सम्पादकीय

एक्स-फैक्टर' पहचानकर सराहना करना अच्छे लीडर का काम है

Triveni
20 Dec 2022 2:53 PM GMT
एक्स-फैक्टर पहचानकर सराहना करना अच्छे लीडर का काम है
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फाइल फोटो 

जब वह उसके पेट में गोलियां दाग रहा था, तो तुकाराम ओंबले ने अपने पेट से बंदूक हटने नहीं दी,
जब वह उसके पेट में गोलियां दाग रहा था, तो तुकाराम ओंबले ने अपने पेट से बंदूक हटने नहीं दी, जबकि ये तकलीफदेह था। उन्होंने इसे इतनी जोर से पकड़ा ताकि वह दूसरे पुलिसकर्मी पर हमला न कर सके। उस बंदोबस्त ड्यूटी में सेकंड से भी कम में दूसरा पुलिसकर्मी लपका और उसे जिंदा पकड़ा ताकि दुनिया को साबित कर सकें, जो वाकई जरूरी था।
इस तरह आतंकी अजमल कसाब पकड़ा गया और 2008 में पाकिस्तान दुनिया के सामने बेनकाब हुआ कि यह आतंकी भेजता है। भारत विश्व पटल पर पूरी ताकत से साबित कर सका क्योंकि तुकाराम ने देश के लिए जिंदगी न्यौछावर कर दी थी। वह न सिर्फ मुंबई पुलिस बल्कि महाराष्ट्र, उससे भी ऊपर पूरे देश के लिए 'एक्स-फैक्टर' थे।
मध्यरात्रि के चंद घंटों बाद जब दक्षिणी मुंबई में एक्शन चरम पर था, शहर डर के साए में था, आंखों से नींद गायब थी, उस समय मेरे चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर (सीओओ) एम वेंकटरमण ने संपादकीय मीटिंग के बाहर इस बलिदान की ओर मेरा ध्यान दिलाया और सलाह दी, 'इस पर हमें तुरंत स्टैंड लेना चाहिए, जिस पर शायद इस वक्त किसी का ध्यान न जाए।'
चूंकि उन घंटों व दिन में (26 नवंबर 2008 की रात) तीन बेस्ट पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे, ध्यान बड़े नुकसान पर था, ऐसे में संभावना थी कि कांस्टेबल के बलिदान पर किसी का ध्यान नहीं जाएगा। मुझे उस समय के संपादकों में से एक के रूप में गर्व होता है, जिन्होंने मुंबई के डीएनए अखबार में उनके बारे में ये कहते हुए लिखा कि वह 'एक्स-फैक्टर थे और उन्हें कभी न भूलें'।
कामकाज प्रमुख सीओओ की निगाह हमेशा 'एक्स-फैक्टर' पहचानने पर होती है क्योंकि इन्हें ही रोज के काम को उपलब्धियों तक पहुंचाना होता है। वे कंपनी बोर्ड के लिए जवाबदेह होते हैं। जब बोर्ड खराब प्रदर्शन या प्रदर्शन में कमी पर सवाल करता है तो इन पर ही गाज गिरती है। इसलिए वे अलग-अलग दिन अलग-अलग लोगों को खोजते हैं जो रोजमर्रा के कामकाज में 'एक्स-फैक्टर' के रूप में काम करते हैं।
फ्रांस व अर्जेंटीना के बीच रविवार को खेले रोमांचक विश्व कप फाइनल देखते हुए मुझे ये याद आया और आंखें लगातार वो 'एक्स-फैक्टर' खोज रही थीं। और पहचानना मुश्किल नहीं था, वह अर्जेंटीना के एंजेल डि मारिया थे। डि मारिया ने पहले गोल के लिए पेनाल्टी हासिल की और खुद दूसरा गोल दागा, जिससे अर्जेंटीना को 2-0 की बढ़त मिली।
मैदान के बाईं ओर खेल रहे लेफ्ट फुटर (बाएं पैर से किक मारने वाले) एक के बाद एक डिलीवरी को तेजी से निकालते हुए हर खिलाड़ी को छकाकर सीधे बढ़े और कांटे भरा विश्व कप फाइनल में निर्णायक पल दिया। फ्रांस के खिलाफ डि मारिया का प्रदर्शन इस बात का सबूत था कि पारंपरिक भूमिका में रहकर भी बहुत नुकसान कर सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे तुकाराम का बंदूक थामे रहना पाकिस्तान के खिलाफ साबित हुआ था।
चूंकि अर्जेंटीना की पूरी कहानी हमेशा से ही लार्जर दैन लाइफ फिगर लियोनेल मेसी के इर्द-गिर्द बुनी रही है, ऐसे में अपना आखिरी वर्ल्ड कप खेल रहे डि मारिया की महत्वपूर्ण भूमिका को आसानी से भूल सकते हैं। यह हर किसी के लिए देखने वाली बात थी कि कैसे डि मारिया बाईं ओर (लेफ्ट फ्लैंक) से हावी थे। हमेशा याद रखें कि किसी भी संस्थान में अगर रोज का काम निपुणता से किया जाए तो किसी दिन यह 'एक्स-फैक्टर' बन जाता है।
फंडा यह है कि इन दो असाधारण घटनाओं से हम आम लोग जो सीख सकते हैं, वह यह है कि उन लोगों की तलाश करें जो उस दिन के लिए 'एक्स-फैक्टर' बनाते हैं। वे रोज बदल सकते हैं और उन्हें पहचानकर सराहना करना अच्छे लीडर का काम है।
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