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सचमुच आज का दिन भारतीय इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है
सरदार नागप्पा,
सचमुच आज का दिन भारतीय इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है।... ये अल्पसंख्यक बहुत देर से हमारी स्वतंत्रता का मार्ग रोके हुए थे। अंग्रेज अल्पसंख्यकों का पक्ष आज तक इसलिए लेते रहे हैं, ताकि हमें स्वतंत्र करने में वे देर कर सकें। हम 15 अगस्त को स्वतंत्र हुए हैं और आज 27 तारीख है और केवल 12 दिनों में ही अल्पसंख्यकों के साथ समझौता हो गया है। अत: श्रीमान आप स्वयं देख सकते हैं कि भारत में कितनी एकता विद्यमान है। क्योंकि हम हमेशा के लिए बंटे हुए दिखाई देते थे, इसलिए अंग्रेज यह चाल हमारे साथ खेल रहे थे। अब कुछ महीनों में ही हमने एक-दूसरे को समझ लिया है और इस कारण ही हम अल्पसंख्यक समिति की सर्वसम्मत रिपोर्ट तैयार कर सके हैं। याद रखें कि इस समिति में सब मतों के प्रतिनिधि तो थे ही, परंतु बहुसंख्या अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों की थी।... खैर मैं अतीतकाल की बातों में नहीं जाना चाहता। मैं प्रसन्न हूं कि रेम्जे मैक्डेनल्ड द्वारा 15 वर्ष पहले पैदा की गई शरारत को आज हमने समाप्त कर दिया है। आज जो तबाही हो रही है, उसके लिए वह उत्तरदायी है। देश में जो नुकसान हुआ, उसके लिए वही जिम्मेदार है। यदि मेरे पास शक्ति होती, तो मैं उसे इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए बुलाता। यही वह व्यक्ति है, जिसने ...सांप्रदायिक बंटवारे द्वारा हमारे देश में फूट का बीज बोया।
आज का दिन बहुत मंगलमय है, क्योंकि सब अल्पसंख्यक एक होकर समझने लग गए हैं कि व्यक्ति या किसी संप्रदाय विशेष के हितों से देश का हित बहुत ऊंचा है।... यह अच्छा होगा कि अल्पसंख्यक सदस्यों को यकीन दिला दिया जाए कि उन्हें भी मंत्रिमंडल में लिया जाएगा और यदि इस विषय में कोई वैधानिक शर्त बना दी जाए, तो यह और भी संतोषजनक होगा। उदाहरण के तौर पर, मैं अपने प्रांत (मद्रास) को ही लेता हूं। हमारे यहां 215 सदस्य हैं। इनमें 30 हरिजन हैं। इस तरह धारा सभा में उनकी संख्या 117 है, जबकि प्रांत भर में उनकी गणना 115 है। उनकी जनसंख्या चार करोड़ नब्बे लाख के प्रांत में अस्सी लाख है... परंतु मंत्रिमंडल में उन्हें कोई हिस्सा नहीं मिला। हमारे मंत्रिमंडल में 13 या 14 मंत्री हैं, अत: अपनी सदस्य संख्या के अनुपात से उनके दो मंत्री होने चाहिए थे...। मैं कहता हूं कि हरिजन स्वयं मंत्री चुनना नहीं चाहते। मंत्रियों को चुनने का कार्य प्रधानमंत्री पर छोड़ दिया गया है। मेरी मांग तो केवल यह है कि मंत्रिमंडल में हरिजनों का भाग विधान द्वारा सुरक्षित कर दिया जाए। मैं अनुभव करता हूं कि हमें प्रधानमंत्री की दया पर नहीं रहना चाहिए। अपनी मर्जी से मंत्रियों को चुनने का अधिकार तो प्रधानमंत्री को मिल जाना चाहिए, परंतु हम ऐसी स्थिति में रहने के लिए तैयार नहीं, जिससे हमें महसूस हो कि उसने हम पर कोई मेहरबानी की है। मंत्रिमंडल में लिया जाना हमारा उचित अधिकार है। यह मांग करके हम कोई दान नहीं मांग रहे हैं। ...यह मार्ग है, जिस पर चलकर न्याय किया जाएगा। आज हम खुली आंखों से अन्याय होता देख रहे हैं।...
यह तो सहज है कि औपनिवेशिक अध्यक्ष, अधिष्ठाता, उपाधिष्ठाता और उपाध्यक्ष उनमें से बारी-बारी से बनाए जाएं। उदाहरण के लिए, 12 बार में ये पद 6 बार बहुसंख्यक जाति के, 3 बार परिगणित जातियों के, 2 बार मुसलमानों के और एक बार अन्य छोटे अल्पसंख्यकों के हिस्से में आने चाहिए। ...औपनिवेशिक सरकार ने हाल ही में नौकरियों के बारे में जिस नीति का अवलंबन किया है, तदर्थ प्रसन्नतापूर्वक मैं उसे बधाई देता हूं। इसने कई एक जातियों से न्याय किया है और विशेषतया ईसाई जाति और ऐसी ही किसी अन्य जाति को तो न्याय से भी अधिक भाग दिया गया है। इस विषय में सरकार का कदम उपयुक्त ही है। मेरे विचार में यदि रिपोर्ट में ही यह दर्ज कर दिया जाता कि प्रत्येक जाति विशेष को नौकरियां उनकी जनसंख्या के अनुपात में ही मिलेंगी, तो बेहतर होता। मैं एक से छीनकर दूसरे को देने के हक में नहीं। यह नीति बहुत ही बुरी है। मैं अपना हिस्सा लेना चाहता हूं। चाहे मैं अज्ञानी, अबोध अथवा गूंगा भी क्यों न हूं। मेरी उपयुक्त मांग अवश्य स्वीकार की जानी चाहिए। मेरे गूंगे अथवा अबोध होने का आप लोग लाभ न उठाएं। मैं तो केवल अपना उचित भाग चाहता हूं और कुछ नहीं। अन्य लोगों की भांति मैं पासंग या पृथक राजसत्ता नहीं चाहता, हालांकि, इस देश के आदिवासी होने के कारण पृथक राजसत्ता के लिए हमारा सबसे अधिक अधिकार है।
सोर्स- Hindustan Opinion Column

Rani Sahu
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