सम्पादकीय

बसंत पंचमी तो हर साल आती है नहीं आती तो राजा भोज की आराध्य वाग्देवी

Rani Sahu
4 Feb 2022 3:56 PM GMT
बसंत पंचमी तो हर साल आती है नहीं आती तो राजा भोज की आराध्य वाग्देवी
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बसंत पंचमी (Basant Panchami) जैसे ही नजदीक आती है धार की भोजशाला में गतिविधियां भी बढ़ जाती हैं

दिनेश गुप्ता

बसंत पंचमी (Basant Panchami) जैसे ही नजदीक आती है धार की भोजशाला में गतिविधियां भी बढ़ जाती हैं. लंदन के म्यूजियम से वाग्देवी (Vagdevi) की प्रतिमा लाने की मांग भी तेज हो जाती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के नेतृत्व वाली सरकार पिछले सात साल में 105 बहुमूल्य प्रतिमाओं को वापस लाने में सफल रही है. ये प्रतिमाएं हिंदू, जैन और बौद्ध धर्मावलंबी लोगों की आस्था और श्रद्धा का प्रतीक मानी जाती हैं. वापस नहीं आ पाई है तो भोजशाला की वाग्देवी की प्रतिमा. इस प्रतिमा को 1902 में भोपावर का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड अपने साथ लंदन ले गया था.
सरस्वती प्रतिमा को वापस लाने के लिए सुब्रमण्यम स्वामी ने वर्ष 2011 में ब्रिटेन की अदालत में केस लगाया था. स्वामी को उम्मीद थी कि जिस तरह से नटराज की प्रतिमा वापस आई है वाग्देवी भी उसी तरह से वापस आ जाएंगी. वाग्देवी की इस प्रतिमा के बगैर धार की भोजशाला में हर बसंत पंचमी को सरस्वती पूजा का भव्य आयोजन होता है. पूजा, उपासना में वाग्देवी के चित्र का उपयोग किया जाता है. वाग्देवी की प्रतिमा भूरे रंग के स्फटिक से निर्मित है. यह प्रतिमा अत्यंत ही चमत्कारिक, मनमोहक एवं शांत मुद्रा वाली है. ध्यानस्थ अवस्था में वाग्देवी कि यह प्रतिमा विश्व की सबसे सुन्दर कलाकृतियों में से एक मानी जाती है. म्यूजियम में प्रतिमा कांच में बंद रखी हुई है. यह प्रतिमा खुदाई के दौरान भोजशाला के नजदीक मिली थी. भोजशाला, वर्तमान में भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग के अधीन है. भोजशाला का निर्माण परमार वंश के राजा भोज द्वारा अध्ययन के उद्देश्य से कराया गया. वर्ष 1305 में इस्लामी आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर आक्रमण कर वाग्देवी की प्रतिमा को खंडित कर दिया था. भोजशाला का विवाद से नाता वैसा ही है जैसा मथुरा-काशी का है.
भोजशाला को दरगाह के रूप में दी गई थी मान्यता
इतिहासकारों के अनुसार महाराजा भोज ने अपनी राजधानी धार में कई मंदिरों का निर्माण करवाया था. इनमें सरस्वती का मंदिर मुख्य था. इस मंदिर में संस्कृत पाठशाला थी. भोजशाला पर पहला आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी का था. इस्लाम स्वीकार न करने के कारण खिलजी की सेना ने पांच हजार लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. इसके बाद भी मुस्लिम शासन अधिक समय तक नहीं टिका रह सका. आए दिन हिन्दू-मुस्लिम टकराव की घटनाएं होती थीं. इसी दौरान एक सूफी फकीर कमाल मौलाना को खिलजी ने मालवा में भेजा और उसने धार को अपनी धर्मांतरण की गतिविधियों का केन्द्र बनाया.
लगभग छत्तीस वर्ष तक वह हिन्दुओं का धर्मांतरण कराता रहा. कमाल मौलाना की मस्जिद ही भोजशाला को विवादित बनाती है. धार रियासत द्वारा 1904 के एशिएंट मोन्यूमेंट एक्ट को लागू कर भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया. बाद में भोजशाला को पुरातत्व विभाग के अधीन कर दिया गया. धार स्टेट ने ही 1935 में परिसर में शुक्रवार को नमाज पढ़ने की अनुमति दी थी. धार एक मराठा रियासत थी मगर इसका दीवान एक मुसलमान था. जिसने एक फरमान जारी करके इस भवन को एक दरगाह के रूप में मान्यता प्रदान की और उसे मुसलमानों के हवाले कर दिया. इसी व्यवस्था के कारण शुक्रवार को पड़ने वाली बसंत पंचमी पर भोजशाला तनाव का केन्द्र बन जाती है.
