सम्पादकीय

मैं 45 विधायकों की सड़क

Gulabi
4 Oct 2021 4:35 AM GMT
मैं 45 विधायकों की सड़क
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हिमाचल प्रदेश की एकमात्र ऐसी सड़क जिसका प्रतिनिधित्व 45 विधायक करते हों

दिव्यहिमाचल।

हिमाचल प्रदेश की एकमात्र ऐसी सड़क जिसका प्रतिनिधित्व 45 विधायक करते हों, उसकी स्थिति का अवलोकन प्रादेशिक मानचित्र पर हमारे जनप्रतिनिधियों की तस्वीर सरीखा है। हर दिन प्रदेश के लाहुल-स्पीति, कुल्लू, मंडी, बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा व चंबा जिलों व शिमला तथा सोलन की दो विधानसभाओं के लोग शिमला-धर्मशाला नेशनल हाईवे के किसी न किसी हिस्से से गुजरते हैं, फिर भी इस सड़क का राज्य स्तरीय महत्त्व गौण है। हिमाचल प्रदेश के इन क्षेत्रों से 45 विधायकों की जनता प्रदेश की राजधानी तक पहुंचने के लिए अपने गंतव्य और मंतव्य को इसी सड़क के माध्यम से जोड़ती है। ताज्जुब यह कि वर्षों से विधानसभा के कितने ही सत्र गुजर गए, लेकिन किसी भी सदस्य ने उस रगड़ का जिक्र नहीं किया जो शिमला से निकलते ही घाघस पुल तक जख्म बन जाती है। सड़क के इसी भाग तक भी जख्म गिने जाएं, तो हर दिन गुजरते यात्रियों की पीठ पर अंकित विकास का दर्द महसूस होगा।

इसी भाग पर एकाधिकार जमाए ट्रकों की रफ्तार, कतार और व्यवहार की कसौटी पर राजधानी से 45 विधानसभाई क्षेत्रों की जनता का रिश्ता भी सड़क दुर्घटना सरीखा है यानी तीन-चौथाई प्रदेश के लिए शिमला को छूना कठिन तो था, अब बदतर भी हो गया। इसी सड़क पर प्रदेश की आर्थिकी का संचार करता सीमेंट उद्योग चलता है, सेब की फसल ढोई जाती है, तो तमाम नकदी फसलों में कभी मक्की की कलई खुल जाती, कभी अदरक का स्वाद छिल जाता है, तो कभी सब्जियों के दाम गिर जाते हैं। विकास के बाहुपाश में परवाणू-शिमला व कीरतपुर-मनाली जैसे फोरलेन प्रोजेक्ट चल रहे हैं और अब तो पठानकोट-मंडी फोरलेन भी करवट ले रही है, मगर शिमला-धर्मशाला सड़क की स्थिति को यह भी मालूम नहीं कि इसका भविष्य क्या है। सर्वप्रथम जगत प्रकाश नड्डा ने ही शिमला-धर्मशाला फोरलेन परियोजना के सब्जबाग चुने थे और उसके बाद केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने पुनः बीज बो दिए, लेकिन ये न तो किसी फोरलेन की यात्रा में मिले और न ही टू-लेन की खुदाई में मिले। इसी बरसात में सड़क का एक बड़ा हिस्सा गायब हो गया है, लिहाजा 45 विधायकों की जनता अपने सब्र का बांध तोड़ते हुए लगभग तीस किलोमीटर की अतिरिक्त यात्रा के कष्ट जोड़ लेती है। हिमाचली विकास के मॉडल का अति निर्लज्ज चरित्र और क्या होगा कि जिस सड़क को जनता के प्रतिनिधित्व की अनूठी तस्वीर बनना चाहिए, वह मायूस करती है।
यह आर्थिक व राजनीतिक विषमताओं का ऐसा चित्रण है, जिसे हर वह शख्स महसूस कर सकता है जो प्रदेश की राजधानी से अपने मसलों का हल व न्याय की उम्मीद रखता है। हैरानी यह कि केंद्र में हिमाचल की दो बड़ी हस्तियों के लिए यह सड़क उनके राजनीतिक रुख को ढोते हुए भी क्यों अनाथ है। दूसरे यह भी कि इस सड़क का भविष्य कब शुरू होगा और कब इसे इसके अतीत से मुक्ति मिलेगी। जिस दिन चंबा और शिमला की दूरी छह घंटों में सिमट जाएगी, उस दिन हिमाचली विकास के मायने निष्पक्ष, पूर्ण व किसी भी तरह के क्षेत्रवाद से ऊपर होंगे, अन्यथा ढकोसलों के मंच पर राजनीतिक शेखियों में कई वर्ष गुजर गए। हिमाचल की सड़कों का घनत्व वाकई तारीफ के काबिल है, लेकिन प्रदेश के यातायात दबाव व भौगोलिक समीकरणों को शिमला से जोड़ती सड़कों का हिसाब भी होना चाहिए। अतंतः राज्य की संपूर्णता में भरमौर से किन्नौर और चिनौर से किन्नौर तक की यात्रा जब तक सरल, सक्षम व संक्षिप्त दूरियों में मुकम्मल नहीं होती, यातायात का संतुलन सामने नहीं आएगा। हिमाचल की सड़क कनेक्टिविटी के कंेद्र में हमीरपुर के रास्ते ही राज्य जुड़ेगा। इसी तरह रेलवे विकास की धुरी में ऊना के माध्यम से खाका बनना चाहिए, जबकि हवाई यात्राओं को उन्नत शिखर पर ले जाने के लिए कांगड़ा एयरपोर्ट की अहमियत को हमेशा पुख्ता करना पड़ेगा। वक्त की बेडि़यों व विकास के विकृत अध्यायों को सुधारने के लिए राजधानी से प्रदेश के संपर्क सूत्र विकसित होने चाहिएं, लिहाजा इस दृष्टि से शिमला-धर्मशाला सड़क परियोजना पर कम से कम 45 विधायकों की जवाबदेही बनती है।
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