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एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस ट्रायल
पंकज कुमार।
वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक इजाद की है, जिससे एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस (Antimicrobial resistance) की परेशानी का समाधान किया जा सकता है. ऑस्टिन में टेक्सास यूनिवर्सिटी (Texas University) के शोधकर्ताओं ने बैक्टीरिया (Bacteria) में होने वाले एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस को खत्म करने के लिए यह तकनीक बनाई है. इस तकनीक में उस प्रोटीन को ब्लॉक करने पर काम किया गया है, जिससे बैक्टीरिया के अंदर दवाओं के खिलाफ रेजिस्टेंस की क्षमता विकसित होती है. इस खोज में वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक के खिलाफ संवेदनशील बनाने का काम किया है. जिससे शरीर में मौजूद बैक्टीरिया पर दवाओं का असर हो सकेगा.
वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में कहा है कि इसमें कई प्रकार के प्रोटीन होते हैं. यही प्रोटीन बैक्टीरिया के अंदर एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बना देते हैं और उनके असर को खत्म कर देते हैं. इस कारण बैक्टीरिया पर दवाओं का असर नहीं होता है. इस तकनीक के माध्यम से इन प्रोटीन में कुछ बाधा डालकर उनके फंक्शन को रोका जाएगा. इससे यह प्रोटीन दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता नहीं बना सकेंगे. वैज्ञानिकों ने एक प्रोटीन को डीएसबीए का नाम दिया है. इस प्रोटीन को एक्टिवेट कर एंटीबायोटिक के साथ देने से रेजिस्टेंस बनाने वाले प्रोटीन को निष्क्रिय कर देगी. इससे बैक्टीरिया पर दवाओं का असर आसानी से हो सकेगा.
क्या इस तकनीक से होगा फायदा
सफदरजंग अस्पताल के मेडिसिन विभाग के एचओडी प्रोफेसर डॉ. जुगल किशोर बताते हैं कि इस प्रकार की रिसर्च काफी फायदेमंद हो सकती है. इस तकनीक के माध्यम से बैक्टीरिया के अंदर दवाओं के खिलाफ मौजूद रेजिस्टेंस क्षमता को खत्म किया जा सकेगा. इससे अगर कोई व्यक्ति एंटीबायोटिक दवा लेगा तो उसको इससे असर होगा. हालांकि अभी लैब में ही इस रिसर्च को किया गया है. जब इसका लोगों पर ट्रायल होगा और ट्रायल में यह तकनीक कामयाब होगी, तो मान सकते हैं कि एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की परेशानी का समाधान मिल गया है. ट्रायल के कामयाब होने से दुनियाभर में हो रही कई मौतों को कम किया जा सकेगा. लैंसेट में प्रकाशित एक हालिया पेपर से पता चला है कि बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक के रेजिस्टेंस के कारण 2019 में दुनियाभर में 1.27 मिलियन लोगों की मौत हो गई थी. यह उस साल एचआईवी और मलेरिया से मरने वालों की संख्या से भी अधिक है.
क्या होता है एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस
नई दिल्ली स्थित एम्स के क्रिटिकल केयर विभाग के प्रोफेसर डॉ. युद्धवीर सिंह बताते हैं कि किसी व्यक्ति के शरीर में कोई बीमारी होती है तो उसे एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं. एंटीबायोटिक दवाएं मरीज की जान बचाने में अहम भूमिका निभाती हैं, लेकिन अब हर कोई डॉक्टर मरीज को एंटीबायोटिक लिख देता है. मेडिकल स्टोरों पर भी यह दवाएं धड़ल्ले से बिक रही हैं. बीमारी होने पर व्यक्ति इन्हें लेने लगता है. दवाओं का अधिक मात्रा में सेवन करने से एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की समस्या खड़ी हो गई है.
