सम्पादकीय

मुझे मरने की भी फुरसत नहीं है!

Rani Sahu
17 March 2022 7:03 PM GMT
मुझे मरने की भी फुरसत नहीं है!
x
यह मजाक नहीं, अक्षरशः सत्य है कि मुझे मरने की भी फुरसत नहीं है

यह मजाक नहीं, अक्षरशः सत्य है कि मुझे मरने की भी फुरसत नहीं है। सुबह पोती को स्कूल छोड़ने घर से निकल रहा था, तभी यमदूत आ गए, बोले -''चलिए नरकलोक में आपको याद फरमाया जा रहा है।'' मैं बोला 'देखिए, डेढ़-दो घंटे बाद आना, मैं अपनी पोती को स्कूल छोड़ आऊं।'' बेचारे मान गए, चुपचाप चले गए। स्कूल से छोड़कर आया तो पत्नी ने थैला थमा दिया और बोली -''जाओ बाजार से सब्जी ले आओ।'' सब्जी लेने के लिए निकलने लगा और यमदूत फिर आ गए, मैने कहा -''कमाल कर दिया। मैंने डेढ़-दो घंटे का नाम लिया और आप इसी दरम्यान आ गए। थोड़ी तो लिहाज करो, मुझे तो ले जाना, लेकिन घर के सात सदस्यों की सब्जी तो लाकर दे दूं। अभी आप घंटे भर और ठहरो।' वे बोले -''देखो हमारी भी नौकरी है। महाराज यम कहेंगे कि किसी को लाने में इतना वक्त थोड़े ही लगता है। हम तो कोरियर वाले हैं, आत्मा को ले जाना हमारा काम है। चलो घंटे भर बाद आ जाएंगे। लेकिन अब की बार नहीं चलेगा कोई बहाना।'' मैने कहा-''मैं कोई बहाना नहीं कर रहा। यह वास्तविकता है।'' वे चले गए और मैं सब्जी लेने बाजार। वापस घर आया, शेव बनाने और नहाने-धोने तथा टिफिन तैयार करने में लग गया। मुझे याद ही नहंीं रहा कि यमदूत आएंगे। स्कूटर स्टार्ट कर ही रहा था कि वे आ गए। वे बोले -''लाला, कहां रफूचक्कर हो रहे हैं। अभी घर से निकल जाते तो हम ढूंढते फिरते। अब चलो।'' मैंने कहा -''अब तो शाम के 6 बजे तक मैं दफ्तर जाने के लिए बुक हूं।

वहां लोगों के काम करने हैं और जाऊंगा तो दो पैसे रिश्वत के घर में लेकर आऊंगा, जिससे घर आराम से चलेगा। भाई नौकरी का मामला है, इस समय तो मैं नरक में भी नहीं जा सकता। नरक यहां क्या कम है। यहां भी भोग ही रहा हूं। ऐसा करो फिलहाल किसी और को ले जाओ। बहुत से ठाले लोग हैं जो गप्पें लगा रहे हैं। यमराज कौनसा रिकॉर्ड देखने बैठेंगे उसे डाल देंगे नरक में।' यमदूत बोले -'' नहीं, हम ऐसा नहीं कर सकते। हमारी नौकरी चली जाएगी। यमराज के पास पूरा रिकॉर्ड है। रिकॉर्ड में हेरा-फेरी के आरोप में हम फंस गए तो, इनक्वायरी बैठ जाएगी। इसलिए अब तो आप दफ्तर नहीं, यमराज के पास चलो।'' मैं बोला -''देखो, मुझे मरने की भी फुरसत नहीं है। गृहस्थी की चक्की में कोल्हू के बैल की तरह जुता हुआ हूं। कृपया मुझे दफ्तर जाने दो।' यमदूत दो थे, दोनो ने एक-दूसरे का मुंह देखा, फिर मुझसे बोले -''अच्छा तो शाम का टाइम बता दो, हम उस समय आ जाएंगे।'' मैने कहा -''साढे़ छह बजे के बाद कभी भी आ जाओ।'' वे अपने धाम चले गए और मैं मेरे दफ्तर में। शाम को दफ्तर में यकायक काम आ गया तो समय पर निकलना नहीं हुआ। बॉस ने कहा – 'काम पूरा करके जाओ। मैं भी यहीं हूं।' मन मारकर दिनभर लगाई गप्प का मजा किरकिरा हो गया। हारकर काम करते रहे। साढ़े सात बजे के करीब वाईफ का घर से फोन आया कि कोई दो डरावने से व्यक्ति घर पर मेरी वेट कर रहे हैं। मुझे यकायक याद आया कि यमदूत आ गए। मैंने सोचा ये मौत भी मेरे हाथ धोकर पीछे पड़ गई है। और मुझे मरने की भी फुरसत नहीं है।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक

Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story