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लंबे समय से मैं अपने ससुर (80) से कह रहा हूं कि वे आकर हमारे साथ रहें क्योंकि अक्सर उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती
एन. रघुरामन। लंबे समय से मैं अपने ससुर (80) से कह रहा हूं कि वे आकर हमारे साथ रहें क्योंकि अक्सर उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती। लंदन में दशकों तक आधुनिक जीवन बिताने के बावजूद अभी भी उनके पुराने ख्यालात हैं कि पिता को विवाहित बेटी के घर नहीं रहना चाहिए। इसलिए वह अपने फैमिली डॉक्टर के पास जाने का बहाना बनाते रहते हैं, वो भी कई बार।
तब मैंने तय किया कि उनकी सारी मेडिकल अपॉइंटमेंट पर नजर रखूंगा और ये देखकर चौंक गया कि वह वाकई सामान्य चिकित्सक (जनरल प्रैक्टिसनर- जीपी) के पास महीने में चार से पांच बार जाते हैं, मतलब हफ्ते में एक बार। उन डॉक्टर्स से बात करने के बाद मुझे पता चला कि जीपी से अपॉइंटमेंट लेने वालों में बड़ी संख्या उनके नियमित मरीजों (10-12%) की है, जो वरिष्ठ नागरिक हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि वे उनके साथ जो रिश्ता कायम कर लेते हैं, कई मामलों में तो दशकों के दौरान, जिसके चलते ही जीपी उम्र के साथ सामने आने वाली स्वास्थ्य समस्याओं पर सलाह देने में मददगार होते हैं। ये बार-बार का परामर्श उनकी देखभाल में नियमितता रखने में मदद करता है, ताकि वे दवाएं लेना न भूलें। और उन्हें आश्वस्त करता है कि कुछ समस्याएं उम्र से जुड़ी हैं और समय रहते चिकित्सकीय देखभाल से ठीक हो सकती हैं, डॉक्टर्स कहते हैं कि इस आयुवर्ग के लिए यह जरूरी लगता है कि क्योंकि वे जल्दी बेचैन हो जाते हैं।
यहां तक कि जीपी का औसत समय लेने वालों में बाकियों की तुलना में 70 साल से ज्यादा के मरीज़ कहीं ज्यादा हैं। चूंकि मैं स्वास्थ्य समस्याओं पर रिसर्च कर रहा था, खासतौर पर इस आयुवर्ग के बारे में, इत्तिफ़ाक़न मुझे मैनेचेस्टर यूनिवर्सिटी का इस हफ्ते प्रकाशित अध्ययन मिल गया। जिसने 20 सालों में 1.7 अरब कंसल्टेशन का आकलन किया। दुनिया में यह इस तरह का पहला अध्ययन है, जो बताता है कि 10% मरीज़ जीपी की 40% अपॉइंटमेंट लेते हैं।
अप्रैल 2000 से मार्च 2019 के बीच हुए अध्ययन में मरीज़ों की पहचान गुप्त रखते हुए डाटा इस्तेमाल किया। सदी की शुरुआत में इस आयुवर्ग के मरीज साल में 13 बार, तो 2005 तक बढ़कर 21 बार डॉक्टर से मिलने लगे। 2010 तक यह 27 और 2019 में संख्या 60 सालान मुलाकातों पर पहुंच गई। यहां तक कि सभी आयुवर्ग के मरीज़ों की मुलाकात भी 5, फिर 8 और धीरे-धीरे बढ़कर 11 हो गई। कुछ विकसित देशों में तो 2019 के आखिर में यह बढ़कर 25 पहुंच गई।
विभिन्न शहरों के मेरे जीपी मित्र कहते हैं कि वह टेलीफोन, वाट्सएप के जरिए ज्यादा परामर्श दे रहे हैं, वहीं बढ़ती वय के लोगों में चिंता बढ़ने के कारण प्रत्यक्ष मुलाकातें भी बढ़ी हैं। यहां तक कि महामारी ने काम के बोझ की जटिलता बढ़ा दी है। मार्च 2020 के बाद परिवारिक डॉक्टर, जीपी से बातचीत बढ़ी है, हालांकि जरूरी नहीं कि हर मुलाकात में डॉक्टर दवा लिखे ही। वे कुछ आम सलाहें भी देते हैं, जो शायद बुजुर्ग पहले से ही मान रहे हैं।
फिर भी जब वही सलाह कोई काबिल मेडिकल प्रोफेशनल देता है, खासतौर पर उनका अपना जीपी, तो बुजुर्गों को लगता है कि उनकी सेहत सही राह पर है। इस तरह के आश्वासन के कारण उन्हें रात में सुकून की नींद आती है। मेडिकल, मनोवैज्ञानिक रूप से अपने कम ज्ञान के साथ हमें उनके डर के बारे में पूछताछ नहीं करना चाहिए। क्योंकि बुजुर्ग अपने डर हमसे साझा करने में घबराते हैं।
फंडा यह है कि अगर घर के बुजुर्ग सिर्फ थोड़े से आश्वासन के लिए डॉक्टर के पास जाने की इच्छा रखते हैं, तो उन्हें जाने दें या उन्हें जीपी तक ले जाएं। इससे हमारा पैसा-समय तो जाएगा, पर अपने बुजुर्गों के सुकून के लिए हम इतनी छोटी सी कीमत तो चुका ही सकते हैं।
Rani Sahu
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