मंगलवार को पूजा और शुक्रवार को होती है भोजशाला में नमाज
पहले भोजशाला शुक्रवार को ही खुलती थी और वहां नमाज हुआ करती थी. 1995 में हुए विवाद के बाद से यहां मंगलवार को पूजा और शुक्रवार को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई. 12 मई 1997 को कलेक्टर ने भोजशाला में आम लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया, और मंगलवार की पूजा पर रोक लगा दी गई. हिन्दुओं को बसंत पंचमी पर और मुसलमानों को शुक्रवार को 1 से 3 बजे तक नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई. ये प्रतिबंध 31 जुलाई 1997 को हटा दिया गया.
6 फरवरी 1998 को केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया. वर्ष 2003 से व्यवस्था में कुछ बदलाव किए गए जिसके तहत हर मंगलवार और बसंत पंचमी पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक हिन्दुओं को पूजा की अनुमति और शुक्रवार को मुस्लिमों को नमाज की अनुमति दी गई. पांच दिनों में भोजशाला पर्यटकों के लिए यह खुली रहती है. हर दशक में दो या तीन बार ऐसा होता है कि बसंत पंचमी शुक्रवार को पड़ती है.
राजा भोज के लिखे ग्रंथ भी किए गए नष्ट
राजा भोज (1000-1055 ई.) परमार राजवंश के सबसे बड़े शासक, जो शिक्षा एवं साहित्य के अनन्य उपासक थे, यही कारण था कि उनकी रूचि शिक्षा एवं साहित्य में बहुत ज्यादा थी. राजा भोज ने ही ईसवी 1034 में भोजशाला के रूप में एक भव्य पाठशाला का निर्माण किया और यहां माता सरस्वती की एक प्रतिमा स्थापित की. इसे तब सरस्वती सदन कहा था. भोजशाला को माता सरस्वती का प्राकट्य स्थान भी माना जाता है. राजा भोज ने धर्म खगोल विद्या, कला, वास्तु, काव्य और औषधि शास्त्र पर कई ग्रंथ भी लिखे. राजा भोज द्वारा लिखित 84 में से सिर्फ 21 ग्रंथों का अस्तित्व बचा है. कुछ मुगल काल में खत्म हो गए. कुछ ब्रिटिश काल में नष्ट कर दिए गए
माता सरस्वती का मंदिर होने के साथ भोजशाला भारत के सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में से एक था. इसके अलावा यह स्थान विश्व का प्रथम संस्कृत अध्ययन केंद्र भी था. इस विश्वविद्यालय में देश-विदेश के हजारों विद्वान आध्यात्म, राजनीति, आयुर्वेद, व्याकरण, ज्योतिष, कला, नाट्य, संगीत, योग, दर्शन आदि विषयों का अध्ययन करने के लिए आते थे. इस भोजशाला को मुस्लिम शासक ने मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था.
भोपाल भी मानी जाती है राजा भोज की नगरी
राजा भोज का विशाल साम्राज्य था. धार में परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईसवी तक 44 वर्ष शासन किया. कहा जाता है कि भोपाल को राजा भोज ने ही बसाया था. इसका पुराना नाम भोजपाल नगर ही माना जाता है. कहीं-कहीं भूपाल का भी उल्लेख मिलता है. भोपाल के बड़े तालाब पर राजा भोज की विशाल प्रतिमा लगाने के पीछे यही मान्यताएं रही हैं. तालाब का निर्माण भी राजा भोज काल का ही बताया जाता है. इसकी सीमा भोजपुर के शिव मंदिर तक थी. तालाब का पानी बहुत पवित्र और बीमारियों के उपचार में कारगार माना जाता था. शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने भोपाल के अलावा धार में भी राजा भोज की प्रतिमा स्थापित की है. लेकिन, धार के लोगों को इंतजार वाग्देवी का है.
Rani Sahu

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