सम्पादकीय

भोजन के बाजार में भुखमरी

Rani Sahu
22 Oct 2021 6:41 PM GMT
भोजन के बाजार में भुखमरी
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भौतिक देह को अंतिम सत्य मानने वाला ‘चार्वाक दर्शन कहता है

भौतिक देह को अंतिम सत्य मानने वाला 'चार्वाक दर्शन कहता है : 'परान्नं प्राप्य दुर्बुद्धे, मा प्राणेषु दयां कुरु, परान्नं दुर्लभं लोके, प्राण: जन्मनि जन्मनि। इसका अर्थ है कि शरीर तो बार-बार जन्म लेगा, उस पर दया करना मूर्खता है। दूसरों का अन्न दुर्लभ है और उसे पाने का अवसर नहीं चूकना चाहिए। 'लोकायत दार्शनिकों ने ऋण लेकर घी पीने की हिदायत दी थी, क्योंकि क्षणभंगुर जीवन में घी पीने से बड़ा सुख और कोई नहीं। पेड़-पौधों समेत जीव-जंतुओं की कोई प्रजाति सही भोजन के बिना नहीं जी सकती, पर सामाजिक अन्याय और भेदभाव की आग में जलती अन्यायपूर्ण, प्रेमविहीन हमारी विराट दुनिया में जहां एक तरफ अनगिनत लोगों के लिए मु_ी भर चना भी उपलब्ध नहीं और दूसरी ओर धनलोलुप बाजार को आकर्षक पैकिंग में 'सुपर-फूड बेचने से फुर्सत नहीं। वल्र्ड फूड प्रोग्राम को इस वर्ष का नोबेल शांति पुरस्कार मिला है। यह खाद्य सुरक्षा के प्रश्न का महत्त्व दर्शाता है। दुनिया में खाऊपन के कारण मरे जा रहे पेटार्थी भी हैं और दो-दो रोटी को तरसते करोड़ों लोग भी। विश्व खाद्य कार्यक्रम धरती से भूख खत्म करने के लिए काम करता है।

