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सम्पादकीय
अगर रूस भारतीय मध्यस्थता के लिए तैयार है, तो क्या नई दिल्ली बाइडेन और पुतिन की मेजबानी करेगा?
Gulabi Jagat
3 April 2022 8:11 AM GMT
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रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने शुक्रवार को कहा कि मास्को यूक्रेन संकट में भारत की मध्यस्थता के लिए तैयार है
जहांगीर अली.
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव (Sergei Lavrov) ने शुक्रवार को कहा कि मास्को यूक्रेन संकट में भारत की मध्यस्थता के लिए तैयार है. लावरोव गुरुवार को दो दिवसीय यात्रा पर भारत पहुंचे. उन्होंने कहा कि रूस रक्षा क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग के लिए प्रतिबद्ध है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इससे पहले यूक्रेन संकट ( Russia – ukraine war) में भारत की मध्यस्थता की पेशकश उनके सामने नहीं लाई गई थी. ताज़ा जानकारी के मुताबिक, दोनों देशों के बीच सबसे महत्वपूर्ण राजनयिक आदान-प्रदान की मेजबानी इस्तांबुल (Istanbul) कर रहा है, इससे पूर्वी यूरोप में इस संकट के समाधान की उम्मीदें जगी हैं. अब उम्मीद है कि भारत भी ऐसी ही भूमिका निभाएगा. अब भारत को इस मौके का लाभ उठाना है.
क्या शांति के लिए मध्यस्थता अंतिम उपाय है?
हाल ही में शांति वार्ता के लिए रूसी और यूक्रेनी वार्ताकारों के बीच इस्तांबुल में हुई बैठक के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच निकट भविष्य में आमने-सामने बातचीत हो सकती है. जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ता है, तो कई देश और अधिक रक्तपात और यूक्रेन की सीमाओं से बाहर फैलने वाले संघर्ष को रोकने के लिए मध्यस्थता की संभावना तलाशते देखे जा सकते हैं. यह महसूस किया जा रहा है कि मध्यस्थ की भूमिका निभाना सभी के लिए इस संघर्ष में आगे की तबाही को रोकने का एक तरीका है. तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन (Recep Tayyip Erdogan )ने रूस और यूक्रेन दोनों से युद्ध को समाप्त करने का आग्रह किया है. एर्दोगन ने कहा, 'दोनों पक्षों की वाज़िब चिंताएं हैं, लेकिन संतोषजनक समाधान तक पहुंचना अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए संभव है.' उन्होंने कहा कि युद्ध को लंबे समय तक खींचना 'किसी के हित में नहीं' है. भारत ने दोनों पक्षों को मेज पर आमने-सामने लाने के लिए अब तक कोई सार्वजनिक प्रयास नहीं किया है, लेकिन नई दिल्ली से उम्मीदें बढ़ रही हैं. पिछले हफ्ते, यूक्रेन के एक मंत्री ने मध्यस्थता करने और संघर्ष को समाप्त करने का आग्रह किया था.
क्या भारत पूर्वी यूरोप में युद्ध के परिणाम को प्रभावित कर सकता है?
रूस और पश्चिमी देशों के टकराव के बीच नई दिल्ली ने बेहद सावधानी बरतते हुए संतुलन कायम रखा है. यह इसे स्पष्ट लाभ देता है. तुर्की की तरह भारत ने भी सीधे तौर पर पुतिन की कार्रवाइयों को खारिज करने से इनकार कर दिया है. रूस-पश्चिम टकराव के क्रॉसहेयर (crosshairs) में फंसने से बचने के लिए नई दिल्ली ने कुशलता से संतुलन बनाए रखा है. भारत अपनी डिफेंस और फ़र्टिलाइज़र आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रूस और बेलारूस पर निर्भर है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में देश के कृषि क्षेत्र पर उर्वरकों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की रूस की योजनाओं के प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की. नई दिल्ली पर 'राइट साइड ऑफ़ हिस्ट्री' की तरफ होने का दबाव बन रहा है.
भारत पूर्वी यूरोप में संघर्ष में थर्ड पार्टी मीडिएटर की भूमिका निभा सकता है
द विल्सन सेंटर में एशिया कार्यक्रम के उप निदेशक माइकल कुगेलमैन का मानना है कि भारत पूर्वी यूरोप में संघर्ष में थर्ड पार्टी मीडीएटर की भूमिका निभा सकता है क्योंकि नई दिल्ली का 'रूस के साथ मजबूत, बेमिसाल और पुराना संबंध' है, जिसका लाभ इसे मध्यस्थ के तौर पर मिल सकता है. कुगेलमैन ने News9 को बताया, 'जिन अन्य देशों ने मध्यस्थता करने की इच्छा जताई है, उन्हें यह लाभ नहीं मिला है. एक मध्यस्थ होने के नाते भारत के पास इस युद्ध को समाप्त करने के प्रयास करते हुए तटस्थ रहने का मौका है, जो उसके हितों को पूरा नहीं करता है'.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) द्वारा रूस में शासन परिवर्तन के लिए आह्वान किए जाने के बाद, व्हाइट हाउस ने माहौल को कुछ हद तक शांत करने का प्रयास किया. अपने राष्ट्रपति की बात को वापस लेते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि अमेरिका के पास 'रूस में या उस मामले के लिए कहीं और' शासन परिवर्तन के लिए 'कोई रणनीति नहीं है'. उन्होंने इज़राइल में कहा, 'यह रूसी लोगों पर निर्भर है'. यूक्रेन में स्थिति बिगड़ने पर बाइडेन और पुतिन के बीच बैठक का प्रस्ताव देने के लिए व्हाइट हाउस ने एक कदम आगे बढ़ाया है.
क्या बाइडेनऔर पुतिन को मिलना चाहिए
चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स (Global Times) के प्रधान संपादक हू फिजियन ने ट्वीट किया, 'बाइडेनऔर पुतिन को मिलना चाहिए, या कम से कम फोन पर बातचीत करनी चाहिए क्योंकि पुतिन के लिए केवल ज़ेलेंस्की से मिलना बेकार है, जो साफ़ तौर पर वाशिंगटन की बात सुनते हैं. बाइडेन और पुतिन तुर्की या भारत में मिल सकते हैं, और मुझे विश्वास है कि चीन भी उनका स्वागत करेगा'. तो क्या दिल्ली पुतिन-बाइडेन मुलाकात की मेजबानी कर सकती है?
कुगेलमैन का मानना है कि रूस-यूक्रेन संघर्ष ने 'दुनिया को दिखाने के लिए कि वह वैश्विक मंच पर बड़े काम कर सकता है' भारत के लिए एक 'बोनस' की पेशकश की है. उन्होंने कहा, 'यह कुछ ऐसा है जिसे भारतीय नेतृत्व साबित करने के लिए उत्सुक है क्योंकि उसे अपनी क्षमता की आलोचना नापसंद है'. तो भारत को किस बात का इंतजार है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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