डॉ. सिंह बताते हैं कि शरीर में बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया जब एंटीबायोटिक दवाओं के लगातार संपर्क में रहते हैं तो वह खुद को इन दवाओं के अनुरूप ढाल लेते हैं. यह बैक्टीरिया इन दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बना लेते हैं. बैक्टीरिया खुद में म्यूटेशन करके खुद को मजबूत बना लेते हैं. ऐसा होने से उनपर दवाओं का असर नहीं होता है. इस स्थिति में एंटीबायोटिक दवा लेने पर भी वह संक्रमण के इलाज में काम नहीं करती है. बैक्टीरिया पर दवा के असर न होने को ही एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस कहा जाता है. ऐसे कुछ केस भी देखे गए हैं जहां मरीज अस्पताल में भर्ती हुआ और उसपर एंटीबायोटिक दवाओं का असर नहीं हुआ. यह समस्या काफी गंभीर बनती जा रही है.
भारत में कितना है खतरा
द लैंसेट इन्फेक्शन डिसीसेस में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, दुनियाभर में एंटीबायोटिक दवाओं का 76 फीसदी सेवन ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ने किया हैं. इसमें से 23 फीसदी हिस्सेदारी भारत की थी. भारत में एंटीबायोटिक ज्यादा लोगों की पहुंच में आ रही है. छोटे शहरों और कस्बों के डॉक्टर मरीजों को यह दवाएं लिख रहे हैं. इससे मरीजों की जानें तो बच रही हैं, लेकिन एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस का खतरा बढ़ता जा रहा है.
दूसरे व्यक्ति में भी हो सकती है यह समस्या
डॉ. युद्धवीर के मुताबिक, जिस व्यक्ति में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस हो जाता है. वह दूसरे व्यक्ति में भी यह समस्या पहुंचा सकता है. उदाहरण के तौर पर अगर टीबी से पीड़ित कोई मरीज एंटीबायोटिक दवाएं ले रहा है, अगर उसके शरीर में बैक्टीरिया ने इन दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बना ली है तो यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भी फैल सकता है. अगर किसी व्यक्ति के शरीर में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया है और वह छींकता है या खांसता है, तो यह आसपास के लोगों में फैल सकता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जो बैक्टीरिया या वायरस उस व्यक्ति के शरीर में जाएगा वह पहले से ही दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बना चुका होगा. जिससे दूसरे व्यक्ति पर भी दवाओं का असर नहीं होगा.
एंटीबायोटिक दवाओं का कोर्स करें पूरा
डॉ. जुगल किशोर का कहना है कि कुछ लोग एंटीबायोटिक दवाओं का कोर्स पूरा किए बिना उन्हें लेना बंद कर देते हैं. जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए, दूसरी तरफ कोई लोग एंटीबायोटिक दवाओं को अनावश्यक रूप से लेने लगते हैं. इससे शरीर में मौजूद बैक्टीरिया इन दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बनाने लगते हैं. बाद में इन दवाओं का शरीर पर असर नहीं होता है. इसलिए एंटीबायोटिक दवाओं को तब तक नहीं लेना चाहिए जब तक डॉक्टर आपको उन्हें लेने की सलाह न दे.
इन नियमों को लागू करने की जरूरत
डॉ. युद्धवीर सिंह का कहना है कि एंटीबायोटिक दवाओं के लिए रेफरल सिस्टम बनाने की जरूरत है. इसका मतलब यह है कि सिर्फ मरीज की स्थिति के आकलन के बाद ही उसको एंटीबायोटिक दवाएं दी जाएं. इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि बिना डॉक्टर की सलाह के मेडिकल स्टोरों पर एंटीबायोटिक दवाएं किसी भी व्यक्ति को ना दी जाए.
अस्पतालों की हो ऑडिट
डॉक्टर युद्धवीर का कहना है कि जिस भी अस्पताल में एंटीबायोटिक दवाई दी जाती हैं उसका एक रिकॉर्ड मेंटेन किया जाना चाहिए, जिसमें यह बताया जाए कि किस मरीज को कौन सी बीमारी होने पर एंटीबायोटिक दी गई है. इसका एक पूरा ऑडिट भी होना चाहिए. इसके साथ यह भी जरूरी है कि भारत सरकार के एंटीबायोटिक स्टीवार्डशिप प्रोग्राम को भी सही तरीके से लागू किया जाए.
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