सम्पादकीय

जिन्दगी रहेगी तो...

Subhi
18 April 2021 4:26 AM GMT
जिन्दगी रहेगी तो...
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हम लोग कुछ भी सोच लें, योजनाएं बना लें परन्तु सब कुछ इस बात पर निर्भर है

किरण चोपड़ा: हम लोग कुछ भी सोच लें, योजनाएं बना लें परन्तु सब कुछ इस बात पर निर्भर है कि जिन्दगी रहेगी तो योजनाएं भी लागू हो जाएंगी और जो हमने ठान रखा है, वह पूरा भी हो जाएगा। स्कूल के दिनों में जब हमारे शिक्षक काल (टैंस) के बारे में पढ़ाया करते तो इसे भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल के बारे में हमें बहुत उदाहरण दे-देकर समझाते थे। आज इसमें एक नया अध्याय जुड़ गया है वह है कोरोना काल। मैं वेबियार में आजकल ज्यादा व्यस्त रहती हूं। समाजसेवा में लगे रहने के कारण कई संगठन सम्पर्क में रहते हैं। उस दिन एक वक्ता ने कार्यक्रम शुुरू होने से पहले टैंस यानि काल में कोरोना काल के जोड़े जाने का उल्लेख किया कि किस प्रकार आठवीं के एक छात्र ने पूछा, ''कोरोना काल'' क्या होता है? लगभग डेढ़ वर्ष का एक वह समय जो पूरी दुनिया को कोरोना महामारी के रूप में बदल चुका है, इसे क्या कहेंगे? कहने का मतलब यह कि कोरोना जो आजकल देश-दुनिया खास कर दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब, केरल, यूपी, तमिलनाडु हर तरफ तबाही मचा रहा है तो हमारा वर्तमान बुरी तरह प्रभावित हुआ है। ऐसे में अगर इसे कोरोना काल का नाम दे दिया गया है तो इसे अतिश्योक्ति नहीं माना जाना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना ने सर्वाधिक असर हमारे जीवन पर डाला है, हमारे नर्सरी से लेकर पीएचडी तक के स्टूडैंट्स और शिक्षा जगत को झकझोर कर रख दिया है। जितने शिक्षा विशेषज्ञ, विद्वान लोग व अन्य समाजसेवियों से बात करती हूं तो केवल एक ही बात उभर कर सामने आती है कि शिक्षा को कोरोना ने तबाह कर डाला। जीवन अपने आप में परीक्षा का ही दूसरा नाम है परन्तु कल्पना कीजिए कि अगर प्राइमरी, मिडल, 10वीं या बारहवीं की कोई परीक्षा ही नहीं होगी तो शिक्षा जगत में योग्यता मापदंड (एलिजिबिल्टी टैस्ट क्राइटीरिया) कैसे होंगे। भारत के लगभग हर राज्य में दसवीं परीक्षा रद्द कर दी गई है और सीबीएसई की 12वीं परीक्षा टाल दी गई है तथा अभी तक असमंजस बरकरार है। 12वीं परीक्षा टाले जाने को लेकर एक बहस शिक्षा के पंडितों में छिड़ गई है। इस मामले में जब मुझसे पूछा गया है तो मेरा एक ही जवाब होता है, जिन्दगी रहेगी तो सब कुछ है। जिन्दगी है तो हम हैं, स्टूडैंट्स हैं, शिक्षा है और परीक्षा भी है। यानि हमारे पूर्वजों ने ठीक कहा है-''जान है तो जहान है।''

इस कोरोना ने हमें बहुत कुछ सिखाया। जब हम शुरू-शुरू में डरे तो हमने डर को दूर भगाया। चुनौतियां उभरीं तो हमने आपदा के इस दौर में अवसर ढूंढ लिए लेकिन हमने उस वक्त जिन्दगी की सुरक्षा के वो मंत्र भुला दिए जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। हमने सोशल डिस्टैंसिंग छोड़ दी, मास्क पहनना छोड़ दिया, सार्वजनिक स्थलों पर इकट्ठे होकर हमने सारे नियम भुला दिए। हमने लापरवाही और ढिलाई को अपने साथ जोड़ दिया। इसीलिए सावधानी से हटते ही यह कोरोना ब्लास्ट हो गया। ऐसे में राज्यों में अगर कोरोना से बचने के लिए नाइट कर्फ्यू या वीकेंड कर्फ्यू लगाए जा रहे हैं तो इसका स्वागत है। मैं दिल खोलकर कहती हूं, लोगों से अपील करती हूं कि वे भी इसका गम्भीरता से पालन करें और याद रखें कि यह जिन्दगी दोबारा नहीं मिलेगी। एक चूक पहले हाे चुकी है और भगवान की कृपा से सब बच गए परन्तु अब सम्भल कर चलिए तथा जिन्दगी को बचाने के मकसद काे समझिये। स्कूल प्राथमिक हो या मिडिल स्तरीय या फिर सीनियर सैकेंडरी या कालेज। एक बात तो तय है कि पिछले साल 1,55,000 से ज्यादा शिक्षण संस्थान बंद किए गए थे। वर्ष 2021 में भी अब वही स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। शिक्षा व्यवस्था इस बार पटरी से उतर चुकी है परन्तु देश में जब सवा दो लाख केस रोज आ रहे हों तो फिर सरकारों के सामने विकल्प नहीं रहता। बच्चों के माता-पिता अपने लाडलों की जान जोखिम में नहीं डाल सकते तो फिर मेरा शिक्षाविदों से अनुरोध यही है कि कृपया जान है तो जहान है, के मंत्र का पाठ पढ़िये और आनलाइन को ही महत्व दो। लोगों की जिन्दगियां बचाने के लिए ही मोदी सरकार या दिल्ली में केजरीवाल सरकार डटी हुई है। इसी तरह राज्य सरकारें भी मोर्चों पर डटी हुई हैं। खुुद पीएम ने बच्चों की परीक्षा को लेकर चर्चा भी की थी तथा यही कहा था कि इम्तेहान को जीवन-मरण का प्रश्न न बनाएं। उनके इस कथन में जिन्दगी बचाने का भी मंत्र छिपा है। जबकि नाइट कर्फ्यू लगभग देशभर में लागू होने जा रहा है तो लोग धैर्य शीलता से काम लें, सुरक्षित रहें तथा सुरक्षित रखें का मत्र समझें और समझाएं। हर नुक्सान की भरपाई हम कर लेंगे। जिन्दगी सुरक्षित रहेगी तो सब ठीक रहेगा। कोरोना का सामना एकजुट होकर करना होगा।


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