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- पहचान का संकट
कृश्न चंदर को दुनिया छोड़े चार दशक होने को आ रहे हैं। लेकिन नेफा से वापिस आया उनका गधा अपनी आत्मकथा लिखकर लाखों की रॉयल्टी कमाने के बावजूद देश की राजधानी में परेशान घूम रहा है। गधा पढऩे का बेहद शौ$कीन है। नेफा यात्रा के दौरान वह तमाम $कस्बों और शहरों में लाइब्रेरी ढूँढ़-ढूँढ़ अपनी आँखों और दिमाग की खाज मिटाता रहा था। दिल्ली आते ही उसने अपने आप से कहा, 'कौन जाए ज़ौक पर दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर। वह बड़ी हसरत से घूमते हुए किताबों की उन दुकानों को ढूँढ़ रहा था, जहाँ कभी खड़े होकर वह पूरी किताब चाट जाता था। उसे किताबों की कोई पुरानी दुकान तो नहीं मिली लेकिन एक ठीहे पर चाय पीते हुए उसके कानों में कुछ लोगों की बहस के स्वर उतरने लगे। उसने सुना कि अब लोगों को किताबों पर भी टैक्स देना पड़ेगा। वह सोचने लगा कि जिस देश में वेद उतरे हों, वहाँ नौबत यहाँ तक आ पहुँची है। फिर किसी ने तर्क दिया कि सरकार हर चीज़ का डिजिटाइजेशन करने पर ज़ोर दे रही है। चूँकि प्रजातंत्र में लोगों की अपनी चुनी हुई सरकार होती है। वह हर हाल में लोगों का भला चाहती है। किताबों पर टैक्स लगने से ई-रीडिंग को प्रोत्साहन मिलेगा।