सम्पादकीय

आदर्शों का खनन जरूरी

Gulabi
30 Aug 2021 5:39 AM GMT
आदर्शों का खनन जरूरी
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खनन हमारे आसपास का ऐसा सत्य है जिसके दम पर दावे हकीकत बनते हैं

दिव्याहिमाचल.

खनन हमारे आसपास का ऐसा सत्य है जिसके दम पर दावे हकीकत बनते हैं। खनन में मिलावट का कोई अंशदान नहीं, बल्कि जहां चाहें वहां यह अपनी गुणवत्ता से हाजिर हो सकता है। जीवन के जिस हिस्से का खनन अधिक होता है, वही सत्य है। इसलिए सत्य या तो रिटायर कर्मचारी, हारे हुए नेता, घरेलू जिम्मेदारी से बेदखल बुजुर्ग या जवानी खोने पर होता है। बिना खनन के सत्य को खोजेंगे तो यह अधूरा ही होगा। आज की तमाम व्यवस्थाओं मेें आदर्श के बजाय खनन पर गौर करेंगे, तो राहत के रास्ते निकलेंगे वरना भारत के विकास की हर साबुत ईंट के भीतर का सच कभी बाहर नहीं आता। खनन के लाभार्थी हम सभी हैं, बल्कि अब हमारे जीने के लिए खनन का ही सहारा है।
व्यवस्था अगर अव्यवस्था में न बदले तो हमारे जीवन के कई हिस्से अपाहिज हो जाएंगे। गौर करें हमारा राशन कार्ड खनन के किस सुराख की मेहरबानी से आसानी से बनता है या सीधी व्यवस्था में ड्राइविंग जैसा लाइसेंस बना कर दिखा दें। यह हमारे चरित्र की आदत है कि हम ट्रैफिक लाइट से बचकर निकलने का जरिया ढूंढ लेते हैं। खनन तोल में है, बोल में है, मोल में है और हर तरह के घोल में है। आश्चर्य है कि अब हर तरह की पवित्रता, स्वाभाविकता, भावुकता या आकुलता अपने ही जीवन का खनन है। इसलिए खुद की संवेदना बचानी है, तो चुपके से आदर्शों का खनन करो। आप चारित्रिक खनन के बिना अपनी औलाद को भी पटा नहीं सकते और न ही भाइयों से अपनी जमीन हासिल कर सकते हैं। खनन हर सरकारी कार्यालय की फाइल से शुरू होकर कानून की फेहरिस्त तक है। तरक्की के जिस पक्ष में खनन है, उसे समझ कर ही आगे बढ़ सकते हैं। अगर कांग्रेस का खनन न होता, तो क्या मोदी सरकार होती। और यह होता रहेगा, क्योंकि कांग्रेस का अब यही सत्य है। अपने आसपास अगर प्रमाणित होते खनन को देखना है, तो राजनीति को देखो कि किस तरह नेता अपने आसपास खड़े समर्थकों का खनन करके बड़ा बन जाता है।
जिसने मतदाता सूची का खनन कर लिया, वह सर्वमान्य नेता है। हम उसे स्वीकार करते हैं, क्योंकि जरूरत पर ऐसा नेता हमें भी इस खनन का हिस्सा देता है। वह नौकरी दिलाने से लेकर मनपसंद पोस्टिंग कराने तक खनन से ही हमारा रास्ता बनाता है। इसलिए नेता को हर वोट के चरित्र का पता है। सबसे कमजोर वोट बुद्धिजीवी वर्ग का है, क्योंकि इसका खनन नहीं होता, जबकि जहां खनन से वोट ढेर में बदलते हैं, उसका ही तो मोल होता है। देश की बहस भी अब बौद्धिक खनन है। लाख कोशिश कर लें और किसी टीवी बहस के आगे बैठकर यह चुनौती पूरी करके बताएं कि आपका बौद्धिक खनन नहीं हो सकता। दरअसल हम हर बहस में खनन, न्याय में खनन, खाने-पीने में खनन, सांस्कृतिक विरासत में खनन और विचारों के आदान-प्रदान में खनन के सहारे ही तो जीवन को सिद्ध कर पा रहे हैं। ऐसे में देश में सच्चा नागरिक बनना है या अपनी नागरिकता सिद्ध करनी है, तो उस खनन के पक्षधर बनें जो आजादी के सत्तर सालों बाद भी हमारे भीतर ही धैर्य के खनन को अपना सबूत मानता है।
निर्मल असो, स्वतंत्र लेखक
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