उसने 2015 में 88 देशों के करीब 10 करोड़ ऐसे लोगों की मदद की जो भूख और खाद्य असुरक्षा के शिकार थे। इसके प्रयासों के बावजूद भूखों की संख्या 2019 में बढ़कर 13 करोड़ 50 लाख हो गई। ज्यादातर भूखे लोग उन देशों में रहते हैं जहां युद्ध और सशत्र संघर्ष होते रहते हैं। कुटिल राजनीति, युद्ध की क्रूरता, वैचारिक असंवेदनशीलता पहले युद्ध के हालात बनाती है, पीडि़तों को भुखमरी तक पहुंचाती है और उसके बाद भूखों के लिए काम करने वालों के लिए नोबेल पुरस्कार का ऐलान करती है! यह हमारा ही रचा हुआ अद्भुत जाल है। संयुक्त राष्ट्र संघ का खाद्य एवं कृषि संगठन भुखमरी, कुपोषण और मोटापे की मौजूदा समस्या के प्रति लोगों को जागरूक करता है। यह भूखों की मदद करता है। हमारी दुनिया एक साथ प्रचुरता और अभाव दोनों की समस्याओं से जूझ रही है। दो अरब लोगों के पास पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं और एक अरब से ज्यादा लोग ज्यादा खाकर बीमार पड़ते हैं या जंक फूड खा-खाकर मर जाते हैं। अपने पर्यावरणीय, आर्थिक, सामाजिक-सांस्कृतिक आयामों के साथ भोजन हमारे समय के सबसे गंभीर मुद्दों में से है। कोविड काल में यह और भी स्पष्ट हो गया है। 'ऑक्सफैम की जुलाई 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक यदि तुरंत कोई उपाय नहीं किए गए तो भुखमरी वायरस की तुलना में ज्यादा लोगों की जानें ले लेगी। रिपोर्ट बताती है : 'वैश्विक महामारी करोड़ों लोगों के लिए ताबूत की आखिरी कील साबित होगी। ऐसे ही लोग क्लाइमेट परिवर्तन, असमानता और एक विखंडित खाद्य प्रणाली से जूझ रहे हैं। गौर करें कि भूख का कारण अन्न का अभाव नहीं, अन्याय है। गलत नीतियां और असंवेदनशीलता है। गौरतलब है कि सेहत के लिए उपयोगी कहे जाने वाले आहार को अब कई तरह से परिभाषित किया जा रहा है। प्राकृतिक भोजन, जड़ी-बूटियां, खनिज, विटामिन की दवाइयां, सप्लीमेंट और अब सुपर फूड के रूप में उनका नवीनतम चेहरा हमारे सामने है।
इस नामकरण का कोई कानूनी या वैज्ञानिक आधार नहीं है। अलग-अलग संस्कृतियों के लिए भोजन का अर्थ भी अलग है। वुहान (चीन) के वेट मार्केट में बिकने वाला भोजन हमारे यहां खाने की चीज़ ही नहीं है और इसी तरह उत्तर प्रदेश और बिहार में रोज खाए जाने वाले भोजन को नागालैंड और मेघालय में विचित्र समझा जाएगा। किसी 'वीगन के लिए दूध और उससे बनी चीजें वैसी ही हैं जैसी शाकाहारी के लिए मांस है, पर इन सभी विरोधाभासी बातों के बीच यहां समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे 'सुपर फूड के नाम पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है। बेंगलुरु में रहने वाले पोषण एवं आहार विशेषज्ञ संजीव शर्मा मानते हैं कि सुपर फूड इन दिनों बड़ा अंधविश्वास बने हुए हैं। सुपर फूड को ऐसे भोजन के रूप में विज्ञापित किया जाता है मानो उनसे मोटापा, खनिज वगैरह की कमी, रक्तचाप, थायरॉइड, मधुमेह जैसी बीमारियां रफूचक्कर हो जाएंगी। संजीव बताते हैं कि 'बाजार की कृपा से लहसुन से लेकर सिरका, किनोआ, हल्दी, मेथी और ऑलिव आयल, अलसी, तरबूज, खरबूज के बीज और नारियल तेल, ये सभी 'सुपर फूड की श्रेणी में आ गए हैं। दुनिया में सबसे अधिक बिकने वाले सुपर फूड में इन दिनों मटर, अदरक, हल्दी, जई, जौ औरकाबुली चना शामिल हैं।
इसके अलावा फूड सप्लीमेंट भी हैं। संजीव कहते हैं कि यह जानने के लिए हमें विशेषज्ञ बनने की दरकार नहीं कि जब तक कारण मौजूद रहेगा, उसका असर भी देह पर आएगा ही। नींबू से कोई पतला होने से रहा और मेथी दाने से मधुमेह जाने से रहा। सेहत के लिए जीवन शैली में बड़ा बदलाव लाना जरूरी है, न कि सुपर फूड खाना। सुपर फूड के विज्ञापन आम जनता को बुरी तरह गुमराह कर रहे हैं। साधारण से दिखने वाले कुट्टू का आटा, जिसका उपयोग लोग व्रत में करते हैं, अब 'बकवीटÓ के अंग्रेजी नाम से सुपर फूड में तब्दील हो गया है। जई जो कि सबसे पुराना अनाज है, ओट्स के अवतार में स्टेटस का प्रतीक बन गया है। कभी आम आदमी की थाली से हल्दी, लहसुन जैसी चीज़ें गायब होकर अचानक सुपर फूड बनकर ग्राहकों के बीच मारामारी का कारण बन जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए! कइयों को गेहूं के ग्लूटेन से एलर्जी है। गेहूं की ज्यादातर किस्में खत्म हो चुकी हैं और दस हजार साल पहले उगाया गया यह अनाज पिछले कुछ वर्षों से एक खास वर्ग के लिए त्याज्य बन चुका है। कई रसोइघरों में गेहूं की वेदना का फायदा उठाते हुए बाजरा, रागी, जौ, जई और चना तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं। कई तरह के अनाज से बनने वाली 'मल्टी ग्रेन रोटी खाने वाले गर्व के साथ चलते हैं क्योंकि आहार के मामले में यह उनकी बोधिप्राप्त दशा को दर्शाती है। नवउदारवाद की भाषा कारोबार और विज्ञापन की भाषा है और सुंदरता बढ़ाने के अपने नारों से वह स्त्रियों को ज्यादा लुभाने की कोशिश करता है। खासकर गृहणियों को जो सेहत के प्रति जागरूक हैं और आहार के बारे में पारिवारिक निर्णयों के केंद्र में भी होती हैं। गौरतलब है कि किसी भी सुपर फूड का इस्तेमाल एक चिकित्सकीय औषधि की तरह नहीं किया जाना चाहिए। कई सुपर फूड के बारे में दावे किए जाते हैं कि वे कैंसर का इलाज हैं! मार्केटिंग की दुनिया में सुपर फूड का सीधा अर्थ है ऐसा भोजन जिसकी सुपर बिक्री होती हो।
'नीलसन के एक सर्वे के मुताबिक यदि लोगों को भरोसा हो जाए कि कोई खास भोजन स्वास्थ्य के लिए अच्छा है तो वे उसकी ज्यादा कीमत देने के लिए तुरंत तैयार हो जाते हैं। सुपर फूड के दीवानों को यह समझने की जरूरत है कि शरीर को सिर्फ एक तरह के बीज, रेशे और खास तरह के अनाज की नहीं, बल्कि कई तरह के खनिज, सूक्ष्म खनिज और विटामिन की भी दरकार है। संजीव कहते हैं कि बेहतर यही है कि हम अलग-अलग रंग के फल और सब्जियां खाएं, क्योंकि उनमें से हरेक में खास खनिज और विटामिन होते हैं। संजीव 'इंद्रधनुषी भोजनलेने की सलाह देते हैं। उनके अनुसार यदि आप सलाद खाते हैं तो कोशिश करें कि उनमें इंद्रधनुष के सभी रंग हों। डिब्बाबंद सब्जियों और फलों से दूर रहने की सलाह है क्योंकि उनमें नमक या चीनी की मात्रा अधिक हो सकती है। आहार के संबंध में स्कूलों में जानकारी दी जानी चाहिए क्योंकि शारीरिक सेहत के अलावा यह मन की सेहत भी बनाता-बिगाड़ता है। -(सप्रेस)
चैतन्य नागर
स्वतंत्र लेखक


Rani Sahu

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