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फिल्म दि कश्मीर फाइल्स के सिनेमाघरों में आने के बाद फिल्म और विचारधारा को लेकर एक नई बहस प्रारंभ हुई है। कई फिल्म विशेषज्ञों ने यह आरोप लगाया कि यह फिल्म एक विशेष वैचारिकी का प्रतिनिधित्व करती है। जबकि फिल्म इतिहास पर कार्य करने वाले अधिकांश लोग दशकों से यह स्वीकार करते रहे हैं कि भारत में फिल्मों के जरिए एक खास विचारधारा को आगे बढ़ाया जाता रहा है। माओवाद और नक्सलवाद के संदर्भ में यदि भारतीय फिल्मों का विश्लेषण किया जाए तो यह तथ्य अधिक स्पष्ट होकर हमारे सामने आता है। मीडिया विशेषकर सिनेमा का युवाओं पर बहुत अधिक प्रभाव रहता है। उम्र के अनुसार सिनेमा युवा वर्ग के मन को प्रभावित करता है। सिनेमा से प्रभावित होकर युवा सिनेमा के नायकों से सीख व प्रेरणा लेते हैं। यदि फिल्म में कहीं अन्याय व अव्यवस्था का चित्रण किया जाता है और कोई उसके खिलाफ आवाज उठाता है तो युवा उस चरित्र से प्रेरणा लेते हैं। माओवाद के विचारों को युवाओं तक पहुंचाने में फिल्मों ने एक बड़ी भूमिका निभाई है। भारत में हिंदी से लेकर विभिन्न भारतीय भाषाओं में ऐसी फिल्में बनाई गईं, जिनमें देश की व्यवस्था की खामियों को दर्शाया गया तथा इसका एकमात्र विकल्प माओवाद यह भी दिखाया गया है।
