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सम्पादकीय
हास्य व्यंग्य : जब सिट्टी-पिट्टी गुम करने वाले शेर से हुई मुलाकात...
Gulabi Jagat
16 July 2022 5:12 PM GMT
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सम्पादकीय न्यूज
[कमल किशोर सक्सेना]। हमारे देश में मुख्य रूप दो तरह के 'शेर' पाए जाते हैं। एक सिट्टी-पिट्टी गुम करने वाले और दूसरे शायरी में अर्ज किए जाने वाले। पहले को देखकर मुंह से 'आह' निकल जाती है और दूसरे को सुनकर 'वाह।' दूसरे वाले सिर्फ मुशायरों-महफिलों या शायरों के 'दीवान' में मिलते हैं, लेकिन पहले वाले नोट-सिक्के, किताबों, सरकारी इमारतों-दस्तावेजों से लेकर जंगलों तक में उपलब्ध होते हैं। इन्हें जंगल का राजा भी कहा जाता है, लेकिन जबसे जंगल कट गए हैं, राजा साहब के रुतबे में कमी आ गई है।
शेर हमारा राष्ट्रीय प्रतीक भी है। पहले ये सर्कस में भी पाए जाते थे, किंतु पशुओं के 'मानवाधिकार' का मुद्दा उठने के बाद से सर्कस का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया। बच्चों को शेर का डर दिखाकर सुलाने का काम भी होता आया है। इस प्रकार देखें तो शेर के कई उपयोग हैं। अच्छा है कि ये बातें शेर को नहीं पता, वरना कब का रायल्टी की मांग कर चुका होता। आजकल इसे मुद्दा बनाकर भी उपयोग किया जा रहा है।
मजे की बात तो यह है कि शेर को मुद्दा बनाने वालों में कुछ रंगे सियार, गिरगिट और आंसू बहाने वाले घडिय़ाल भी शामिल हैं। देश के नए संसद भवन के शीर्ष पर स्थापित किए जाने वाले शेरों की मुख मुद्रा कुछ लोगों को पसंद नहीं आ रही है। उनका मानना है कि ये शेर आक्रामक हैं, जबकि मूल कृति सारनाथ वाले शेर सौम्य हैं। अजीब तर्क है। शेर मूलत: एक हिंसक जानवर है। नव रस की दृष्टि से, उस पर स्वाभाविक रूप से रौद्र, वीर, भयानक और वीभत्स रस शोभा देते हैं। यदि कोई उसमें शृंगार, हास्य, करुणा और शांत रस देखना चाहे तो उसकी बुद्धि पर तरस खाने का दिल करता है।
मामले को तूल पकड़ता देखकर आखिर हमारे भीतर का भी शेर...मतलब पत्रकार जाग गया और हम अपना बीमा कराने के उपरांत जा पहुंचे शेर की मांद में। पहुंच तो गए, किंतु उसे देखते ही तोते उड़ गए...सारी हिम्मत काफूर हो गई। हमें घबराया देखकर राष्ट्रीय पशु, राष्ट्र भाषा में बोला, 'तुम्हारा परिचय?' 'हम आपके साढू भाई।' 'क्या मतलब?' वह बोला। 'मतलब शादी से पहले हम भी शेर थे।', हमने जवाब दिया।
यह सुनकर वह इतनी विकराल हंसी हंसा कि हम सहम गए। आगे बोला, 'डरो मत! चले आओ...सावन शुरू हो चुका है इसलिए एक महीने के लिए मैंने नान वेज छोड़ दिया है।
'नान वेज छोड़ दिया या माहौल देखकर डर गए?' 'डरता तो मैं किसी के बाप से भी नहीं।' शेर दहाड़ा फिर अचानक धीमे स्वर में बोला, 'पत्नी को छोड़कर...मुद्दे पर आओ।' 'मुद्दे की ही बात कर रहे हैं। कुछ लोगों को आपकी भाव-भंगिमा पर आपत्ति है। उनका कहना है कि पहले आप सौम्य और शांत थे...अब दहाड़ रहे हैं?'
'नासमझ हैं वे, जो ऐसा कहते हैं। तुमने वह कहावत तो सुनी ही होगी कि शेर जब दो कदम पीछे लेता है तो लंबी छलांग लगाने के लिए...न कि भागने के लिए। उस सारनाथ वाली 'सौम्यता' को तुम पीछे वाले दो कदम समझो। अब दहाडऩे का दौर है। ...अब वे दिन लद गए जब खलील मियां फाख्ता उड़ाया करते थे। यह नए जमाने का भारत है... मैं आनलाइन और आफलाइन, दोनों तरह से दहाड़ सकता हूं...।'
शेर अपनी रौ में बोले जा रहा था। ऐसा लगता था उसे काफी दिन बाद बोलने का मौका मिला है या शायद भाभी जी...मतलब शेरनी उस वक्त मांद में नहीं थी। शेर जी वाकई शेर बन गए थे। बोले, 'मेरी जिस पुरानी सौम्य फोटो की चर्चा हो रही है, वह उस जमाने की है, जब न टेलीफोन होता था...न कैमरा। इंसान ही नहीं, जानवर भी सीधे-सादे होते थे। जिस मुद्रा में माडल को बैठा देते, बैठे रहते थे। अब मोबाइल का दौर है। सेल्फी का जमाना है और तुम जानते हो कि उल्टा-सीधा मुंह बनाए बिना सेल्फी अच्छी नहीं आती। मैंने भी ऐसा किया और लोगों ने बखेड़ा खड़ा कर दिया।'
हमने विषय बदलने की गरज से पूछा, 'श्रीलंका में रहने वाला आपका कजन आजकल बड़ी मुसीबत में है...आप उसकी कुछ मदद क्यों नहीं करते?' 'भारत सरकार कर तो रही है मदद। वैसे भी ड्रैगन से दोस्ती का यह नतीजा तो होना ही था।' यह कहकर शेर ने चुप्पी साध ली, किंतु गुफा के भीतर से जोरदार दहाड़ सुनाई दी। दहाड़ सुनकर मेरी आंख खुल गई। सामने लाल-लाल आंखें लिए हमारी अपनी शेरनी... अर्थात पत्नी खड़ी थीं और हम औकात में आ चुके थे।
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