सम्पादकीय

लड़की 21 साल तक पढ़ सके और अपने पैरों पर खड़ी हो, ये तो खुशी की बात है न

Gulabi
16 Dec 2021 8:30 AM GMT
लड़की 21 साल तक पढ़ सके और अपने पैरों पर खड़ी हो, ये तो खुशी की बात है न
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छह साल पहले दिसंबर, 2015 को शिखा पांडेय का 18वां जन्‍मदिन था और उसके ठीक 15 दिन बाद जनवरी के पहले हफ्ते में शिखा की शादी
मनीषा पांडेय।
छह साल पहले दिसंबर, 2015 को शिखा पांडेय का 18वां जन्‍मदिन था और उसके ठीक 15 दिन बाद जनवरी के पहले हफ्ते में शिखा की शादी. ये शादी इतनी जल्‍दबाजी में इसलिए नहीं हो रही थी कि लड़की के जीवन में शादी करने के अलावा कोई दूसरा मकसद नहीं था. लड़की अपने 18वें जन्‍मदिन और शादी की तारीख से चंद रोज पहले ही ऑल इंडिया मेडिकल टेस्‍ट की परीक्षा पास कर चुकी थी और डॉक्‍टरी की पढ़ाई करने जा रही थी. शादी के तुरंत बाद उसके मेडिकल स्‍कूल चले जाने और हॉस्‍टल में रहकर पढ़ने से न ससुराल वालों को आपत्ति थी, न मायके वालों को. बस शादी थी कि तुरंत ही की जानी थी.
इतनी जल्‍दबाजी में शादी करने के पीछे एक बेहद कंजरवेटिव ब्राम्‍हण परिवार में जन्‍मी शिखा के माता-पिता की सिर्फ एक ही चिंता थी. उस बॉयफ्रेंड से उसका पीछा छुड़ाना जो उनकी जाति का नहीं था. एक बड़े महानगर के कॉन्‍वेंट स्‍कूल में पढ़ी और टपर-टपर अंग्रेजी बोलने वाली बागी स्‍वभाव की लड़की के किसी दूसरी जाति-धर्म के लड़के के साथ प्रेम कर लेने की प्रबल संभावना को देखते हुए मां-बाप ने समय रहते ये फैसला कर लिया.
शिखा की शादी हो गई. वो डॉक्‍टर भी बनी. लेकिन 18 साल की नादान उम्र में लिए उस एक फैसले ने शिखा की जिंदगी की दिशा बदल दी. तब वो मजाक में कहती थी कि काश कि कानूनन शादी की मिनिमम उम्र 25 साल होती तो मेरे मां-बाप चाहकर भी कुछ न कर पाते.
कल बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक ऐसे विधेयक को मंजूरी दे दी, जिसमें लड़कियों की शादी की न्‍यूनतम उम्र को 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने की बात कही गई है. लड़कों की शादी की न्‍यूनतम उम्र पहले से 21 साल है. यह कानून बना तो दोनों की विवाहयोग्‍य मिनिमम उम्र एकसमान हो जाएगी. इतना ही नहीं, ये कानून सभी धर्मों और जातियों पर समान रूप से लागू होगा.
ठीक एक साल पहले दिसंबर, 2020 में यह सवाल पहली बार उठा कि लड़कियों की विवाह की उम्र 18 से बढ़ाकर 20 साल की जाए. उसके ठीक एक महीने बाद जनवरी, 2021 में पांचवे नेशनल फैमिली हेल्‍थ सर्वे की पहली रिपोर्ट आई, जो कह रही थी कि भारत के कई राज्‍यों में अब भी 41 फीसदी लड़कियां बाल विवाह की शिकार होती हैं.
नेताओं के बीच भी इस बात को लेकर कोई एकमत नहीं था. जहां मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सार्वजनिक सभा में शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने की वकालत कर रहे थे, वहीं कांग्रेस नेता सज्‍जन सिंह वर्मा इस बात के लिए मुख्‍यमंत्री की लानत-मलामत कर रहे थे. शिवराज सिंह चौहान के जवाब में वर्मा ने एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस की और कहा, "शिवराज सिंह चौहान कोई वैज्ञानिक हैं, डॉक्‍टर हैं. जब डॉक्‍टरों की रिपोर्ट कहती है कि 15 साल में लड़कियां प्रजनन के उपुयक्‍त हो जाती हैं तो 18 साल शादी की उम्र सही है. उसे बढ़ाकर 21 करने की क्‍या जरूरत." उन्‍होंने ये भी कहा, "गरीबी के कारण माता-पिता के लिए बेटियों को पालना मुश्किल होता है. कम से कम 18 साल में शादी करके वो जल्‍दी जिम्‍मेदारी से मुक्‍त हो सकते हैं."
