सम्पादकीय

अगर तव्वको ही उठ गई!

Gulabi
16 April 2021 3:17 PM GMT
अगर तव्वको ही उठ गई!
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निर्वाचन आयोग आज अपनी साख और छवि की चिंता नहीं करता

NI एडिटोरियल। निर्वाचन आयोग आज अपनी साख और छवि की चिंता नहीं करता। इसलिए पश्चिम बंगाल के विधान सभा चुनाव में अपने आचरण पर उठे सवालों को वह दरकिनार कर देगा। लेकिन इससे भारतीय लोकतंत्र के लिए जो संकट पैदा हो रहा है, उसे नहीं टाला जा सकता। अगर देश के एक बहुत बड़े हिस्से के मन में ये बात बैठ जाए कि अब भारत में चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं होते- या कम से कम इसमें सभी पक्षों के लिए समान धरातल नहीं होता, तो उसके जो परिणाम होंगे, उनकी अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती। ये गौरतलब है कि गुजरे वर्षों में ऐसी शिकायतें छिटपुट थीं। अब ये विपक्ष की मेनस्ट्रीम का हिस्सा हो गई हैं। ममता बनर्जी के चुनाव प्रचार करने पर लगाई गई 24 घंटों की रोक के बाद अगर तेजस्वी यादव ने निर्वाचन आयोग को "भाजपा आयोग" कहा और राहुल गांधी ने इसके पहले एक मौके पर इलेक्शन 'कमीशन' लिख कर उसमें निहित अर्थ को ट्विट किया, तो समझा जा सकता है कि निर्वाचन आयोग की साख आज किस हाल में है। ये हाल इसलिए बना है, क्योंकि आयोग की कार्यवाहियां एकपक्षीय दिखती हैं।


चुनाव कार्यक्रम तय करने से लेकर आदर्श चुनाव संहिता लागू करने तक में ऐसा होने की शिकायत की जा ती है। इसीलिए कथित उत्तेजक बयानों की वजह से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के चुनाव प्रचार पर चौबीस घंटे की रोक ने आयोग को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया। आयोग के फैसले के विरोध में ममता बनर्जी कोलकाता में गांधी प्रतिमा के पास धरने पर बैठीं। ममता बनर्जी और उनकी पार्टी टीएमसी की आलोचनात्मक प्रतिक्रिया तो स्वाभाविक थी, लेकिन विपक्षी सीपीएम और कांग्रेस ने भी आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाया। शायद इसी वजह से आयोग ने मंगलवार को बीजेपी नेता राहुल सिन्हा के प्रचार पर 48 घंटे की रोक लगा कर और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष को 'कारण बताओ नोटिस' भेज कर अपने दामन पर लग रहे दाग को धोने का प्रयास किया। मगर दाग गहरे हों, तो आसानी से नहीं धुलते। बात यह है कि रोक अलग ममता पर लगी, तो प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के जिन बयानों को आपत्तिजनक माना गया है, उन पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? निर्वाचन आयोग को ध्यान में रखना चाहिए कि अब लोग उसका जिक्र आने पर मिर्जा गालिब की ये लाइनें दोहराने लगे हैं- 'जब तवक़्क़ो ही उठ गई 'ग़ालिब' क्यूँ किसी का गिला करे कोई'।


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