- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- लिव इन रिलेशनशिप यदि...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पिछले दिनों इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सहजीवन (लिव इन रिलेशनशिप) को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि अगर विवाहित महिला दूसरे पुरुष के साथ पत्नी की तरह रहती है तो इसे लिव इन रिलेशनशिप नहीं माना जा सकता। विवाहित होते हुए भी अलग पुरुष अथवा स्त्री के साथ रहने पर वह व्यक्ति भारतीय दंड संहिता की धारा 494/495 के अंतर्गत अपराधी है।
न्यायालय की यह टिप्पणी स्पष्ट करती है कि विवाहित होते हुए भी किसी अन्य के साथ सहजीवन में रहना अपराध है। इस पूरे संदर्भ में देखा जाए तो विवाहित होते हुए भी किसी स्त्री या पुरुष का किसी अन्य के साथ सहजीवन में रहना अनुचित है, जबकि सामाजिक और वैधानिक रूप से विवाह को जीवनपर्यंत निभाने की बाध्यता नहीं है। अगर विवाह संबंधों में कोई भी एक साथ नहीं रहना चाहता तो वह न्यायालय में संबंध विच्छेद की अपील कर सकता है। यह कानूनी अधिकार प्राप्त होने पर भी बिना संबंध विच्छेद किए नवीन संबंधों की स्थापना करना वैधानिक और सामाजिक रूप से अस्वीकार ही नहीं, अपितु अपनी स्वतंत्रता और स्वच्छंदता को स्थापित करने की कुचेष्टा भी है।