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इस साल जुलाई-अगस्त में राष्ट्रपति का चुनाव (Presidential Election) होना है
राकेश दीक्षित
इस साल जुलाई-अगस्त में राष्ट्रपति का चुनाव (Presidential Election) होना है, जिसमें बिहार (Bihar) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को राष्ट्रपति का चुनाव लड़ाए जाने की ख़बरों का बाज़ार गर्म है. हालांकि मंगलवार को इस बारे में प्रतिक्रिया देते हुए नीतीश कुमार बड़ी चतुराई से इसका गोलमोल जवाब दे गए, उन्होंने ना तो इसकी पुष्टि की और ना ही खुद को इस दौड़ से बाहर किया.
समाज सुधार अभियान को फिर से शुरू करने भागलपुर पहुंचे नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने की अटकलों का जवाब देते हुए कहा "मुझे नहीं पता कि इस तरह की अफवाहें कैसे सामने आतीं हैं, मैंने कभी राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के बारे में सोचा ही नहीं." हो सकता है नीतीश कुमार ने ऐसा कभी सोचा न हो, लेकिन अब ऐसी सुगबुगाहट मिलने के बाद उन्होंने अपने लिए इस रास्ते को बंद भी नहीं किया है.
धुंधली राजनीतिक तस्वीर
नीतीश कुमार की ये प्रतिक्रिया मौजूदा राजनीतिक हालत को बयां करती है, जहां अभी सब कुछ साफ़ नहीं है. फिलहाल बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए की ताकत के सामने विपक्ष के पास अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुनने का मौका नहीं है. लेकिन 10 मार्च को पांच विधानसभा चुनावों के नतीजे इस समीकरण को बदल सकते हैं. अगर बीजेपी पांच राज्यों के चुनावों में ख़राब प्रदर्शन करती है, खासतौर पर उत्तर प्रदेश में, तब निश्चित रूप से विपक्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र एकजुट होने की कोशिश करेगा. राष्ट्रपति चुनाव बीजेपी विरोधी मोर्चा बनाने की प्रक्रिया में पहला क़दम होगा.
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के हाथों बीजेपी की हार की संभावना कम नहीं है. ऐसे में बीजेपी समर्थित बिहार का दबाव में आना तय है. जहां सत्तारूढ़ जनता दाल (यूनाइटेड) और बीजेपी में पहले से ही तनातनी चल रही है, क्योंकि मोदी सरकार ने बिहार राज्य विधानसभा की जाति आधारित जन गणना की मांग को ख़ारिज कर दिया था. समाजवादी पार्टी ने मौके का फायदा उठाते हुए, जाति आधरित जनगणना को यूपी चुनाव का अहम् मुद्दा बना दिया है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सत्ता में आने के तीन महीने के अंदर पिछड़ी जातियों की जनगणना कराने का वादा किया है. समाजवादी पार्टी अगर ये चुनाव जीतती है तो जातीय जनगणना कार्ड का निश्चित ही इसमें अहम रोल माना जाएगा. और इसे ओबीसी शक्ति के पुनर्मूल्यांकन के रूप में भी देखा जाएगा. यूपी और बिहार दोनों राज्यों में एक जैसे जातीय समीकरण हैंं, जो किसी भी पार्टी की जीत में किंगमेकर की भूमिका निभाते हैं. इन संभावनाओं के बाद बिहार विधानसभा में विधायकों के टूटने, सत्ताधारी जनता दल (यूनाइटेड) और विपक्षी दल आरजेडी से मिलकर सरकार बनाने की सम्भावनाओ से भी इंकार नहीं किया जा सकता. दोनों क्षेत्रीय दलों के पास सरकार बनाने के लिए पार्यप्त विधायक हैं, जिससे बिहार में बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है.
नीतीश कुमार के पिछले राजनैतिक फैसले भी इस तरह की अफवाहों को हवा देते हैं कि वे राष्ट्रपति की दौड़ में शामिल हैं. अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए वे पहले भी पाला बदलने की राजनीति कर चुके हैं. मुख्यमंत्री का पद पाने क लिए भी उन्होंने वैचारिक मतभेद होने के बावजूद बीजेपी का दामन थामा था. नीतीश कुमार अपने फायदे के लिए तीसरी बार फिर से ऐसा ही गठबंधन कर सकते हैं. इससे बिहार में अपनी सरकार को खतरे में डाले बिना, वे पटना से राष्ट्रपति भवन तक का सफर पूरा कर सकते हैं, साथ ही वैचारिक मतभेदों के चलते बीजेपी से किनारा करना, सोने पे सुहागा जैसा होगा.