सामाजिक संगठनों, एनजीओ सेक्‍टर और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच भी इस मुद्दे भी सहमति कम ही दिखाई दी. बुद्धिजीवियों का कहना था कि लड़कियों की शिक्षा, सुरक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़े दूसरे जरूरी मुद्दों से ध्‍यान हटाकर शादी की उम्र पर फोकस करना कोई बुद्धिमत्‍तापूर्ण फैसला नहीं है. आखिर सरकार ने शादी की उम्र 18 साल तय कर रखी है. उसके बावजूद धड़ल्‍ले से बाल विवाह हो रहे हैं. तो सभवत: ज्‍यादा जरूरत इस बात की है कि बाल विवाह को रोकने और लड़कियों की शिक्षा और सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में जरूरी कदम उठाए जाएं.
दिंसबर में दस सदस्‍यीय टास्‍क फोर्स के गठन से पहले ये मुद्दा पहली बार तब उछला जब 2019 में भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दिल्‍ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की, जिसमें उन्‍होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए लड़कियों की शादी की न्‍यूनतम वैधानिक उम्र 18 से बढ़ाकर 21 किए जाने की मांग की. याचिका के जवाब में हाईकोर्ट ने भारत सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा. जवाब में टास्‍क फोर्स का गठन हुआ. टास्‍क फोर्स ने उस सभी समूहों, संगठनों और समााजिक कार्यकर्ताओं से राय-मशविरा किया, जिनकी राय का इस मामले में महत्‍व था.
फिलहाल जटा जेटली के नेतृत्‍व में बने टास्‍क फोर्स ने पिछले साल दिसंबर में अपनी रिपोर्ट नीति आयोग को सौंप दी थी. इस रिपोर्ट में विस्‍तार ने उन सभी तथ्‍यों और कारणों का उल्‍लेख था, जिसकी वजह से टास्‍क फोर्स को लग रहा था कि शादी की उम्र बढ़ाने का फैसला लंबे समय में लड़कियों के लिए हितकारी ही साबित होगा. इस फैसले को कैसे लागू किया जाएगा और उसका क्‍या इंप्‍लीमेंटेशन प्‍लान होगा, इसकी भी विस्‍तृत जानकारी रिपोर्ट में सौंपी गई थी.
अगर ये कानून लागू होता है तो 1978 के बाद यह विवाह कानून में हुआ बड़ा बदलाव होगा. इसके पहले 1978 में शारदा एक्‍ट में बदलाव करते हुए लड़कियों की शादी की न्‍यूनतम उम्र 15 से बढ़ाकर 18 की गई थी.
भारत दुनिया के उन चंद देशों में से है, जिसकी यात्रा सतत आगे की ओर ही रही है. वरना ईरान में तो अयातुल्‍लाह खोमैनी के सत्‍ता में आने के बाद जो पहला बदलाव हुआ था, वो ये कि लड़कियों की शादी की उम्र 16 से घटाकर 13 साल कर दी गई थी. आज की तारीख में दुनिया के 95 फीसदी देशों में लड़कियों की शादी की न्‍यूनतम उम्र 20 साल के आसपास है, जिनमें से अधिकांश देशों में लड़के और लड़की दोनों की उम्र समान है. कुछ देशों जैसे कैमरून, नामीबिया, बोत्‍सवाना, स्विटजरलैंड, मलेशिया, फिलीपींस और सिंगापुर में ये न्‍यूनतम आयु 21 साल है. चीन में लड़कियों की 20 और लड़कों की 22 है, ईरान में 15 है और जापान में लड़का-लड़की दोनों की न्‍यूनतम आयु 20 साल है.
बनारस के एक छोटे गांव में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता यशोदा देवी कहती हैं कि शादी की उमर बढ़ा देने से गरीब, पिछड़े परिवारों में लड़कियों का बाल विवाह तो नहीं रुकेगा, लेकिन शहरों में, पढ़े-लिखे परिवारों में कम से कम लड़कियों को पढ़ने, अपने पैरों पर खड़े होने के लिए ज्‍यादा वक्‍त मिल जाएगा. जो मां-बाप कानून जानते हैं, जहां तक पुलिस की पहुंच है, वो तो कम से कम 21 साल तक लड़की को मौका देंगे ही कि वो पढ़े और अपने जीवन से जुड़े फैसले ले.
यशोदा इस नए कानून से बड़े बदलावों की उम्‍मीद तो नहीं पालतीं, लेकिन इतना जरूर कहती हैं कि इससे कोई नुकसान नहीं है.
ये बात ठीक है कि इस देश के सामने अपनी आधी आबादी की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए अब भी दूसरे ज्‍यादा बुनियादी सवालों पर विचार करने और उस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है. उन्‍हें शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य और रोजगार में बराबरी पर लाने की जरूरत है. लेकिन इन सारी जरूरतों और सवालों का विवाह की न्‍यूनतम उम्र को बढ़ाने से कोई टकराव नहीं है. यह एक बेहतर फैसला है और इस फैसले का स्‍वागत किया जाना चाहिए.
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