सम्पादकीय

पुरस्कार रोग से लाचार और मैं तीमारदार

Rani Sahu
5 July 2022 7:01 PM GMT
पुरस्कार रोग से लाचार और मैं तीमारदार
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कवि दो तरह के होते हैं। एक वे जो समाज के लिए लिखते हैं, दूसरे वे जो पुरस्कार के लिए लिखते हैं

कवि दो तरह के होते हैं। एक वे जो समाज के लिए लिखते हैं, दूसरे वे जो पुरस्कार के लिए लिखते हैं। वे पुरस्कार को लिखने वाली श्रेणी के कवि हैं। दो बातें हैं, समाज के लिए लिखने वाला कवि पुरस्कार के लिए नहीं लिखता और पुरस्कार के लिए लिखने वाला कवि समाज के लिए नहीं लिखता। दोनों की अपनी अपनी पीड़ाएं हैं। उनकी सबसे अच्छी बात जो मुझे ही नहीं, उनको सम्मानित करने वाली हर संस्था को भी लगती है, वह यह कि वे अपने को पुरस्कृत करवाने का बोझ किसी संस्था, व्यक्ति पर नहीं डालते। अपने पुरस्कृत होने का सारा खर्चा वे खुद ही वहन करते हैं। पुरस्कार समारोह में समोसा चाय से लेकर हाय! हाय! तक सारा। और इधर उधर मिल मिलाकर जब वे अपनी जेब के बूते पुरस्कृत हो जाते हैं तो झट अपनी फेसबुक वॉल पर लेप देते हैं- अमुक साहित्य विधा, अमुक संस्था, अमुक नगरे, अमुक तिथि वासरे, मी पुनः पुरस्कृतः। जब भी वे घर से बाजार सब्जी लाने भी निकलते हैं तो वे सब्जी लाने को जेब में पैसे डालने भूल जाएं तो भूल जाएं, पर झोले में अपने को पुरस्कृत होने की क्रिया प्रक्रिया में काम आने वाली ए टू जेड सामग्री डाले निकलते हैं।

यथा- शॉल, टोपी, श्रीफल, सरस्वती की प्रतिमा, सम्मान के नाम वाला बहुत पहले छपवाया प्रमाण पत्र जिसमें संस्था का नाम, स्थान, उसके द्वारा उनको दिए जाने वाले सम्मान की जगह खाली छोड़ी हुई। तब जो संस्था जिस पुरस्कार के नाम से उन्हें अलंकृत करना चाहे उस स्थान पर भर उन्हें सादर सम्मानित कर अपने को कृतार्थ कर सकती है। अबके बड़े दिनों से उनकी फेसबुक वॉल पर उनके इधर उधर पुरस्कृत होने की चमत्कारिक खबर पढ़ने को न मिली तो मन में कुछ आशंका सी हुई। सोचा! बंधु स्वस्थ तो होंगे न! सच कहूं तो उनके बिना फेसबुक सूनी सूनी सी लगती है। जिस दिन वे फेसबुक पर साहित्य के नाम पर कचरा नहीं डालते उस दिन फेसबुक से बू नहीं बदबू आती है। आशंकाओं, शंकाओं के बीच तब मैंने उनसे संपर्क किया, 'कैसे हो बंधु! बड़े दिनों से फेसबुक पर आपके पुरस्कृत होने का कोई समाचार नहीं मिला पढ़ने को। मेरी उंगलियां आपको लाइक करने को दुख रही हैं, तो वे लंबी सांस लेते बोले, 'यार! कई दिनों से वायरल हो रखा है।' पुरस्कृत होने का वायरल तो तुम्हें लिखने से पहले का है। ऐसे में अब कोई नया वायरल? वायरल को भी कभी वायरल होता है क्या?' 'मजाक मत कर यार! एक तो अवांछित वायरल ने परेशान कर रखा है और ऊपर से तुम परेशान कर रहे हो।
मेरे लिए एककाम कर सकते हो?' 'हां! क्यों नहीं। कहो, कौन सी दवा लेकर आऊं जिससे तुम्हारा वायरल ठीक हो जाए?' 'दवा को मारो यार गोली! बहुत दिनों से कहीं से किसी संस्था से पुरस्कृत नहीं हुआ हूं। मन में अजीब सा कुछ कुछ हो रहा है। न भूख है न प्यास!' 'तो?' मैं चिंताग्रस्त! मित्र को कुछ हो हवा गया तो अपनी जेब से पुरस्कृत होने वाला साहित्य जगत में एक कम न हो जाए कहीं। 'मेरे घर आ सकते हो क्या?' 'पर तुम्हारा ये अनाप शनाप पुरस्कृत होने का वायरल मुझे तो नहीं लग जाएगा कहीं?' 'बिल्कुल नहीं यार! ये मेरा निजी वायरल है। तुम आकर मुझे बस, पुरस्कृत कर जाओ तो मैं…घर में पुरस्कृत करने की सारी सामग्री तैयार है। बस, तुम्हें मुझे पुरस्कृत करते हुए मेरे साथ एक फोटो भर खिचवानी है। शेष सब मैं देख लूंगा। इस बहाने साथ साथ जलपान भी हो जाएगा और…हो सकता है इससे मेरा वायरल ठीक हो जाए…।' अपने खास दोस्तों के स्वस्थ होने का इलाज हम खास दोस्त नहीं करेंगे तो दुश्मन तो करने से रहे।
अशोक गौतम

सोर्स- divyahimachal


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