सम्पादकीय

यदि भारत से बातचीत के मूड में हैं चीन, तो नई दिल्ली को भी इसके लिए तैयार रहना चाहिए

Gulabi Jagat
19 March 2022 9:56 AM GMT
यदि भारत से बातचीत के मूड में हैं चीन, तो नई दिल्ली को भी इसके लिए तैयार रहना चाहिए
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दिलचस्प बात यह है कि भारत के आग्रह पर इस बैठक में रूस की निंदा नहीं की गई
के वी रमेश।
भारत के प्रति चीन (China) के लहजे में नरमी आती दिख रही है, इसके बावजूद कि 3 मार्च को क्वाड नेताओं (QUAD Leaders) की वर्चुअल मीटिंग में नई दिल्ली ने यह जोर देकर कहा था कि चार देशों के गठबंधन को "हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Region) में शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने के अपने मूल उद्देश्य पर केंद्रित रहना चाहिए". हालांकि क्वाड नेताओं ने यूक्रेन की स्थिति पर भी चर्चा की. दिलचस्प बात यह है कि भारत के आग्रह पर इस बैठक में रूस की निंदा नहीं की गई.
यूक्रेन पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) के हमले ने चीन सहित सभी को चौंका दिया है. बीजिंग के नेता निश्चित तौर पर महामारी से तबाह दुनिया की आर्थिक व्यवस्था पर युद्ध के प्रभावों से चिंतित होंगे. रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों का गहरा असर उनकी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है. यदि पुतिन नहीं माने और अमेरिका और पश्चिमी देश और अधिक प्रतिबंध लगाते हैं, यहां तक कि उन पर दवाब बढ़ाने के लिए सैन्य विकल्पों को अपनाते हैं, तो रूस आर्थिक, कूटनीतिक और सैन्य मदद की उम्मीद चीन से करेगा. यूक्रेन पर राष्ट्रपति पुतिन के अन्यायपूर्ण हमले और विश्व स्तर पर अलोकप्रिय युद्ध को देखते हुए चीन केवल इतना ही कर सकता है.
चीन अपने विकल्पों पर फिर से विचार कर सकता है
चीन ने कहा था कि रूस के साथ उसकी दोस्ती की ''कोई सीमा नहीं'' है. हालांकि, दोस्ती की भी एक सीमा होती है. पश्चिमी देशों पर बढ़ते दवाब के बीच 'बिना किसी सीमा की दोस्ती' से रूस-चीन संबंध गंभीर तनाव में आ जाएंगे. चीन पहले से ही अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर के प्रभावों को महसूस कर रहा है. इसलिए बदलते परिदृश्य में चीन अपने विकल्पों पर फिर से विचार कर सकता है और यहां तक कि भारत से बातचीत करने की पहल कर सकता है. इस तरह पश्चिमी दबावों का सामना करने के लिए वह भारत का असंभावित सहयोगी बन सकता है. वांग यी ने परोक्ष रूप से इतना ही कहा है.
ऐसे में भारत के पास क्या विकल्प हैं? ग्लोबल चेस गेम (GCG) पूरी तरह से खुला हुआ है. मोहरे बिखरे हुए हैं और स्पष्ट रणनीति सामने नहीं आई है. वैश्विक शक्तियों के बीच आपसी रिश्ते बदल रहे हैं, उनमें से कुछ इस तरह से बदल रहे हैं जिसकी हाल के दिनों में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. छह हफ्ते से भी कम समय में रूस और चीन ने घोषणा की कि उनकी दोस्ती की "कोई सीमा नहीं है". चीन ने पहले ही अपनी सीमाएं तय कर ली हैं, यूक्रेन के आक्रमण को "युद्ध" घोषित कर दिया है, जबकि रूस अपनी ग़लतफ़हमी में इसे "विशेष सैन्य अभियान" कहता है.
चीन भले ही इसे न दिखाए, लेकिन रूस द्वारा यूक्रेन पर हुए हमले के बाद वह पश्चिमी प्रतिक्रिया की गंभीरता से स्तब्ध है. रूस के खिलाफ यूएस-ईयू-नाटो (US-EU-NATO) द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध दोनों देशों के लिए अपूर्व घटना है जो सीधे तौर पर सैन्य टकराव में शामिल नहीं हैं. हालांकि दोनों देश परमाणु शक्ति संपन्न हैं. इसके साथ ही अगले 10 वर्षों तक रूस के आर्थिक तौर पर पिछड़ने की संभावना है.
चीन पश्चिमी प्रतिबंधों का शिकार नहीं होना चाहता
चीन पश्चिमी प्रतिबंधों का शिकार नहीं होना चाहता, यहां तक कि वह युद्ध और उसकी वजह से लगे प्रतिबंधों की जरा सी आंच नहीं झेलना चाहता. उसका हेल्थ केयर स्ट्रक्चर अभी कोविड से उबर रहा है, लेकिन इसी बीच नई लहर शुरू होने की खबर है. कोविड की वजह से सप्लाई चेन में बाधा आने के प्रभावों से उसकी अर्थव्यवस्था उबरी भी नहीं थी कि नए दवाब बनने शुरू हो गए हैं. ऐसे में उसकी अर्थव्यवस्था फिर से नीचे जा सकती है. अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर ने चीन को तबाह कर दिया है.
अत्याधुनिक तकनीक जैसे नैनोटेक, हार्डवेयर जैसे नैनोचिप्स और प्रमुख टेक्नोलॉजी के मामले में चीन को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. अगली पीढ़ी के सैन्य ड्रोन और लड़ाकू विमानों के लिए स्टील्थ तकनीक नहीं मिलने से ट्रेड वॉर का असर उसके अंतरिक्ष कार्यक्रमों और सैन्य हार्डवेयर डेवलपमेंट पर हुआ है.
चीन भारत को मध्यस्थ और प्रभावशाली पक्ष के रूप में इस्तेमाल करना पसंद करेगा और इसकी कीमत चुकाने को तैयार होगा. भारत के अधिकांश लोगों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत ने गुटनिरपेक्षता के दिनों से जिस नैतिक प्रभाव को कायम रखा, उसकी विरासत आज भी जारी है. यह वह प्रभाव और शक्ति है जिससे चीन ईर्ष्या करता है और यही वह विरासत है जिसे वह भुनाना चाहता है. कीमत महत्वपूर्ण है. बात करने का समय आ गया है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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