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भारतीय संसद ने हाल ही में चुनाव कानूनों में एक संशोधन को मंजूर किया है
टी वी मोहनदास पई। भारतीय संसद ने हाल ही में चुनाव कानूनों में एक संशोधन को मंजूर किया है, जिसके मुताबिक, देश का कोई भी नागरिक अब स्वेच्छा से अपने आधार को देश की मतदाता सूची से डिजिटल तरीके से जोड़ सकता है। यह चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 पिछले साल 20 दिसंबर को लोकसभा से पारित किया गया और उसके अगले दिन राज्यसभा से। हालांकि, चुनाव सुधार की जरूरत पर गौर करने के बजाय इस बिल पर अनावश्यक विवाद भी पैदा किया गया।
सुधारों की हमें कितनी सख्त जरूरत है, यह कोई छिपी हुई बात नहीं है। हमारी मतदाता सूचियों में बड़ी गड़बड़ियां हैं। हमारे पास नागरिकों का कोई राष्ट्रीय डाटाबेस नहीं है, जिसे मतदाता सूची के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। चूंकि हमारी आबादी काफी ज्यादा है, इसलिए नाम दर्ज करने की प्रक्रिया भी कठिन है। इसमें खासा समय लगता है और यह सुनिश्चित करने के लिए भी जांच की जरूरत है कि डाटा पूरी तरह और सही तरीके से दर्ज हो।
भारत में हर राज्य अपनी-अपनी मतदाता सूची का प्रबंधन करता है। जैसे ही चुनाव के दिन करीब आते हैं, मतदाता सूची को संशोधित किया जाता है और नागरिकों को अपने विवरण की जांच करने के लिए कहा जाता है। कमोबेश इसमें गलतियां होती ही हैं और उनको ठीक करना काफी मुश्किल होता है। मसलन, कभी-कभी जैसे ही सूची प्रकाशित होती है, मतदाता के नाम ही गायब हो जाते हैं। अगर कोई निवास स्थान बदलने या किसी दूसरे शहर में स्थानांतरित होने के बाद कोई बदलाव करता है, तो नए स्थान पर नामांकन की प्रक्रिया काफी समय लेती है। भले ही आपके पास मतदाता पहचान पत्र हो, लेकिन मतदाता सूची से उसके विवरण का मिलान आवश्यक है।
आज मतदान करने वाला हर नागरिक अपने निवास स्थान के आधार पर एक खास मतदान-केंद्र से जुड़ा है, और यदि आप चुनाव के वक्त यात्रा पर हैं, तो आप किसी अन्य स्थान पर वोट नहीं दे सकते। इस भौगोलिक बंदिश के कारण बड़ी संख्या में लोग मतदान से वंचित हो जाते हैं, जो हमारे लोकतंत्र की एक जगजाहिर कमी है। इतना ही नहीं, यदि मतदाता सूची दुरुस्त न हो, तो कोई योग्य भारतीय इलेक्ट्रॉनिक रूप से भी अपना मत नहीं दे सकता। इसलिए भारत को आज जिस चीज की सर्वाधिक जरूरत है, वह है मतदान के योग्य नागरिकों का एक इलेक्ट्रॉनिक डाटाबेस। डाटाबेस इस तरह से बनना चाहिए कि एक बार यदि मतदाता अपनी नागरिकता के आधार पर पंजीकृत हो जाए, तो निवास स्थान में बदलाव या अन्य तमाम संशोधन वह आसानी से कर सके, ताकि अनावश्यक परेशानियों से बचते हुए वह अपना वोट दे सके।
ऐसा करने का एकमात्र तरीका मतदाता सूची को आधार से जोड़ना है। आज 18 साल से अधिक उम्र के अधिकांश नागरिकों के पास आधार है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 31 अक्तूबर, 2021 तक 126 करोड़ से अधिक आधार कार्ड जारी हो चुके थे। इनमें वे लोग भी शामिल हैं, जिनकी मौत हो चुकी है। अब तक करोड़ों प्रमाण पत्रों को प्रमाणीकृत किया जा चुका है और यह प्रक्रिया लगातार चल रही है। लिहाजा, आधार डाटा सुरक्षित और पूरी तरह से उपयोग करने योग्य है।
