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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनावों के नतीजे को सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कोशिश। इसे अपनी जीत बताया। उसके दावे का आधार था कि उसे सबसे ज्यादा सीटें मिलीं। जबकि जिन पार्टियों ने गठबंधन के आधार पर चुनाव लड़ा, उनकी सीटों को अलग- अलग बताना कहीं से उचित नहीं है। हकीकत यह है कि कश्मीर घाटी में भारतीय जनता पार्टी और उसकी सहयोगी अपनी पार्टी की करारी शिकस्त हुई। जम्मू क्षेत्र में भी अगर पिछले लोक सभा या विधान सभा चुनावों से तुलना करें, तो भाजपा का प्रदर्शन फीका रहा। इसीलिए कई विश्लेषकों ने इन नतीजों को 2019 के अगस्त में जम्मू-कश्मीर के स्वरूप में किए गए परिवर्तन को जनता की ठोकर कहा है। बहरहाल, यह साफ है कि भाजपा अपने नैरेटिव के अलावा किसी की बात नहीं सुनती। इसलिए ऐसे तर्कों का कोई मतलब नहीं है। आज लोकतंत्र या जनादेश वही है, जो भाजपा नेतृत्व बताता है। इसलिए इन चुनावों से राज्य में संवाद या समन्वय की कोई खिड़की नहीं खुलेगी, हालांकि अगर ईमानदारी से प्रयास हो तो इसकी संभावना इससे बनी है।