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- मैं रिटायर हो गया हूं
जब मैं सरकारी सेवा में आया था, उस समय एक महापुरुष ने आकर कहा था- ''नौकरी न कीजिए- घास खोद खाइए।'' लेकिन मुझे नौकरी की जरूरत थी-सो मैं नौकरी करने लगा। पता ही नहीं चला मैंने कब सेवा के 36 वर्ष पूरे कर लिए, तब एक दिन ''केवल्य'' प्राप्त हुआ कि मैं यह तनाव भरा जीवन क्यों जी रहा हूं। इस मध्य मैं शुगर, ब्लडप्रेशर व अन्य रोगों का तोहफा मुझे अलग मिल चुका था। डॉक्टरों के चक्कर और दवाओं से घनचक्कर बना मैं घर का रहा न घाट का। अभी भी सेवा के दो वर्ष शेष रह गए थे। मैंने अपनी पत्नी से एक दिन कहा- ''देखो, अब मैं नौकरी नहीं कर सकता। मेरा शरीर जवाब दे गया है। इसलिए मैं स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेना चाहता हूं।'' पत्नी ने मेरी क्षीण होती काया पर पहली बार गौर से दृष्टिपात किया और बोली- ''आप वीआरएस ले ही लें। आपने इस घर के लिए इतना किया है कि वह अविस्मरणीय है। हम भले एक टाइम दलिया खाकर टाइम पास कर लेंगे, लेकिन यातना-शिविर से तो आप बाहर निकल जाएंगे।'' पत्नी के आप्त वचन सुनकर मन गदगद हो गया। अंधे को क्या चाहिए, दो नैन-वे मुझे मिल गए थे। मोरल सपोर्ट बहुत बड़ी चीज है।