वहीं दूसरी तरफ, मतदाता सूची की गड़बड़ियों की वजह से कई मतदाता मताधिकार का इस्तेमाल नहीं कर पाते। अगर संशोधन समय पर नहीं किए जाते हैं और नए मतदाताओं के पंजीकरण में देरी होती है (जैसा अक्सर होता है), तब भी कई योग्य मतदाता वोट देने से चूक जाते हैं। इससे मताधिकार का प्रयोग करने वाले मतदाताओं का अनुपात कम होता है, और मतदान अनुपात भी, जो वास्तव में अधिक होना चाहिए।
जाहिर है, स्वेच्छा से अपने आधार नंबर को मतदाता सूची से जोड़ने संबंधी नया संशोधन एक बड़ा सुधार है। यह हमारे लोकतंत्र को मजबूत करेगा। कई नागरिकों, नागरिक समूहों और चुनाव आयोग द्वारा भी ऐसी मांग की गई थी। बेशक आलोचक इसके खिलाफ जोरदार तर्क रखते हैं और निजता के अधिकार के हनन की दुहाई देते हैं। मगर जब कानून कहता है कि जोड़ने का यह काम स्वैच्छिक है, तो कैसे यह कवायद निजता का उल्लंघन कर सकती है? हां, चुनाव आयोग को यह जरूर सुनिश्चित करना होगा कि पूरी आधार संख्या कहीं भी प्रकाशित या प्रकट न हो। और, यह आसानी से हो सकता है, जैसे टीकाकरण प्रमाणपत्र के रूप में जारी कोविन प्रमाणपत्र में किया गया है।
विरोधियों का एक और तर्क है कि यह बड़ी तादाद में मतदाताओं को अपने अधिकारों से वंचित कर देगा। यह भी बेजा बात है, क्योंकि जुड़ाव स्वैच्छिक है और अन्य सभी दस्तावेज, जो पंजीकरण और वोट देने के अधिकार को सुनिश्चित करते हैं, उपयोग में लाए जा सकते हैं। इसमें कोई मौजूदा अधिकार छीना नहीं जा रहा है, और न ही नई जिम्मेदारी थोपी जा रही है। एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि आधार पहचान का प्रमाण है, न कि नागरिकता का। वाकई यह सही तथ्य है, लेकिन जब कोई अपना पंजीकरण मतदाता के रूप में कराता है, तो उसे नागरिकता किसी अन्य दस्तावेज से साबित करनी पड़ती है, न कि आधार से। जो लोग आधार को लिंक कराना चाहते हैं, वही ऐसा कर सकेंगे।
फिर भी, कुछ लोगों का तर्क है कि यह संविधान-विरोधी है, क्योंकि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है और सर्वोच्च अदालत के उस फैसले के खिलाफ है, जिसमें कहा गया है कि सरकार को उन मामलों में आधार मांगने के लिए कानून बनाना चाहिए, जिसमें लोगों को आर्थिक लाभ नहीं दिया जाता है। चूंकि यह जुड़ाव स्वैच्छिक है और संशोधन पारित किया जा चुका है, इसलिए इनमें से कोई भी तर्क गले नहीं उतरता।
साफ है, मतदाता पंजीकरण, सत्यापन, निवास में परिवर्तन, त्रुटि-सुधार जैसी कवायदों को तो यह प्रक्रिया आसान बनाएगी ही, इन सबसे कहीं अधिक यह फर्जी वोटिंग और एक ही इंसान द्वारा कई बूथों पर मतदान करने जैसे गैर-कानूनी कृत्यों को भी रोकेगी। क्या यह चुनाव सुधार की दिशा में बड़ा कदम नहीं है?
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