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- अगर तव्वको ही उठ गई!
NI एडिटोरियल। निर्वाचन आयोग आज अपनी साख और छवि की चिंता नहीं करता। इसलिए पश्चिम बंगाल के विधान सभा चुनाव में अपने आचरण पर उठे सवालों को वह दरकिनार कर देगा। लेकिन इससे भारतीय लोकतंत्र के लिए जो संकट पैदा हो रहा है, उसे नहीं टाला जा सकता। अगर देश के एक बहुत बड़े हिस्से के मन में ये बात बैठ जाए कि अब भारत में चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं होते- या कम से कम इसमें सभी पक्षों के लिए समान धरातल नहीं होता, तो उसके जो परिणाम होंगे, उनकी अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती। ये गौरतलब है कि गुजरे वर्षों में ऐसी शिकायतें छिटपुट थीं। अब ये विपक्ष की मेनस्ट्रीम का हिस्सा हो गई हैं। ममता बनर्जी के चुनाव प्रचार करने पर लगाई गई 24 घंटों की रोक के बाद अगर तेजस्वी यादव ने निर्वाचन आयोग को "भाजपा आयोग" कहा और राहुल गांधी ने इसके पहले एक मौके पर इलेक्शन 'कमीशन' लिख कर उसमें निहित अर्थ को ट्विट किया, तो समझा जा सकता है कि निर्वाचन आयोग की साख आज किस हाल में है। ये हाल इसलिए बना है, क्योंकि आयोग की कार्यवाहियां एकपक्षीय दिखती हैं।