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नागरिकता संशोधन कानून पास कराने में तेजी तो सरकार
पिछले पांच साल में छह लाख भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी है और घुसपैठियों को निकालने के लिए नागरिकता कानून के नियम दो साल हो गए, अभी तक नहीं बने हैं. 9 दिसंबर 2019 को लोकसभा में और 11 दिसंबर 2019 को राज्यसभा में नागरिकता कानून पास हुआ था. 12 दिसंबर को राष्ट्रपति ने दस्तख़त कर दिया था. यह कानून 10 जनवरी 2020 को नोटिफाई हुआ था. तब से लेकर आज तक इस कानून को लागू करने के नियम नहीं बने हैं बल्कि सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है. इस 12 दिसंबर को नागरिकता कानून को बने हुए दो साल हो जाएंगे लेकिन आज तक इसके नियम का पता नहीं है. क्या मान लिया जाए कि सरकार अब इस कानून को लेकर गंभीर नहीं है? नियमों का नहीं बनाना या लंबे समय के लिए टालते जाना, कृषि कानूनों की वापसी के समान ही है? जिस कानून को साहसिक, ऐतिहासिक बताया गया, वोट बैंक से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में लिया गया फैसला बताया गया उसके लागू करने के नियम क्यों नहीं बने हैं. आप उस वक्त लोकसभा में या चुनावी रैलियों में इस विषय पर अमित शाह का भाषण सुन लीजिए, लगेगा कि यह कानून इतना ज़रूरी है कि पास होने के अगले दिन से ही लागू होना है.
तो गृह मंत्री बताएं कि उन घुसपैठियों को पहचानने और निकालने के लिए जो कानून पास हुआ उसके नियम कहां हैं. क्या इस देरी से घुसपैठियों को लाभ नहीं हो रहा होगा? दो साल तक सरकार नियम क्यों नहीं बना सकी है. केरल के अर्नाकुलम की कांग्रेस सांसद हिबी इडेन ने नागरिकता कानून को लेकर सवाल पूछा है. इसके जवाब में लोकसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक जवाब दिया है. सवाल था कि क्या सरकार नेशनल रजिस्टर आफ सिटिजन और नागरिकता कानून को लागू करने पर विचार कर रही है, यदि हां तो कब से, जवाब में मंत्री ने लिखा है कि नागिरकता कानून 10 जनवरी 2020 से प्रभावी है. नागरिकता कानून के तहत जब नियम बन जाएंगे तब इसके तहत आने वाले लोग नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं. अभी तक राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल रजिस्टर आफ इंडियन सिटिजिन को लागू करने पर कोई फैसला नहीं हुआ है.
जब तक कोई नेता बोल देते हैं कि नागरिकता रजिस्टर पूरे देश में लागू होगा लेकिन सरकार का कहना है कि अभी तक ऐसा करने पर कोई विचार नहीं हुआ है. सरकार ने अपने जवाब में यही कहा है कि नागरिकता कानून के तहत नियम बन जाने के बाद ही नागरिकता के लिए आवेदन किया जा सकता है
पिछले साल जुलाई में सरकार ने नियम बनाने के लिए जनवरी 2022 तक का समय मांगा था. गृहमंत्री अमित शाह का एक बयान है कि कोविड के टीकाकरण पूरा होने के बाद नागरिकता कानून के नियम बनाए जाएंगे. उन्होंने तो यहां तक बयान दिया था कि बंगाल में बीजेपी की सरकार बनी तो पहली कैबिनेट बैठक में नागरिकता कानून को लागू किया जाएगा. लेकिन आज तक इसके नियम का पता नहीं है. उनके पुराने भाषणों को सुनकर हैरानी होती है कि इतने ज़रूरी विषय पर नियम तक नहीं बने हैं जिसे लेकर तब क्या क्या कहा गया था.
लेकिन इस साल मार्च में जब असम में विधानसभा चुनाव हो रहे थे तब बीजेपी के घोषणापत्र में नागरिकता कानून नहीं था. सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एनआरसी हुई थी लेकिन बीजेपी ने उस एनआरसी को ठुकरा दिया और घोषणा पत्र में लिखा कि सही एन आर सी लेकर आएंगे. उस पर भी क्या हो रहा है? क्या किसी को पता है.
असम में विधानसभा चुनाव के दौरान घोषणापत्र जारी करते हुए बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने कहा था कि हम असम की सुरक्षा के लिए सही एनआरसी लाएंगे. जो सही नागरिक हैं उनकी रक्षा करेंगे. घुसपैठियों की पहचान करेंगे. लेकिन तब यह सवाल उठा था कि मेनिफेस्टो में बीजेपी ने नागरिकता कानून को लागू करने को लेकर चुप्पी साध ली है. 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने नागरिकता कानून लागू करने का वादा किया था. पांच साल हो गए यह कानून लागू नहीं हुआ है.
