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इसे ठीक करने का सबसे आसान तरीका था, लड़कों की शादी की उम्र को कम कर देना, लेकिन
अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी जैसे देशों में लड़के और लड़की दोनों के शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है. लेकिन भारत में लड़कों के लिए 21 साल, जबकि लड़कियों के लिए 18 साल न्यूनतम उम्र में शादी का क़ानून है. देश में लड़के-लड़कियां जब हर मोर्चों पर बराबर हैं तो फिर उनकी शादी की उम्र में भेद क्यों होना चाहिए?
इसे ठीक करने का सबसे आसान तरीका था, लड़कों की शादी की उम्र को कम कर देना, लेकिन इसे प्रतिगामी माना जाता. इसलिए जया जेटली की अध्यक्षता वाले 10 सदस्यीय टास्क फ़ोर्स ने लडकियों की शादी की न्यूनतम उम्र बढाने की अनुशंसा की. पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने क़ानून में बदलाव के मसौदे को मंजूरी दे दी है.
लेकिन, कई वर्गों से इस प्रस्तावित कानून के विरोध के सुर को देखते हुए, इसे संसदीय समिति भेजे जाने की सुगबुगाहट है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ और नया क़ानून
ब्रिटिश भारत में तो छोटे-छोटे बच्चों की शादी हो जाती थी. इस सामाजिक कुरीति को ठीक करने के लिए अंग्रेजों ने कानून बनाकर शादी की न्यूनतम उम्र 12 साल कर दी. उसके बाद कई बार इसमें बदलाव के बाद सन 1978 में इसे 18 वर्ष कर दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने सेना में महिलाओं को बराबरी का दर्ज़ा देने की पहल की है.
वहीं, अब 21वीं शताब्दी में लड़के और लड़की के बीच शादी की उम्र का फर्क खत्म करने के लिए क़ानून बनाने की पहल हुई है. इस क़ानून का मकसद जनसंख्या नियंत्रण से ज्यादा बच्चों और लड़कियों की सेहत से जुड़ा है. कच्ची उम्र में शादी होने से लड़कियों की शिक्षा अधूरी रहने के साथ, शिशु और माताओं की मृत्यु दर बढ़ती है.
नए कानून को लागू करने के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के साथ हिंदू विवाह अधिनियम 1955, विशेष विवाह अधिनियम 1954, ईसाई विवाह अधिनियम 1872, विदेशी विवाह अधिनियम 1969 जैसे कई कानूनों में बदलाव करने होंगे. मुस्लिम समुदाय में पर्सनल ला के यौनारंभ के अनुसार शादी के रिवाज की वजह से 16 साल में भी लड़कियों की शादी हो जाती है.
भारत में कई सालों से यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा होने के बावजूद, कानून अभी तक नहीं बने. इसलिए प्रस्तावित कानून को मुस्लिम समुदाय की लड़कियों पर लागू करने पर अनेक कानूनी विवाद हो सकते हैं.
सामाजिक हकीकत और नया क़ानून
वर्तमान कानून के अनुसार, 18 साल से कम उम्र में की गई शादी गैरकानूनी है, लेकिन अवैध नहीं है. इसका मतलब यह है कि बालिग होने के बाद लड़की चाहे तो बालविवाह को अवैध घोषित कराने के लिए अदालत में फरियाद कर सकती है. देश में मौजूदा 18 साल की न्यूनतम उम्र की शादी के कानून पर ही अभी सही तरीके से अमल नहीं हो रहा.
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, सन 2020 में बाल विवाह के सिर्फ 785 मामले दर्ज किए गए. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS) के 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार 23 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में हो गई. यह उम्र बढ़ने से क़ानून और भी ज्यादा बेमानी हो जाएगा. जनगणना महापंजीयक के मुताबिक देश में 18 से 21 साल उम्र के बीच शादी करने वाली लड़कियों की संख्या करीब 16 करोड़ है.
लिव-इन रिलेशनशिप के बढ़ते दौर में इस क़ानून का औचित्य
भारत में बालिग होने, ड्राइविंग लाइसेंस और वोट डालने के लिए 18 साल की कानूनी उम्र है. भारत में लड़कियों के विवाह की औसत आयु 22.1 साल है. लेकिन शहरी और ग्रामीण वर्ग की लड़कियों में शादी की उम्र में बहुत बड़ा फासला है. कम उम्र में शादी की समस्या दरअसल अशिक्षा, सामाजिक पिछड़ेपन और गरीबी के अभिशाप से जुड़ी है.
इसीलिए, इसका प्रचलन एससी, एसटी और वंचित वर्ग के बीच में ज्यादा है. दूसरी तरफ शहरों में बड़ी उम्र के युवा शादी से ही बचने लगे हैं. क़ानून और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, 18 साल के बाद दो बालिग़ सहमति से यौन सम्बन्ध बना सकते हैं. इसलिए डिजिटल युग में टीनएजर्स के बीच लिव-इन रिलेशनशिप का ट्रेंड बढ़ गया है.
भारत में मैरिटल रेप अभी अपराध नहीं है लेकिन नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध कोर्ट के फैसले के अनुसार मैरिटल रेप के दायरे में आ सकते हैं. इससे भारतीय परिवारों में अनेक कानूनी जटिलताएं बढ़ जाएंगी. नया क़ानून बनने के बाद, उस पर अगर सख्ती से अमल हुआ तो करोड़ों परिवारों में पुलिसिया शिकायत के साथ मुकदमेबाजी का क्लेश भी बढ़ जाएगा.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
विराग गुप्ता एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान तथा साइबर कानून के जानकार हैं. राष्ट्रीय समाचार पत्र और पत्रिकाओं में नियमित लेखन के साथ टीवी डिबेट्स का भी नियमित हिस्सा रहते हैं. कानून, साहित्य, इतिहास और बच्चों से संबंधित इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं. पिछले 4 वर्ष से लगातार विधि लेखन हेतु सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा संविधान दिवस पर सम्मानित हो चुके हैं. ट्विटर- @viraggupta.
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Gulabi
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