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सोशल मीडिया पर लोगों की मौजूदा तकलीफ की पड़ताल से पहले थोड़ा पुरानी तकलीफों का जायजा ले लेते हैं
मनीषा पांडेय।
सोशल मीडिया पर लोगों की मौजूदा तकलीफ की पड़ताल से पहले थोड़ा पुरानी तकलीफों का जायजा ले लेते हैं. शाहिद कपूर ने जअ अपने से उम्र में 13 साल छोटी मीरा से शादी की तो उम्र के फासले को लेकर किसी ने इस जोड़ी को बेमेले जोड़ी करार नहीं दिया. संजय दत्त ने जब अपने से उम्र में 19 साल छोटी मान्यता दत्त से शादी की, तब भी किसी को उम्र की याद नहीं आई और न ये बात कि हाय, दुल्हा तो बुड्ढा है. आमिर खान ने जब अपने से उम्र में 9 साल छोटी किरण राव से शादी की, तब भी उम्र की कोई दुहाई नहीं दी गई. शादी के गाजे-बाजे में जनता शरीक थी. बोनी कपूर ने जब अपने से उम्र में 9 साल छोटी श्रीदेवी से शादी की, उम्र का तब भी कोई तकाजा नहीं थी.
थोड़ा और पीछे चलें तो दिलीप कुमार ने उम्र में 23 साल छोटी शायरा बानो से शादी की थी. हेमा मालिनी धर्मेंद्र से उम्र में 13 साल छोटी थीं. डिंपल कपाडि़या और राजेश खन्ना की उम्र में 16 साल का फासला था. कबीर बेदी ने अपने से उम्र में 29 साल छोटी लड़की से शादी की है. मीना कुमारी कमाल अमरोही से उम्र में 15 साल छोटी थीं.
यहां तक कि एकदम मॉडर्न जमाने के मॉडर्न कपल रीतेश देशमुख और जेनेलिया डिसूजा की उम्र में भी 9 साल का अंतर है.
लेकिन ऐसे किसी उम्र के अंतर से इस महान देश के महान लोगों की भावनाएं आहत नहीं होतीं. न किसी के मुंह से आह निकलती है. न किसी को मियादी बुखार जकड़ लेता है. ये बुखार इन्हें तभी जकड़ता है, जब लड़के की उम्र लड़की से कम हो. जब 38 साल की कटरीना 33 साल विकी कौशल से शादी करती है तो इन्हें जोड़ी बेमेल लगने लगती है. जब बड़ी उम्र की मलाइका अरोड़ा अपने से कम उम्र के अर्जुन कपूर को डेट करती हैं.
कैटरीना कैफ और विक्की कौशल
ऐसा नहीं है कि सोशल मीडिया के ये ट्रोल पहली बार सक्रिय हुए हैं. और ये सब पॉलिटिक्स को लेकर पक्ष तय करने और हवा बनाने वाले पेड ट्रोल भी नहीं हैं. हमारे-आपके जैसे सामान्य लोग हैं, जो सोशल मीडिया पर अपने विचार, पूर्वाग्रह और अपना मर्दवाद उड़ेल रहे हैं. उन्हें दिक्कत है इस बात से कि कटरीना उम्र में विक्की कौशल से बड़ी है.
हालांकि इन्हीं ट्रोल्स को तब कोई दिक्कत नहीं होती, जब 54 साल के अक्षय कुमार अपने से उम्र में 18 साल छोटी कटरीना के कमर में हाथ डालकर पर्दे पर रोमांस करते हैं. इन्हें तब भी दिक्कत नहीं होती, जब 54 साल के अक्षय कुमार की हिरोइन 18 साल की लड़की होती है. जब 50 साल के सलमान खान 16 साल की लड़की के साथ स्क्रीन पर रोमांस कर रहे होते हैं. इन्हें दिक्कत सिर्फ और सिर्फ तब होती है, जब लड़की उम्र में बड़ी हो.
पूरी दुनिया का इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है, जहां मर्दों की शादियां अपने से उम्र में 20-30 साल छोटी लड़कियों से होती रही हैं. पाब्लो पिकासो, वूडी ऐलन, रॉबर्ट डिनेराे, हेमिंग्वे से लेकर चार्ली चैप्लिन तक कला, सिनेमा, साहित्य जगत में ऐसे हजारों उदाहरण पूरे इतिहास में बिखरे हुए हैं. लेकिन मजाल है, जो किसी को कभी इस बात से आपत्ति हुई हो. इसमें असमानता नजर आई हो, सत्ता और पावर का बेमेल समीकरण दिखाई दिया हो. बेमेल इन्हें सिर्फ एक ही जोड़ी लगती है और वो, जिसमें लड़की की उम्र लड़के से बड़ी हो.
अमेरिका के राष्ट्रपति की पत्नी अगर उससे उम्र में बहुत कम है तो ये राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय चिंता का प्रश्न नहीं है, लेकिन वहीं अगर फ्रांस के राष्ट्रपति की पत्नी उससे उम्र में बड़ी हो तो ये अंतरराष्ट्रीय चिंता, बहस और ट्रोलिंग का मुद्दा बन जाता है.
कैटरीना कैफ और विक्की कौशल
ये नियम कब और किसने बनाया कि रिश्ते में लड़की की उम्र हमेशा कम ही होगी. ये पितृसत्ता का बनाया नियम है, जो मर्दों को हमेशा हर लिहाज से औरत के ऊपर प्रश्रय देकर रखना चाहता है. मर्द ताकत में बड़ा हो, सत्ता में बड़ा हो, पोजीशन में बड़ा हो, पावर में बड़ा हो, सामाजिक समीकरण में बड़ा हो, संपत्ति में बड़ा हो, अधिकारों में बड़ा हो, इनटाइटलमेंट में बड़ा हो और यहां तक कि उम्र में भी बड़ा ही हो. वो इन तमाम चीजों में बड़ा तभी होगा, जब वो उम्र में भी बड़ा हो. हालांकि ये कोई नियम नहीं है. मर्दों से उम्र में बड़े होने के बावजूद ताकत और सत्ता में औरतें शायद ही कभी मर्दों का मुकाबला कर पाती हों.
कुल मिलाकर बात सिर्फ इतनी है कि मर्द श्रेष्ठ है. उसे हर लिहाज से औरत के ऊपर दर्जा मिलना चाहिए. सोशल मीडिया के ट्रोल्स को ये दर्जा न सिर्फ अपने घरों में और अपने रिश्तों में चाहिए, बल्कि समाज में कहीं भी इस नियम को उलटता देख वो कठहुज्जती पर उतर आते हैं. मलाइका अरोड़ा खान को बुढि़या कहकर चिढ़ाते हैं तो विक्की कौशल की दुल्हन को बूढ़ी स्त्री बताते हैं.
ये सब कुंठित इंडीविजुअल भर नहीं हैं. ये उस पितृसत्तात्मक, मर्दवादी समाज के प्रतिनिधि हैं, जो आज भी इस मामूली से सच्चाई को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं कि औरत और मर्द दोनों बराबर हैं. उनके अधिकार बराबर हैं. उनका सही और गलत बराबर है. दोनों बराबर के मुनष्स हैं. इनके दिमागों में आज भी वो दो सौ साल पुराना कूड़ा घुसा हुआ है कि मर्द औरत से श्रेष्ठ है. उसी श्रेष्ठताबोध के गोबर में नहाए ये सामान्य मनुष्यता तक का परिचय नहीं दे पाते.
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