सम्पादकीय

अपराधी की पहचान

Subhi
8 April 2022 4:20 AM GMT
अपराधी की पहचान
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आपराधिक मामलों पर नकेल कसने के मकसद से तैयार दंड प्रक्रिया शिनाख्त संशोधन विधेयक आखिरकार संसद के दोनों सदनों में पारित हो गया। गृह मंत्रालय का कहना है कि इस कानून से पुलिस को अपराधियों की शिनाख्त में काफी मदद मिलेगी और दोष सिद्धि की दर बढ़ेगी।

Written by जनसत्ता: आपराधिक मामलों पर नकेल कसने के मकसद से तैयार दंड प्रक्रिया शिनाख्त संशोधन विधेयक आखिरकार संसद के दोनों सदनों में पारित हो गया। गृह मंत्रालय का कहना है कि इस कानून से पुलिस को अपराधियों की शिनाख्त में काफी मदद मिलेगी और दोष सिद्धि की दर बढ़ेगी। अभी बहुत सारे मामलों में पुख्ता सबूत न होने की वजह से अपराधी छूट जाते हैं। बलात्कार जैसे मामलों में सजा की दर दुनिया के तमाम देशों की अपेक्षा काफी कम है। इसलिए अब आरोपियों के जैविक और शारीरिक नमूने लिए जा सकेंगे, जिससे अपराध के बारे में सही-सही जानकारी मिल सकती है।

पर इस संशोधन पर विपक्ष ने कड़ा एतराज जताया और इसे प्रवर समिति या स्थायी समिति में समीक्षा के लिए भेजने की मांग की। कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने इस विधेयक को असंवैधानिक करार दिया, तो दूसरे विपक्षी दलों ने इसे ब्रिटिश कालीन दमनकारी नीति का पोषक बताया। दरअसल, किसी भी व्यक्ति के जैविक आंकड़े दर्ज करना उसकी निजता का हनन माना जाता रहा है। इसीलिए जब यूपीए सरकार के समय आधार कार्ड बनाने की शुरुआत हुई तो तमाम विपक्षी दलों ने उसका विरोध किया था, क्योंकि उसमें आंखों और अंगुलियों की छाप से व्यक्ति की जैविक पहचान दर्ज की जाती है। वही प्रक्रिया अब आरोपियों पर अपनाई जाएगी।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आपराधिक मामलों पर नकेल कसने के लिए समय-समय पर दंड प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत होती है। मगर ऐसे कानून को शायद ही कोई स्वीकार करे, जिससे बेवजह बेगुनाह लोगों को परेशानी का सामना करना पड़े। किसी भी आपराधिक मामले में प्रथम दृष्टया दोष सिद्ध नहीं हो जाता है। कई आरोपियों से पूछताछ और जांच के बाद ही नतीजे पर पहुंचा जाता है। यानी उसमें कई लोग बेगुनाह होते हैं। फिर हर अपराध की प्रकृति अलग होती है।

किसी नीति या फैसले के विरोध में प्रदर्शन, तोड़फोड़ करना भी किसी स्तर पर अपराध बन जाता है। संगीन अपराधों की अलग सूची है। इस तरह हर अपराध के मामले में आरोपी के साथ एक जैसा बर्ताव नहीं किया जा सकता। इसीलिए विपक्ष को भय है कि इस कानून के जरिए सरकार बेगुनाह लोगों, विपक्षी नेताओं और लक्षित समूहों के प्रति दमनकारी रवैया अपना सकती है। मगर सरकार ने उनकी आशंकाओं को दूर करते हुए आश्वस्त किया है कि सरकार किसी निर्दोष को परेशान करने के इरादे से यह कानून लेकर नहीं आई है।

दरअसल, जैविक आंकड़ों के दुरुपयोग की आशंका हमेशा बनी रहती है। कई जगहों पर देखा गया है कि जैविक पहचान के आंकड़े इकट्ठा करके सरकारें आंदोलन आदि करने वालों को प्रताड़ित करने का प्रयास करती रहती हैं। करीब दो साल पहले हांगकांग में विद्यार्थियों के विरोध के समय सरकार ने उनके जैविक आंकड़ों के आधार पर धर-पकड़ कर उन्हें प्रताड़ित करना शुरू किया था। इसलिए विपक्ष को आशंका है कि भारत सरकार भी कहीं उसी दिशा में न बढ़े। पिछले कुछ सालों में विभिन्न विषयों पर आंदोलन कुछ अधिक देखे जा रहे हैं, इसलिए उन पर नकेल कसने के उपकरण के तौर पर इस कानून का उपयोग न किया जाने लगे। ऐसे में सरकार से अपेक्षा की जाती है कि उसकी ओर से विपक्ष की आशंकाएं दूर करने के प्रयास किए जाएं। आपराधिक मामलों पर अंकुश लगाए बगैर कानून व्यवस्था को दुरुस्त नहीं किया जा सकता, मगर किसी कानून पर लोगों को शक की गुंजाइश भी नहीं होनी चाहिए।


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