बिछड़े दोस्तों का मिलन
कभी नीतीश के बेहद नज़दीकी रहे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने 21 फरवरी को उनसे मिलकर इन सब संभावनाओं पर चर्चा ज़रूर की होगी. इन दोनों की मित्रता काफी पुरानी रही है, यहां तक कि एक बार अपनी पार्टी के बहुमत से अलग जाकर नीतीश ने प्रशांत को अपनी पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया था. लेकिन बाद में प्रशांत को पार्टी से निष्काषित कर दिया था. इसके बाद प्रशांत चुनावी रणनीतिकार के रूप में अलग-अलग राज्यों में, राजनीतिक पार्टियों को अपनी सेवाएं देने लगे, इस बीच उनकी और नीतीश की दूरियां बरक़रार रहीं.
21 फरवरी को प्रशांत किशोर इतने अहम् मुद्दे को लेकर जब नीतीश के पास आए होंगे, तो लगता है कि दोनों के बीच जमी बर्फ कुछ पिघल गयी होगी. ये महज़ शिष्टाचार की मुलाक़ात तो हरगिज़ नहीं थी. एक महत्वकांक्षी राजनीतिज्ञ और एक रणनीतिकार की मुलाक़ात अफवाहों को हवा देने के लिए काफ़ी है. प्रशांत किशोर ने हाल ही में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से भी मुलाक़ात की है और माना जा रहा है कि वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, एच डी देवेगौड़ा और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के भी संपर्क में हैं. के चंद्रशेखर राव ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष को एक करने की कवायद शुरू कर दी है. उन्होंने प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार और दूसरी पार्टियों से संपर्क करने का ज़िम्मा सौंपा है. इससे पहले के. चंद्रशेखर राव ने आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ,एनसीपी प्रमुख शरद पवार के साथ मिलकर बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को एक साथ लाने की रणनीति के तहत मुलाक़ात की. इन मुलाक़ातों से कांग्रेस को दूर रखा गया है.
क़यास लगाए जा रहे हैं, कि प्रशांत ने उद्धव ठाकरे और शरद पवार से मिलकर नीतीश के लिए समर्थन मांगा होगा. अभी तक ये सब परदे के पीछे चल रहा है, महराष्ट्र के मंत्री नवाब मालिक ने स्पष्ट किया है, कि जब तक नीतीश बीजेपी के साथ सम्बन्ध नहीं तोड़ेंगे, तब तक इस बारे में कोई चर्चा नहीं हो सकती. नीतीश के एनडीए से बहार निकलने के बाद, विपक्ष की बैठक मे इस बारे में सामूहिक रूप से विचार किया जाएगा. पांच राज्यों में चुनाव के अलावा नीतीश कुमार की उम्मीदवारी आरजेडी और कांग्रेस के झुकाव पर भी निर्भर करती है, ताकि उनका समर्थन हासिल किया जा सके.
कांग्रेस के बिना विपक्ष का सपना अधूरा
तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने गैर बीजेपी और गैर कांग्रेसी गठबंधन का जो क़दम उठया है, वो बिना कांग्रेस के समर्थन के पूरा नहीं हो सकता. कांग्रेस के पास नीतीश की उम्मीदवारी के खिलाफ जाने की कोई ठोस वजह नहीं है. उसे राज़ी किया जा सकता है, लेकिन कांग्रेस पार्टी खुद को विपक्ष की धुरी बनाना चाहेगी, क्योंकि वो जानती है कि उसके समर्थन के बिना विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव नहीं जीत सकता.
इसी तरह आरजेडी के बिना भी यह रणनीति सफल नहीं हो सकती. अगर लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव नीतीश के साथ वैकल्पिक सरकार बनाने पर राज़ी नहीं हो जाते तो विपक्ष के पास दूसरे नाम पर विचार के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा और तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए जेडीयू की सहमति ज़रूरी है. 10 मार्च के चुनावी नतीजे नामुमकिन को मुमकिन करने वाले परिणाम दे सकते हैं, जो आज हमारी उम्मीद से भी परे हैं.
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Rani Sahu
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