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किरण चोपड़ा: हम लोग कुछ भी सोच लें, योजनाएं बना लें परन्तु सब कुछ इस बात पर निर्भर है कि जिन्दगी रहेगी तो योजनाएं भी लागू हो जाएंगी और जो हमने ठान रखा है, वह पूरा भी हो जाएगा। स्कूल के दिनों में जब हमारे शिक्षक काल (टैंस) के बारे में पढ़ाया करते तो इसे भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल के बारे में हमें बहुत उदाहरण दे-देकर समझाते थे। आज इसमें एक नया अध्याय जुड़ गया है वह है कोरोना काल। मैं वेबियार में आजकल ज्यादा व्यस्त रहती हूं। समाजसेवा में लगे रहने के कारण कई संगठन सम्पर्क में रहते हैं। उस दिन एक वक्ता ने कार्यक्रम शुुरू होने से पहले टैंस यानि काल में कोरोना काल के जोड़े जाने का उल्लेख किया कि किस प्रकार आठवीं के एक छात्र ने पूछा, ''कोरोना काल'' क्या होता है? लगभग डेढ़ वर्ष का एक वह समय जो पूरी दुनिया को कोरोना महामारी के रूप में बदल चुका है, इसे क्या कहेंगे? कहने का मतलब यह कि कोरोना जो आजकल देश-दुनिया खास कर दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब, केरल, यूपी, तमिलनाडु हर तरफ तबाही मचा रहा है तो हमारा वर्तमान बुरी तरह प्रभावित हुआ है। ऐसे में अगर इसे कोरोना काल का नाम दे दिया गया है तो इसे अतिश्योक्ति नहीं माना जाना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना ने सर्वाधिक असर हमारे जीवन पर डाला है, हमारे नर्सरी से लेकर पीएचडी तक के स्टूडैंट्स और शिक्षा जगत को झकझोर कर रख दिया है। जितने शिक्षा विशेषज्ञ, विद्वान लोग व अन्य समाजसेवियों से बात करती हूं तो केवल एक ही बात उभर कर सामने आती है कि शिक्षा को कोरोना ने तबाह कर डाला। जीवन अपने आप में परीक्षा का ही दूसरा नाम है परन्तु कल्पना कीजिए कि अगर प्राइमरी, मिडल, 10वीं या बारहवीं की कोई परीक्षा ही नहीं होगी तो शिक्षा जगत में योग्यता मापदंड (एलिजिबिल्टी टैस्ट क्राइटीरिया) कैसे होंगे। भारत के लगभग हर राज्य में दसवीं परीक्षा रद्द कर दी गई है और सीबीएसई की 12वीं परीक्षा टाल दी गई है तथा अभी तक असमंजस बरकरार है। 12वीं परीक्षा टाले जाने को लेकर एक बहस शिक्षा के पंडितों में छिड़ गई है। इस मामले में जब मुझसे पूछा गया है तो मेरा एक ही जवाब होता है, जिन्दगी रहेगी तो सब कुछ है। जिन्दगी है तो हम हैं, स्टूडैंट्स हैं, शिक्षा है और परीक्षा भी है। यानि हमारे पूर्वजों ने ठीक कहा है-''जान है तो जहान है।''