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- यदि 94 फीसद किसान...
कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान आंदोलनकारी यह नहीं बता पा रहे हैं कि तथाकथित काले कृषि कानूनों में काला क्या है? इसके बजाय वे अक्टूबर तक आंदोलन जारी रखने, दिल्ली में 40 लाख ट्रैक्टर लाकर इंडिया गेट के पास जोताई करने जैसी बातें कर रहे हैं। सरकार ने कई बार वार्ता कर आंदोलनकारियों से जानने की कोशिश की और 18 महीने इन कानूनों को स्थगित करने का प्रस्ताव दिया, ताकि उस कालेपन को चिन्हित कर दूर किया जा सके, लेकिन आंदोलनकारियों को या तो पता नहीं कि उसमें काला क्या है या फिर वे उसे दूर करने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते। क्या नए कृषि कानूनों के पूर्व कृषि और किसानी में सब ठीक था? यदि ऐसा था तो देश का किसान इतना बदहाल क्यों था? महाराष्ट्र में तो वे अनेक प्रविधान अमल में भी हैं, जो नए कृषि कानूनों में हैं। मनमोहन सिंह सरकार में शरद पवार ने कृषि मंत्री के रूप में संसद में इसकी सूचना भी दी थी। अन्य राज्यों में भी कमोबेश ऐसी व्यवस्थाएं हैं, लेकिन चंद किसान नेताओं को मोहरा बनाकर कुछ ताकतें और विपक्षी दल मोदी विरोध के एजेंडे पर चल रहे हैं। इन ताकतों में कुछ देश विरोधी ताकतें भी हैं। यह भी किसी से छिपा नहीं कि कई राज्य सरकारें मंडी राजस्व घटने के भय से अंदर ही अंदर आंदोलनकारियों का समर्थन कर रही हैं।