कृषक मुक्ति संग्राम, ऑल असम स्टुडेंट यूनियन, असम जातीय परिषद ने मांग की है कि कृषि कानूनों की तरह नागरिकता कानून को भी समाप्त किया जाए. इन संगठनों ने एलान किया है कि 12 दिसंबर के दिन इसके विरोध में प्रदर्शन होगा. इसी तारीख को यह कानून संसद में पास हुआ था.
18 नवंबर के द हिन्दू में विजेता सिंह की एक रिपोर्ट फ्रंट पेज पर छपी है. इस रिपोर्ट में सूचना के अधिकार से हासिल जानकारी के आधार पर लिखा है कि असम के नेशनल रजिस्टर के फाइनल ड्राफ्ट में मात्र 1032 लोगों का मामला संदिग्ध पाया था. सोचिए घुसपैठ को लेकर कितना बड़ा राजनीतिक हंगामा हुआ कि पूरा असम घुसपैठ से भर गया है, इसका पता लगाने के लिए कोर्ट में लंबी सुनवाई चली, 1600 करोड़ से अधिक खर्च हुए और उसका नतीजा यह निकला कि 1032 लोग संदिग्ध निकले. हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (NRC) की अंतिम रिपोर्ट को अधिसूचित तक नहीं किया है. सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में तैयार NRC को बीजेपी नहीं मानती है. हिन्दू ने लिखा है कि रजिस्ट्रार जनरल ने राज्य के संयोजक को बार बार कहा है कि जो संदिग्ध हैं उन्हें रसीद जारी की जाए. लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ है.
दो साल हो गए नागरिकता कानून के, इस कानून की राजनीति ने असम की राजनीति को और उलझा दिया. घुसपैठ का बवंडर खड़ा किया गया और उस राजनीति का विस्तार देश के अन्य इलाकों में भी किया गया. कोविड और तालाबंदी के दौर में सरकार नए नए कानून और अध्यादेश लेकर आ गई लेकिन नागरिकता कानून के नियमों को बनाना भूल गई. केरल की सांसद हिबी ईडन के ही सवाल के जवाब में सरकार ने एक और अहम जानकारी दी है.
- 2017 में 1,33,049 भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी
- 2018 में 1,34,561 भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी
- 2019 में 1,44,017 भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी
- 2020 में 85,248 भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी
- सितंबर 2021 तक 1,11,287 भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी
इसी जवाब में यह भी बताया गया है कि विदेश मंत्रालय के पास जो सूचना है उसके मुताबिक 1 करोड़ 33 लाख भारतीय विदेशों में रह रहे हैं. मामूली संख्या तो नहीं है. यह संख्या बताती है कि अवसरों की तलाश में भारतीय किस तरह से पलायन कर रहे हैं. सवा करोड़ से अधिक भारतीय विदेशों में हैं. भारतीयों ने बाहर जाकर जो हासिल किया है क्या वो यहां रहकर हासिल नहीं हो कता था. बाहर गए भारतीयों ने शानदार तरीके से उन देशों की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान भी दिया है. छह लाख लोगों ने इन पांच वर्षों के दौरान अगर भारतीय नागरिकता छोड़ी है तो कारण जानना चाहिए. जिस तरह से नागरिकता देते वक्त इंटरव्यू होता है उसी तरह नागरिकता छोड़ते समय भी एग्जिट इंटरव्यू होना चाहिए कि क्यों भारत जैसे महान देश की नागरिकता छोड़ने का विचार आया है. कोई कैसे भारत की नागरिकता छोड़ सकता है? लगता है कि यह छह लाख लोग गोदी मीडिया नहीं देखते हैं. वर्ना अमरीकी नागरिकता छोड़ भारत आ गए होते.
देखा जा सकता है कि क्या यह कोई नया ट्रेंड है, क्या पहले भी इतने ही लोग हर साल भारत की नागरिकता छोड़ते रहे हैं. संसद में विपक्ष के सांसद लगातार इसे लेकर सवाल पूछते रहते हैं. यही नहीं अगर आप सवालों की सूची देखेंगे तो पता चलेगा कि विपक्ष सरकार पर कितनी पैनी नज़र रखता है.
