर्णोद्धार की जरूरत है। इसके बाद परियोजना की अनुमानित लागत निकालें। चूंकि यह जनहित का काम है, इसलिए विस्तृत योजना, ब्लू प्रिंट और मानक संचालन प्रक्रिया के साथ किसी कंपनी से संपर्क करना होगा, जो इस कार्य में अपने कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) का कुछ बजट लगाकर मदद कर सके।
पैसे की व्यवस्था के बाद तालाब के प्रांगण में झोपड़पट्टी में रह रहे लोगों और ग्रामीणों को अतिक्रमण हटाने के लिए मनाना होगा। इसके बाद कई लाख क्यूबिक सेंटीमीटर कीचड़ हटाना होगा। इसके बाद मुख्य बांध और तालाब के चारों तरफ चलने का रास्ता बनेगा। अगर आपको लगता है कि यह बड़ा काम है और केवल समझदार लोग, बड़ी टीम के साथ यह कर सकते हैं तो बेंगलुरु की 11वीं की छात्रा रचना बोडुगु से मिलिए।
वह आपको जलस्रोत के जीर्णोउद्धार के तरीके बताएगी क्योंकि उसने खुद ऐसी परियोजना 15 सितंबर से शुरू कर 10 नवंबर को, यानी महज 37 दिन में खत्म की है। रचना के प्रयासों ने बेंगलुरु शहर से कुछ किलोमीटर दूर स्थित कोम्मासांद्रा गांव के पास बने तालाब में नया जीवन फूंक दिया है। इस तालाब पर अतिक्रमण था और इलाके के नागरिकों की उदासीनता के कारण इसका संसाधनों के लिए दोहन हो रहा था। करीब 12 एकड़ में फैले इस तालाब का पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट होने की कगार पर था।
निर्माण कार्यों के लिए मिट्टी और बजरी निकालने में तालाब का इस्तेमाल किया जा रहा था। इसके पास बना बांध जर्जर हो चुका था। बाकी जगह बेकार पौधों से भर गई थी। अतिक्रमण वाले घरों तक पहुंचने के लिए तालाब के बीच से गैरकानूनी रास्ता निकाल दिया गया था। जब रचना ने मृतप्राय तालाब को बचाने की इच्छा जाहिर की तो उसकी मां ने आनंद मालिगावड़ से संपर्क करने की सलाह दी, जिन्होंने 11 तालाबों का जीर्णोद्धार किया है और उनकी 2025 तक 50 ऐसे ही तालाबों पर काम करने की योजना है।
आनंद बेंगलुरु के तालाब संरक्षणकर्ता हैं, जो इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर पूरी तरह इस काम में लगे हैं ताकि बेंगलुरु का जलसंकट कम हो। उनकी मदद से रचना को 37 दिन में सफलता मिली। आज वह अन्य छात्रों के लिए प्रेरणा है, जिनके साथ वह ऐसी अन्य जीर्णोद्धार परियोजनाएं करने की योजना बना रही है। फंडा यह है कि अगर आपमें इच्छाशक्ति हो तो बड़ी परियोजनाएं भी बच्चों का खेल बन जाती हैं और कभी-कभी बच्चे भी खेल-खेल में बड़े काम कर जाते हैं।
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