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सम्पादकीय
यदि हर बड़ी घटना की जांच सीबीआइ करेगी तो फिर बंगाल पुलिस क्या करेगी?
Gulabi Jagat
14 April 2022 1:52 PM GMT
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सम्पादकीय
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बंगाल के एक और मामले की जांच सीबीआइ को सौंपने का फैसला किया। यह मामला 14 साल की लड़की से दुष्कर्म के बाद हत्या का है। इस जघन्य घटना पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि क्या यह दुष्कर्म का मामला है या असफल प्रेम संबंधों का? हैरानी नहीं कि इस संवेदनहीन टिप्पणी के कारण भी उच्च न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा हो कि घटना की जांच सीबीआइ को करनी चाहिए। उच्च न्यायालय के फैसले पर ममता बनर्जी का कुपित होना स्वाभाविक है, लेकिन ऐसे फैसलों के लिए उनका शासन ही जिम्मेदार है। यह साधारण बात नहीं कि बीते साढ़े सात माह में कलकत्ता उच्च न्यायालय 11 मामलों की जांच सीबीआइ को सौंप चुका है। इनमें से छह मामले तो बीते 20 दिनों में सीबीआइ को सौंपे गए हैं। इससे यदि कुछ स्पष्ट होता है तो यही कि उच्च न्यायालय का बंगाल पुलिस पर भरोसा नहीं। भरोसा न करने के पर्याप्त कारण भी हैं।
बंगाल पुलिस कानून एवं व्यवस्था को सीधी चुनौती देने वाली घटनाओं और विशेष रूप से राजनीतिक हिंसा के मामलों की अनदेखी करने के लिए कुख्यात हो चुकी है। वह कई बार सत्तारूढ़ दल की शाखा के तौर पर काम करती दिखती है। इसी कारण विधानसभा चुनाव बाद हुई राजनीतिक हिंसा की भयावह घटनाओं की जांच करते हुए मानवाधिकार आयोग ने कहा था कि इस राज्य में कानून का शासन नहीं, बल्कि शासकों का कानून चल रहा है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने राजनीतिक हिंसा की घटनाओं की जांच सीबीआइ से कराने का फैसला इसीलिए किया था, क्योंकि ममता सरकार उन्हें लेकर न्यूनतम गंभीरता का भी परिचय नहीं दे रही थी। ऐसा ही रवैया बीरभूम की उस घटना को लेकर भी दिखा था, जिसमें आठ लोग जिंदा जलाकर मार दिए गए थे। समस्या केवल यह नहीं है कि बंगाल पुलिस का राजनीतिकरण हो चुका है, बल्कि यह भी है कि वह अपना भरोसा खोती जा रही है।
यदि हर बड़ी घटना की जांच सीबीआइ करेगी तो फिर बंगाल पुलिस क्या करेगी? उचित यह होगा कि उच्च न्यायालय यह देखे कि बंगाल पुलिस राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर पेशेवर तरीके से कैसे काम करे? इस प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय को भी गौर करना होगा, क्योंकि जो समस्या बंगाल में देखने को मिल रही है, वह अन्य राज्यों में भी दिख रही है।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
Gulabi Jagat
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