आज संसद के परिसर में स्थित गांधी परिसर के सामने पूरा विपक्ष एकजुट नज़र आया. संसद के पहले दिन यहां केवल कांग्रेस का प्रदर्शन हुआ था लेकिन आज कई विपक्षी दलों के कई सांसद राज्य सभा के निलंबित सांसदों के समर्थन में जमा हुए. यह एक बदलाव दिखा. तृणमूमल कांग्रेस ने फैसला किया है कि उसके निलंबित दोनों सांसद हर दिन गांधी प्रतिमा के सामने आठ घंटे तक धरना देंगे. दूसरे दलों के सांसद भी धरने में शामिल हो सकते हैं. निलंबित सांसदों ने माफी मांगने से इंकार कर दिया है. राहुल गांधी ने ट्वीट किया है कि किस बात के लिेए माफी मांगे, जनता की बात उठाने के लिए, बिल्कुल नहीं. जयराम रमेश ने ट्वीट किया है कि राज्यसभा से सभी विपक्षों दलों ने बहिष्कार किया है. तृणमूल और बसपा ने भी. जिस तरह से 12 सांसदों को निलंबित किया गया है उसका विरोध कर रहे हैं. अलोकतांत्रिक तरीके से बिल पास किया गया है. जो सवाल उठाते हैं उन्हें निलंबित किया गया है. दूसरी तरफ राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल और उप-नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा है कि जिन विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा में हुड़दंग किया था, हंगामा किया था उन्होंने संसद के किस नियम के तहत यह सब किया? संसद की गरिमा को विपक्ष के सांसदों ने शर्मसार किया है और वह खेद जताने को भी तैयार नहीं. यह दुख की बात है उन्हें खेद जताना चाहिए था. राज्यसभा के चेयरमैन ने राज्यसभा की गतिविधियों की कई महीने तक समीक्षा करने के बाद निलंबन का फैसला किया है.
सदन के भीतर भी कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू के समक्ष यह सवाल उठाया और कहा कि जिन्हें निलंबित किया गया है उनका नाम तक नहीं लिया गया. सभापति ने स्थिति स्पष्ट कर दी कि पिछली बार नाम लिया गया था जब हंगामा हो रहा था.
जो सांसद निलंबित किए गए हैं उनमें से कुछ के सवाल रद्द कर दिए गए हैं. जब वे सदन में नहीं हैं तो उनका नाम लेकर कैसे जवाब दिया जा सकता है. उन्हें हर तरह की गतिविधियों से निलंबित किया गया है. पिछले मानसून सत्र में भी तृणमूल कांग्रेस के सांसद शांतनु सेन को निलंबित किया गया तो उनके पूछे गए सवालों को भी रद्द कर दिया गया. हमारा सवाल यही है कि क्या सांसद के सदन में व्यवहार के कारण उसके पहले पूछे गए सवालों को रद्द किया जा सकता है? क्या उस सवाल को जनहित से अलग करना उचित है? हमने इसे लेकर पीडीटी आचार्या से बात की जो लोकसभा के पूर्व महासचिव रहे हैं और संविधान के विशेषज्ञ भी रहे हैं. उनके हमने राज्यसभा में निलंबन के मामले को लेकर भी सवाल किया कि सांसदों के सामने क्या क्या विकल्प हैं.
संसद में सवाल का ही कमाल है. बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्य ने पूछा है कि नोटबंदी, जीएसटी और कोविड महारामी के बाद बंद हुई कंपनियों का डिटेल बताइये. तो सरकार ने जो जवाब दिया है उसके अनुसार नोटबंदी के समय बंद होने वाली कंपनियों की संख्या बहुत ही ज्यादा हैं. जितनी कंपनियां खुली हैं उससे दो गुनी बंद हो गई हैं. जीएसटी के बाद जितनी नई कंपनियां खुली हैं उससी लगभग दो गुनी बंद हुई हैं. जवाब वित्त राज्य मंत्री ने दिया है.
2016-17 में बंद होने वाली कंपनियों की संख्या 12,808 थी जबकि खुलने वाली कंपनियों की संख्या 97,840 थी. लेकिन नोटबंदी के अगले साल 2017-18 में बंद होने वाली कंपनियों की संख्या 236,262 हो गई जबकि खुली 108075. 2018-19 में बंद होने वाली कंपनियों की संख्या 143,233 थी जबकि खुलने वाली कंपनियों की संख्या 123938. जवाब में यह भी लिखा है कि कानून में बंद कंपनियों की परिभाषा तय नहीं है. एक नियम के अनुसार जब दो वित्तीय वर्ष तक किसी कंपनी का ऑपरेशन बंद रहता है तो रजिस्ट्रार जनरल उसे सूची से बाहर कर देते हैं. आज दिल्ली के जंतर मंतर पर बैंकों के अधिकारी देश भर से जमा हुए थे. बैंकों के निजीकरण के विरोध में.
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Gulabi
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