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अगर मां को भरोसा नहीं था, न खुद पर न दुनिया पर तो क्या इसके लिए वो दोषी थी ?
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | मनीषा पांडे| यह जानना बड़ा रोचक है कि ओरहान पामुक ने अपने मेमॉयर "इस्तांबुल : मेमॉयर एंड द सिटी" में अपनी मां और पिता के बारे में क्या और किस तरह से लिखा है.
अब ओरहान अपने पापा के कमरे में जाता है. पापा अपनी शानदार स्टडी में आरामकुर्सी पर बैठे कोई किताब पढ़ रहे हैं. हाथों में सिगार है. कमरे की खिड़की से बॉस्फोरस दिखाई दे रहा है. समंदर से छनकर भीनी-भीनी हवा उस कमरे में आ रही है. ओरहान अपनी पेंटिंग दिखाता है. पिता ओरहान की पेंटिंग अपने हाथों में लेकर उसे काफी देर तक ध्यान से देखते रहते हैं और उसके बारे में बात करते हैं
इस्तांबुल शहर
वो पेंटिंग की व्याख्या कर रहे हैं- "इस पेड़ में एक भी पत्ता क्यों नहीं है और नदी का पानी इतना गहरा नीला क्यों है? यह आदमी कुछ उदास दिख रहा है, क्यों?" और भी तमाम बातें. पिता छह साल के बच्चे की एक तस्वीर को किसी गंभीर कलाकार की कलाकृति की तरह देखते और उसकी बारीकियों का विश्लेषण करते हैं. और सबसे बड़ी बात उन्होंने एक भी बार ओरहान से ये नहीं पूछा कि "व्हॉट अबाउट योर होमवर्क?"
मां की चिंता अलग है और पिता की अलग.
लेकिन ओरहान के माता-पिता की ये कहानी यहीं खत्म नहीं होती. इस्तांबुल का आखिरी चैप्टर – "मां के साथ बातचीत." ओरहान ने देखा कि मां सालोंसाल ड्रॉइंगरूम में बैठकर देर रात तक अकेले ताश खेला करतीं और पिता के घर लौटने का इंतजार करतीं. पिता नहीं लौटते. पिता यूरोप में किसी दूसरी स्त्री के साथ थे. ओरहान आर्किटेक्चर स्कूल में पढ़ रहा था, लेकिन कभी कॉलेज नहीं जाता था. मां से रोज बहस होती. कॉलेज जाओ, पढ़ाई करो. पढ़ोगे नहीं तो नौकरी कैसे मिलेगी. काम क्या करोगे. जीवन कैसे चलेगा. नौकरी बहुत जरूरी है. तुम्हें पेंटिंग बनाने या लिखने से किसने रोका है, लेकिन तुम्हारा फोकस अभी अपनी पढ़ाई और कॅरियर पर होना चाहिए.
ओरहान मां से लड़कर पूरी-पूरी रात इस्तांबुल की सड़कों पर भटकता रहता और दोपहर में उठकर अपनी किताब लिखता. इसी दौरान ओरहान ने अपना पहला नॉवेल लिखा – chavdet bay and his sons. मां इस लिखाई के प्रति उदासीन और ओरहान के कॉलेज न जाने को लेकर चिंतित रहती थी. कुढ़ती रहती थी.
"इस्तांबुल : मेमॉयर एंड द सिटी"
महीनों बाद जब पिता यूरोप से लौटे और ओरहान से मिले और उसने अपना पहला उपन्यास लाकर उनके सामने रख दिया. वह पढ़ने लगे. पढ़ने लगे तो पढ़ते ही गए. किताब खत्म करके उन्होंने पामुक को गले से लगा लिया और बोले, "यू विल बी पाशा (किंग) वन डे."
पिता की भविष्यवाणी सच साबित हुई, जब ओरहान पामुक को 2007 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया. वो एक करिश्माई लेखक हैं, ये उन्हें पढ़ने वाले जानते हैं.
लेकिन मैं तो कुछ और ही सोच रही हूं. उसकी मां को निबुर्द्धि स्त्री कहकर खारिज कर देने में मुझे डर लगता है. मैं तो ये जानना चाहती हूं कि ये हुआ क्योंकर और कैसे. मां क्यों रसोई में थी और पिता स्टडी में. पिता क्यों यूरोप घूमते रहे और मां क्यों साल-दर-साल ड्रॉइंग रूम में बैठी पिता के लौटने का इंतजार करती रही. मां को क्यों बेटे के कॅरियर का डर सताता रहा और पिता को उसके लिखे की ताकत पर भरोसा करने का आत्मविश्वास कहां से मिला. उतना भरोसा जिंदगी पर, खुद पर और दुनिया पर मां को क्यों नहीं था. मां क्यों बाहर की दुनिया से इस कदर खौफ खाई रहती थी.
अगर मां में वह समझ और भरोसा नहीं था, न अपने ऊपर न ओरहान के भविष्य पर तो क्या इसके लिए क्या मां दोषी थी ?