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सम्पादकीय
यदि निर्यात में वृद्धि करनी है तो देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की दिशा में और तेजी से कार्य करना होगा
Gulabi Jagat
8 April 2022 2:48 PM GMT
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वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का वस्तु निर्यात 400 अरब डालर से अधिक हो जाना किसी उपलब्धि से कम नहीं है
डा. सुरजीत सिंह। वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का वस्तु निर्यात 400 अरब डालर से अधिक हो जाना किसी उपलब्धि से कम नहीं है। सेवाओं के निर्यात को भी इसमें शामिल कर लिया जाए तो भारत के कुल निर्यात 650 अरब डालर से अधिक हो जाते हैं। इस प्रकार वित्त वर्ष 2019-20 के 292 अरब डालर के निर्यात की तुलना में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। निर्यात में इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल, रत्न एवं आभूषण, केमिकल, दवा और इलेक्ट्रानिक सामानों के साथ-साथ कृषि उत्पादों-चावल, गेहूं, मसाले, चीनी, फल-सब्जी, कालीन, मांस, डेयरी, समुद्री आदि उत्पादों का महत्वपूर्ण योगदान है। यह एक सकारात्मक बदलाव है, जिसने भारत को निर्यात क्षेत्र में विश्व की अग्रिम पंक्ति के देशों में खड़ा करने का काम किया है। निर्यात बढऩे से देश की विनिमय दर, मुद्रास्फीति, ब्याज दर आदि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। रोजगार के अवसरों का सृजन, विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि, विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन एवं सरकार के राजस्व संग्रह में भी वृद्धि होती है। भारत की जीडीपी में निर्यात की बढ़ती हिस्सेदारी बताती है कि देश आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ रहा है।
कोरोना महामारी के चलते विश्व की वस्तु आपूर्ति श्रृंखला के बाधित होने के बाद दुनिया के देशों द्वारा चीन से दूरी बनाना एवं रूस-यूक्रेन युद्ध भले ही निर्यात वृद्धि के तत्कालिक कारण हों, परंतु सरकार द्वारा किए गए नीतिगत उपायों ने भी निर्यात को बढ़ाने में सार्थक भूमिका का निर्वाह किया है। इसमें बैटरी, इलेक्ट्रानिक्स, आटोमोबाइल्स, फार्मास्युटिकल्स, ड्रग्स, टेक्सटाइल्स सहित 13 क्षेत्रों में निर्यात को बढ़ावा देने के लिए पीएलआइ योजना (उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना) प्रमुख है, जिसके अंतर्गत उत्पादन बढ़ाने पर सब्सिडी दी जाती है। इसी के साथ प्रत्येक जिले में निर्यात क्षमता वाले उत्पादों की पहचान करके जिलों को निर्यात हब के रूप में विकसित करने की नई पहल भी की गई है। गांवों से शहरों की ओर विकास की धारा को बहाने के लिए अब निर्यात को एक बड़ा यंत्र बनाया गया है, ताकि देश निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को हासिल कर सके। एमएसएमई और स्टार्टअप के निर्यात से जुड़े मुद्दों के त्वरित समाधान पर बल दिया जाना समय की मांग है। टैक्स फाइल प्रक्रिया को आसान बनाते हुए डिजिटल प्लेटफार्म को प्रोत्साहन दिया गया है, जिससे समय, ऊर्जा और धन की बचत बढ़ी है। सरकार की नई व्यापार नीति में विभिन्न देशों की व्यापार क्षमता का आकलन कर नए और मौजूदा बाजारों में निर्यात की संभावनाओं को अधिक मजबूत करने पर बल दिया गया है। भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार एवं सरकार की प्रतिबद्धताओं का ही परिणाम है कि दुनिया में मेक इन इंडिया ब्रांड पर भरोसा बढ़ रहा है।
यदि हम चीन के निर्यात के साथ भारत की तुलना करें तो भारत के निर्यात बहुत कम हैं। यदि निर्यात में वृद्धि करनी है तो देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की दिशा में तेजी से कार्य करना होगा। विश्व बाजार में गुणवत्तायुक्त उत्पादों की बहुत अधिक मांग है। आज भारत के उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने के साथ-साथ प्रतिस्पर्धी भी बनाना होगा। आम तौर पर यह मत है कि चीन में श्रमिकों की संख्या अधिक होने से चीनी उत्पादों की लागत कम है। वास्तव में मूल कारण श्रमिकों की संख्या का अधिक होना नहीं, बल्कि चीनी श्रमिकों की उत्पादकता अधिक होना है। चीन का एक श्रमिक भारत के श्रमिक की तुलना में 1.6 गुना अधिक उत्पादन करता है। चीन केवल सस्ती वस्तुओं का ही उत्पादन नहीं करता, बल्कि विश्व के लगभग 60 प्रतिशत ब्रांडेड लक्जरी वस्तुओं का उत्पादन भी करता है। भारत में श्रमिकों की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम को सीधे तौर पर उद्योगों के साथ जोड़ा जाना चाहिए, जिससे श्रमिकों की उत्पादकता एवं कार्यक्षमता में वृद्धि होने के साथ प्रबंधकीय क्षमता का भी विकास होगा। निर्यातकों को गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इससे न केवल रोजगार बढ़ेगा, बल्कि उनकी लागत में भी कमी आएगी। लाजिस्टिक क्षेत्र के विस्तार के लिए केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र को मिलकर काम करना होगा। प्रत्येक राज्य को निर्यात में भागीदारी के लिए सक्रिय भूमिका निभाने के साथ-साथ विदेशी निवेश को भी आकर्षित करने दिशा में कार्य करना होगा, तभी देश को निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बनाया जा सकता है।
अर्थशास्त्र का व्यापार सिद्धांत यह मानता है कि जिन वस्तुओं का उत्पादन भारत कम लागत पर कर सकता है, उनका उत्पादन देश में ही करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। सेवा क्षेत्र में भारत के उल्लेखनीय निर्यात के दृष्टिगत वैश्विक स्तर पर विशेष रूप से साफ्टवेयर के क्षेत्र में अपने आप को एकाधिकार के रूप में स्थापित करना चाहिए। इसके अलावा यह ध्यान रखना चाहिए कि प्राथमिक वस्तुएं-चावल, मसाले, मोटा अनाज, फल एवं सब्जी, मीट, डेयरी और समुद्री उत्पाद आदि के निर्यात व्यापार वृद्धि के स्थाई कारक नहीं बन सकते। निर्यात वृद्धि में स्थायित्व के लिए प्राथमिक उत्पादों के साथ-साथ विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
(लेखक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर एवं इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन के सदस्य हैं)
Gulabi Jagat
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